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आरती

आचार्य श्री आरती-10

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

आरती कीजे बारम्बार ।
थाल दीपों की ले रतनार ।।

छोड़ जीरण तृण-वत् घर बार ।
हाथ घुंघर-लट श्याह उतार ।।
चले वन जोवन वस्त्र उतार ।
सुमन ले सांची श्रद्धा चार ।।
थाल दीपों की ले रतनार ।
आरती कीजे बारम्बार ।।१।।

साधते संध्या भीतर डूब ।
ज्ञान धन कण्ठी अण्ठी खूब ।।
चले, आ चले न सत्-पथ दूब ।।
खुशी से भर लोचन जलधार ।
सुमन ले सांची श्रद्धा चार ।।
थाल दीपों की ले रतनार ।
आरती कीजे बारम्बार ।।२।।

साधना वृक्ष मूल चौमास ।
ग्रीष्म तप आतप आया रास ।।
तुसारी रात अभ्र अवकाश ।
अखर लौं भक्ति जगा, हित-पार ।
खुशी से भर लोचन जल धार ।
सुमन ले सांची श्रद्धा चार ।।
थाल दीपों की ले रतनार ।
आरती कीजे बारम्बार ।।३।।

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