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आरती

आचार्य श्री आरती-7

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

आ-रति कीजे संध्या संध्या ।
सुत श्रीमति मल्लप्पा नन्दा ।।

शरद पूर्णिमा का दिन आया ।
ग्राम सदलगा उत्सव छाया ।।
लिये दीप घृत गाय सुगन्धा ।
आ-रति कीजे संध्या संध्या ।।१।।

सूर देश-भूषण ब्रमचारी ।
साक्षि ज्ञान-गुरु दीक्षा थारी ।।
छोड़ और सब गोरख धन्धा ।
आ-रति कीजे संध्या संध्या ।।२।।

श्रमणी, श्रमण किये अनगिनती ।
सरसुति सेव देखते बनती ।।
बना सरस मानस निस्पन्दा ।
आ-रति कीजे संध्या संध्या ।।३।।

करघा, थलि-प्रतिभा, गौशाला ।
अखर जिनालय पाथर वाला ।।
हित उन्मूल यम-जनम फन्दा ।
आ-रति कीजे संध्या संध्या ।।४।।

आप सिन्ध गुण अपरम्पारा ।
हाथ कहो किस ? गणना तारा ।।
श्रद्धा सुमन चढ़ा सानन्दना ।
आ-रति कीजे संध्या संध्या ।।
सुत श्री मति मल्लप्पा नन्दा ।।
आ-रति कीजे संध्या संध्या ।।५।।

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