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आरती

आचार्य श्री आरती-16

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

धन भव मानव कर लीजे ।
श्री गुरु की आ-रति कीजे ।।

पाप कषाय भाव जीते ।
अबर आडम्बर रीते ।।
परहित नैन रखें तीते ।
गम खाते गुस्सा पीते ।।
हाथों में दीपक लीजे ।
श्री गुरु की आ-रति कीजे ।।१।।

वन जोवन बड़भागी हैं ।
केश लोंच अनुरागी हैं ।।
कागी परिणत त्यागी हैं ।
आप समान विरागी हैं ।।
गदगद बोल हदय भींजे ।
हाथों में दीपक लीजे ।
श्री गुरु की आ-रति कीजे ।।२।।

सूर सामने ग्रीषम पल ।
खड़े आन बरसा तरु-तल ।।
शिशिर सांझ मारुत शीतल ।
चतुपथ आन खड़े अविचल ।।
हित पनील लोचन तीजे ।
गदगद बोल हदय भींजे ।
हाथों में दीपक लीजे ।
श्री गुरु की आ-रति कीजे ।।३।।

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