==आरती==
हाथ घृत दीपक लिये सदैव ।
कीजिये आरतिया गुरुदेव ।।
कब दुठ से भी बोले तीखे ।
श्री गुरु ने राग द्वेष जीते ।
दृग् करुणा, क्षमा, दया तीते ।
गुरुदेव देवता धरती के ।।
ले चलें, पार दूसरे खेव ।
हाथ घृत दीपक लिये सदैव ।
कीजिये आरतिया गुरुदेव ।।१।।
जग सिन्धु दूसरे खारे हैं ।
बिन कारण एक सहारे हैं ।।
परिणाम बाल वत् न्यारे हैं ।
गुरु भगवन् जगह उतारें हैं ।।
इन्हीं के दृग् बस जमुना रेव ।
ले चलें, पार दूसरे खेव ।
हाथ घृत दीपक लिये सदैव ।
कीजिये आरतिया गुरुदेव ।।२।।
चलते फिरते तीरथ गुरुजी ।
दिश् दश विहरे कीरत गुरुजी ।।
मां ममता की मूरत गुरुजी ।
सहजो शिव सत् सुन्दर गुरुजी ।।
सुख निरा-कुल साधन स्वय-मेव ।
इन्हीं के दृग् बस जमुना रेव ।
ले चलें, पार दूसरे खेव ।
हाथ घृत दीपक लिये सदैव ।
कीजिये आरतिया गुरुदेव ।।३।।
Sharing is caring!