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आरती

आचार्य श्री आरती-15

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

हाथ घृत दीपक लिये सदैव ।
कीजिये आरतिया गुरुदेव ।।

कब दुठ से भी बोले तीखे ।
श्री गुरु ने राग द्वेष जीते ।
दृग् करुणा, क्षमा, दया तीते ।
गुरुदेव देवता धरती के ।।
ले चलें, पार दूसरे खेव ।
हाथ घृत दीपक लिये सदैव ।
कीजिये आरतिया गुरुदेव ।।१।।

जग सिन्धु दूसरे खारे हैं ।
बिन कारण एक सहारे हैं ।।
परिणाम बाल वत् न्यारे हैं ।
गुरु भगवन् जगह उतारें हैं ।।
इन्हीं के दृग् बस जमुना रेव ।
ले चलें, पार दूसरे खेव ।
हाथ घृत दीपक लिये सदैव ।
कीजिये आरतिया गुरुदेव ।।२।।

चलते फिरते तीरथ गुरुजी ।
दिश् दश विहरे कीरत गुरुजी ।।
मां ममता की मूरत गुरुजी ।
सहजो शिव सत् सुन्दर गुरुजी ।।
सुख निरा-कुल साधन स्वय-मेव ।
इन्हीं के दृग् बस जमुना रेव ।
ले चलें, पार दूसरे खेव ।
हाथ घृत दीपक लिये सदैव ।
कीजिये आरतिया गुरुदेव ।।३।।

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