परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 8
बिन कारण तारण हारा ।
जन्म-जलधि खेवनहारा ।।
जय कारा,जय जय कारा ।
साँचा गुरु विद्या द्वारा ।।
जैन आसमाँ ध्रुव तारा ।
जय कारा,जय जय कारा ।।स्थापना।।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र अवतर अवतर संवोषट् इति आव्हानम्।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: इति स्थापनम्।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
पुष्पांजलि क्षिपामी…
लाकर नीर ।
सागर क्षीर ।
छोडूँ चरणन जल-धारा ।
जय कारा,जय जय कारा ।।जलं।।
चन्दन झार ।
सुगंध न्यार ।
भेंटूँ,मेंटो भव-कारा ।
जय कारा,जय जय कारा ।।चन्दनं।।
अर भा थाल ।
अर धाँ-शाल ।
भेंटूँ,मेंटो भव-कारा ।
जय कारा,जय जय कारा ।।अक्षतं।।
नन्दन क्यार ।
गुल मन-हार ।
भेंटूँ,मेंटो भव-कारा ।
जय कारा,जय जय कारा ।।पुष्पं।।
मनहर जोग ।
छप्पन भोग ।
भेंटूँ,मेंटो भव-कारा ।
जय कारा,जय जय कारा ।।नेवैद्यं।।
घी तत्काल ।
दीपक माल ।
भेंटूँ,मेंटो भव-कारा ।
जय कारा,जय जय कारा ।।दीप॑।।
अर घट धूप ।
अगर अनूप ।
भेंटूँ,मेंटो भव-कारा ।
जय कारा,जय जय कारा ।।धूपं।।
कटुता न्यून ।
फल ऋत पून ।
भेंटूँ,मेंटो भव-कारा ।
जय कारा,जय जय कारा ।।फल॑।।
दिव द्रव आठ ।
अर्घ परात ।
भेंटूँ,मेंटो भव-कारा ।
जय कारा,जय जय कारा ।।अर्घं।।
दोहा
तरण चरण गुरुदेव के,
एक शरण कलि काल ।
आ करीब पल बैठते,
ले मन बाल-गुपाल ।।
जयमाला
नन्दन ज्ञान-महन्त ।
वन्दन कोटि अनन्त ।।
मल्लप्पा कुल दीप ।
मोती श्री मति सीप ।।
ग्राम सदलगा सन्त ।
वन्दन कोटि अनन्त ।।
फेर निन्यानव फेर ।
जिन दीक्षा अजमेर ।।
कुन्द-कुन्द लघुनन्द ।
वन्दन काटि अनन्त ।।
संघ बालयति एक ।
दीक्षित भविजन नेक ।।
सत्य अहिंसा पन्थ ।
वन्दन कोटि अनन्त ।।
जनहित ढेर प्रकल्प ।
कलजुग कायाकल्प ।।
हवा पश्चिमी अन्त ।
वन्दन कोटि अनन्त ।।
अगणित गगन सितार ।
सिन्धु कौन भुज पार ।।
अगम आप गुण नन्त ।
वन्दन कोटि अनन्त ।।जयमाला पूर्णार्घं।।
दोहा
होने तुम से हम सभी,
आये तुम दरबार ।
कृपया दो बरसा कृपा,
गुरु विद्या इस बार ।।
Sharing is caring!