परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 3
=== स्थापना ===
सुर’भी’ सौरभ तुम ।
सदलगा गौरव तुम ।
चाँद पूनम मुखड़ा ।।
तुम विहरते दुखड़ा
वर्तमान पुरु-देव ।
जयतु जयतु गुरु-देव ॥स्थापना।।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र अवतर अवतर संवोषट् इति आव्हानम्।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: इति स्थापनम्।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
पुष्पांजलि क्षिपामी…
क्षीर सागर जल से ।
भर लवालव कलशे ।।
भेंट करने आया ।
मेंटने भव-माया ।।जलं।।
मलय पर्वत लाकर ।
गंध घिसकर सादर ।।
भेंट करने आया ।
मेंटने भव-माया ।।चंदनं।।
पिटारी रतनारी ।
धान अक्षत शाली ।।
भेंट करने आया ।
मेंटने भव-माया ।।अक्षतं।।
पुष्प नन्दन क्यारी ।
सुगंधित मनहारी ।।
भेंट करने आया ।
मेंटने भव-माया ।।पुष्पं।।
खुद सरीखे नीके ।
भोग छप्पन घी के ।।
भेंट करने आया ।
मेंटने भव-माया ।।नैवेद्यं।।
साथ श्रृद्धा गहरी ।
दीप घृत अठपहरी ।।
भेंट करने आया ।
मेंटने भव-माया ।।दीपं।।
गंध कस्तूरी धन ।
धूप चूरी चन्दन ।।
भेंट करने आया ।
मेंटने भव-माया ।।धूपं।।
रसीले फल वाला ।
पिटारा-मण न्यारा ।।
भेंट करने आया ।
मेंटने भव-माया ।।फलं।।
इक से इक बढ़के ।
द्रव्य थाली भरके ।।
भेंट करने आया ।
मेंटने भव-माया ।।अर्घं।।
“दोहा”
ज्ञान ध्यान है बन गया,
जिनका दूजा नाम ।
श्री गुरु विद्या सिन्धु वे,
सविनय तिन्हें प्रणाम ॥
“जयमाला”
दूजा शरद पून चन्दा ।
माई श्री मन्ती नन्दा ।।
झील गहरी जिसकी आँखें ।
घोल मिसरी जिसकी बातें ।
साँस खुशबू रजनी गंधा ।
माई श्री मन्ती नन्दा ।।
दूजा शरद पून चन्दा ।
माई श्री मन्ती नन्दा ।।
बाल काले घूँघर वाले ।
दाहिने-तिल चूनर-तारे ।।
गला आवर्त लिये शंखा ।
माई श्री मन्ती नन्दा ।।
दूजा शरद पून चन्दा ।
माई श्री मन्ती नन्दा ।।
हिमालय से ऊँचा माथा ।
पुष्प चम्पक नासा नाता ।।
कुल मिला के स्वर्ण सुगंधा ।
माई श्री मन्ती नन्दा ।।
दूजा शरद पून चन्दा ।
माई श्री मन्ती नन्दा ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
”दोहा”
उर विशाल गुरुदेव का,
कहाँ अपर जग माँहि ।
शरणागत से कब कहें,
जाओ जगहा नाँहि ।।
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