‘वर्धमान मंत्र’
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*समर्पण भावना*
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
टूट चली चिर निद्रा,
जुड़ चली अपूर्व जाग ।
चीर घना अंधकार,
एक जग उठा चिराग ।
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
हाथ लगी कस्तूरी,
दूर दिखी दौड़-भाग ।
यादें अवशेष द्वेष,
चित् खाने चार राग ।
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
भँवरे-सा पहर-पहर,
पिऊँ स्वानुभव पराग ।
अहा ! साँझ से पहले,
प्रकट हो चला विराग ।
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
*विनय-पाठ*
बिन तेरे कौन हमारा ।
इक तेरा सिर्फ सहारा ।।
अरिहन्त, सिद्ध, आचारज ।
उवझाय, साधु चरणा-रज ।।
दैगम्बर-प्रतिमा अ-प्रतिम ।
जिन भवन किर-तिमा किर-तिम ।।
नभ-चुम्बी, शिखर-जिनालय ।
पच-रंगी, ध्वज, ग्रन्थालय ।।
समशरण, जिनागम-धारा ।
जिन-धर्म-अहिंसा न्यारा ।।
कल्याण-धरा-रत्नत्रय ।
जिन-सिद्ध-क्षेत्र-‘धर’-अतिशय ।।
बिन तेरे कौन हमारा ।
इक तेरा सिर्फ सहारा ।।
जिन-वृषभ, अजित, सम्भव-जिन ।
अभि-नन्दन सम्बल दुर्दिन ।।
जिन-सुमति, पदम-प्रभ पाँवन ।
जिन-सुपार्श्व प्रभ-शशि आनन ।।
जिन-पुष्प-दन्त ‘मत’ शीतल ।
जिन-श्रेय-पूज्य बल-निर्बल ।।
जिन-विमल, नन्त-जिन वन्दन ।
जिन-धर्म, शान्ति सुर-नन्दन ।।
जिन-अरह, मल्ल, मुनि-सुव्रत ।
नमि, नेम, पार्श्व, प्रद-सन्मत ।।
बिन तेरे कौन हमारा ।
इक तेरा सिर्फ सहारा ।।
गुरु गौतम अपूर्व गणधर ।
धर-सेन अंग-पूरब-धर ।।
युग आद-पुराण-प्रणेता ।
पाहुड अध्यात्म रचेता ।।
मत अनेकांत संपोषक ।
सिद्धान्त जैन उद्घोषक ।।
व्यवहार लोक व्याख्याता ।
अनुशासन शब्द विधाता ।।
जित-प्रवाद, ऊरध-रेता ।
पाहुड़-वैद्यिक, अध्येता ।।
कर्तार गणित जैनागम ।
कर्त्ता अगणित जैनागम ।।
बिन तेरे कौन हमारा ।
इक तेरा सिर्फ सहारा ।।
“पुष्पांजलिं क्षिपामि”
अथ अर्हत् पूजा-प्रतिज्ञायां
पूर्वा-चार्या नुक्रमेण
सकल-कर्म-क्षयार्थं
भावपूजा वन्दनास्तव-समेतं
पंच-महागुरु भक्ति
कायोत्सर्ग करोम्यहम् ।।
ॐ
जय-जय-जय
नमोऽतु-नमोऽतु-
*समर्पण भावना*
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
टूट चली चिर निद्रा,
जुड़ चली अपूर्व जाग ।
चीर घना अंधकार,
एक जग उठा चिराग ।
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
हाथ लगी कस्तूरी,
दूर दिखी दौड़-भाग ।
यादें अवशेष द्वेष,
चित् खाने चार राग ।
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
भँवरे-सा पहर-पहर,
पिऊँ स्वानुभव पराग ।
अहा ! साँझ से पहले,
प्रकट हो चला विराग ।
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
‘धन्य घड़ी, धन्य भाग’
*विनय-पाठ*
बिन तेरे कौन हमारा ।
इक तेरा सिर्फ सहारा ।।
अरिहन्त, सिद्ध, आचारज ।
उवझाय, साधु चरणा-रज ।।
दैगम्बर-प्रतिमा अ-प्रतिम ।
जिन भवन किर-तिमा किर-तिम ।।
नभ-चुम्बी, शिखर-जिनालय ।
पच-रंगी, ध्वज, ग्रन्थालय ।।
समशरण, जिनागम-धारा ।
जिन-धर्म-अहिंसा न्यारा ।।
कल्याण-धरा-रत्नत्रय ।
जिन-सिद्ध-क्षेत्र-‘धर’-अतिशय ।।
बिन तेरे कौन हमारा ।
इक तेरा सिर्फ सहारा ।।
जिन-वृषभ, अजित, सम्भव-जिन ।
अभि-नन्दन सम्बल दुर्दिन ।।
जिन-सुमति, पदम-प्रभ पाँवन ।
जिन-सुपार्श्व प्रभ-शशि आनन ।।
जिन-पुष्प-दन्त ‘मत’ शीतल ।
जिन-श्रेय-पूज्य बल-निर्बल ।।
जिन-विमल, नन्त-जिन वन्दन ।
जिन-धर्म, शान्ति सुर-नन्दन ।।
जिन-अरह, मल्ल, मुनि-सुव्रत ।
नमि, नेम, पार्श्व, प्रद-सन्मत ।।
बिन तेरे कौन हमारा ।
इक तेरा सिर्फ सहारा ।।
गुरु गौतम अपूर्व गणधर ।
धर-सेन अंग-पूरब-धर ।।
युग आद-पुराण-प्रणेता ।
पाहुड अध्यात्म रचेता ।।
मत अनेकांत संपोषक ।
सिद्धान्त जैन उद्घोषक ।।
व्यवहार लोक व्याख्याता ।
अनुशासन शब्द विधाता ।।
जित-प्रवाद, ऊरध-रेता ।
पाहुड़-वैद्यिक, अध्येता ।।
कर्तार गणित जैनागम ।
कर्त्ता अगणित जैनागम ।।
बिन तेरे कौन हमारा ।
इक तेरा सिर्फ सहारा ।।
“पुष्पांजलिं क्षिपामि”
अथ अर्हत् पूजा-प्रतिज्ञायां
पूर्वा-चार्या नुक्रमेण
सकल-कर्म-क्षयार्थं
भावपूजा वन्दनास्तव-समेतं
पंच-महागुरु भक्ति
कायोत्सर्ग करोम्यहम् ।।
ॐ
जय-जय-जय
नमोऽतु-नमोऽतु-नमोऽतु
सब अरिहन्तों को नमस्कार ।
सारे सिद्धों को नमस्कार ।।
आचार्य-वन्दना-उपाध्याय ।
नुति-साध-‘साध’ मन वचन काय ।।
ॐ ह्रीं अनादि-मूल-मंत्रेभ्यो नमः
पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।
( पुष्पांजलि क्षेपण करें )
मंगल जग चार, प्रथम अरिहन ।
मंगल शशि-दूज सिद्ध-भगवन् ।।
दैगम्बर-साध-सन्त मंगल ।
इक दया प्रधान पन्थ मंगल ।।
उत्तम जग चार, प्रथम अरिहन ।
उत्तम शशि-दूज सिद्ध-भगवन् ।।
दैगम्बर-साध-सन्त उत्तम ।
इक दया प्रधान पन्थ उत्तम ।।
शरणा जग चार, प्रथम अरिहन ।
शरणा शशि-दूज सिद्ध-भगवन् ।।
दैगम्बर साध-सन्त शरणा ।
इक दया प्रधान पन्थ शरणा ।।
ॐ नमोऽर्हते स्वाहा
पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।
( पुष्पांजलि क्षेपण करें )
थिर-अथिर अपावन पावन भी ।
कारण वशि-भूत अकारण ही ।।
नवकार मंत्र जो ध्याता है ।
कालिख चिर पाप मिटाता है ।।
‘रे खो क्रन्दन, भीतर आया ।
देखो अंजन भी’तर’ आया ।।
भा-परमातम सुमरण करता ।
आखिर आतम सु-मरण करता ।।
नवकार मन्त्र यह नमस्कार ।
करता पापों को छार-छार ।।
अपराजित मंत्र यही विरला ।
सब मंगल में मंगल पहला ।।
आ-रती प्रथम अरिहन्तों की ।
आ-रती दूसरी सिद्धों की ।।
आचार्य आ-रती उपाध्याय ।
आ-रती पाँचवी सन्तों की ।।
बीजाक्षर ‘अ’ अरिहन्तों का ।
बीजाक्षर ‘सि’ श्री सिद्धों का ।।
आचारज ‘आ’-‘उ’ उपाध्याय ।
नुति बीजाक्षर ‘सा’ सन्तों का ।।
प्रकटाये आठ शगुन विराट ।
जिनने विघटाये कर्म-आठ ।।
इक वर्तमान वधु-मुक्ति कन्त ।
वे सिद्ध तिन्हें वन्दन अनन्त ।।
*दोहा*
करते ही जिन अर्चना,
भक्ति-भाव भरपूर ।
भीति शाकिनी-डाकिनी,
सर्पादिक विष दूर ।।
‘पुष्पांजलिं क्षिपामि’
( पुष्पांजलि क्षेपण करें )
*पंचकल्याणक अर्घ्य*
जल चन्दन अछत पुष्प व्यंजन ।
फल दीप धूप भेंटूँ चरणन ।।
भगवज्-जिनेन्द्र कल्याण पञ्च ।
नहिं रहें दूर कल्याण रञ्च ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवतो
गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-निर्वाण पंच-कल्याण-केभ्यो
अर्घ्यं निर्व-पामीति स्वाहा ।।
*पंच परमेष्ठी का अर्घ्य*
जल चन्दन अछत पुष्प व्यंजन ।
फल दीप धूप भेंटूँ चरणन ।।
परमेष्ठि पञ्च गुरु पाद-मूल ।
करने अब तक के पाप धूल ।।
ॐ ह्रीं श्री अर्हत-सिद्धा-चार्यो
पाध्याय सर्व-साधुभ्यो
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*श्री जिन-सहस्र-नाम का अर्घ्य*
जल चन्दन अछत पुष्प व्यंजन ।
फल दीप धूप भेंटूँ चरणन ।।
जिनवर इक हजार आठ नाम ।
रत ‘सु-मरण’ गुजरें तीन शाम ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवज्जिन-
अष्टकाधिक सहस्र नामेभ्यो
अर्घ्यं निर्व-पामीति स्वाहा ।।
*जिनवाणी का अर्घ्य*
जल चन्दन अछत पुष्प व्यंजन ।
फल दीप धूप भेंटूँ चरणन ।।
जिन-देव मुखोद्-भूत माता ।
दो जोड़ ज्ञान-केवल नाता ।।
ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि तत्त्वार्थ-सूत्र-दशाध्याय
अर्घ्यं निर्व-पामीति स्वाहा ।।
*आचार्य श्री जी का अर्घ्य*
जल चन्दन अछत पुष्प व्यंजन ।
फल दीप धूप भेंटूँ चरणन ।।
निर्ग्रन्थ तीन कम नव करोड़ ।
दो सुख अबाध से डोर जोड़ ।।
ॐ ह्रीं त्रिन्यून-नव-कोटी मुनि-वरेभ्यो
अर्घ्यं निर्व-पामीति स्वाहा ।।
*पूजा-प्रतिज्ञा-पाठ*
अभ्यर्चित मूल संघ जैसी ।
विधि पूजन अपनाऊँ वैसी ।।
अरिहन्त सिद्ध आचार-वन्त ।
करके वन्दन उवझाय सन्त ।।
नित करें जगत् गुरुवर मंगल ।
नित करें जगत पल-पल मंगल ।।
नित करें चतुष्क-नन्त मंगल ।
नित करें चतुष्क-वन्त मंगल ।।
नित करें वंश-मति-हर मंगल ।
नित करें हंस-मति-धर मंगल ।।
नित करें विपद्-मोचन मंगल ।
नित करें जगत्-लोचन मंगल ।।
इक आप जितेन्द्रिय मैं दूजा ।
हो सकूँ, आप ठानूँ पूजा ।।
आठों द्रव्यों को लिये हाथ ।
भावों की शुचिता लिये साथ ।।
संचित अब-तलक पुण्य अपना ।
तुम केवल-ज्ञान रूप अगना ।।
जो, उसमें करता आज होम ।
बन साध, साध लूँ जाप ओम् ।।
ॐ ह्रीं विधि-यज्ञ-प्रतिज्ञानाय
जिन-प्रतिमाग्रे पुष्पांजलिं क्षिपामि ।।
*स्वस्ति-मंगल-पाठ*
वृषभ स्वस्ति ।
अजित स्वस्ति ।
स्वस्ति-स्वस्ति सम्भव जिन ।
स्वस्ति-स्वस्ति अभिनन्दन ।
सुमत स्वस्ति ।
पदम स्वस्ति ।
स्वस्ति-स्वस्ति सुपार्श्व धन ।
स्वस्ति-स्वस्ति चन्द्र-लखन ।
सुविध स्वस्ति ।
शीतल स्वस्ति ।
स्वस्ति-स्वस्ति श्रेयस् दूज ।
स्वस्ति-स्वस्ति वासव-पूज ।
विमल स्वस्ति ।
अनन्त स्वस्ति ।
स्वस्ति-स्वस्ति नाथ-धरम ।
स्वस्ति-स्वस्ति शान्त-परम ।
कुन्थ स्वस्ति ।
अरह स्वस्ति ।
स्वस्ति-स्वस्ति मल्ल-जगत ।
स्वस्ति-स्वस्ति मुनि-सुव्रत ।
नमि स्वस्ति ।
नेम स्वस्ति ।
स्वस्ति-स्वस्ति पार्श्व-गभीर ।
स्वस्ति-स्वस्ति सन्मत-वीर ।
इति श्री-चतु-र्विंशति-तीर्थंकर
स्वस्ति मंगल-विधानं
पुष्पांजलिं क्षिपामि ।।
*परमर्षि-स्वस्ति-पाठ*
धन ! केवल-ज्ञान ऋद्धि-धारी ।
मन-पर्यय-ज्ञान ऋद्धि-धारी ।।
धर-अवधि-ज्ञान जागृत पल-पल ।
ऋषि करें हमारा नित मंगल ।।
धर ऋद्धि एक कोष्-ठस्थ नाम ।
इक बीज पदनु-सारिणि प्रणाम ।।
धर सम्-भिन्-नन, सन्-श्रोतृ, सकल ।
ऋषि करें हमारा नित मंगल ।।
संस्-पर्श, श्रवण, दूरास्वादन ।
धर-ऋद्धि दूरतः अवलोकन ।।
धर-दूर-घ्राण जल-भिन्न-कमल ।
ऋषि करें हमारा नित मंगल ।।
दश-चार ‘पूर्व’ दश बुध-प्रतेक ।
बुध-महा-निमित-अष्टांग एक ।।
धर-प्रज्ञा-श्रमण प्रवादि अचल ।
ऋषि करें हमारा नित मंगल।।
धर-जंघा-चारण, तन्तु, अगन ।
बीजांकुर-चारण, पुष्प-गगन ।।
पर्वत, श्रेणी ‘चारण’ जल-फल ।
ऋषि करें हमारा नित मंगल ।।
धर-अणिमा, महिमा ऋद्धि एक ।
धर-गरिमा, लघिमा ऋद्धि नेक ।।
धर-ऋद्धि वचन, काया, मन, बल ।
ऋषि करें हमारा नित मंगल ।।
वशि अन्तर्-धानिक काम-रूप ।
अप्-प्रती-घात आप्तिक अनूप ।।
प्राकाम्य-ऋद्धि-धर, नैन-सजल ।
ऋषि करें हमारा नित मंगल ।।
धर-दीप्त, तप्त, ब्रम-चर्य-घोर ।
मह-दुग्र, घोर, धर-वर्य-घोर ।।
थित-घोर-पराक्रम बल-निर्बल ।
ऋषि करें हमारा नित मंगल ।।
आमर्ष सर्व-विष आशि-अविष ।
औषध-क्ष्वेल, विष-दृष्टि-अविष ।।
विड्-औषध, औषध-जल्लरु-मल ।
ऋषि करें हमारा नित मंगल ।।
अक्षीण-महानस, घृत-स्रावी ।
अक्षीण-संवास, अमृत-स्रावी ।।
इक ‘सहज-निराकुल’ हृदय-सरल ।
ऋषि करें हमारा नित मंगल ।।
इति परमर्षि स्वस्ति-मंगल-विधान
पुष्पांजलि
‘पूजन’
सदय-हृदय, सम-शरण ।
निलय-विनय, नम-नयन ।।
हेत समाधी मरण ।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
लिये नीर घट रतन ।
हेत समाधी मरण ।।
तन समेत मन वचन ।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये गंध झार मण ।
हेत समाधी मरण ।।
तन समेत मन वचन ।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
संसारताप विनाशनाय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।।
लिये शालि धान कण ।
हेत समाधी मरण ।।
तन समेत मन वचन ।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अक्षयपद प्राप्तये
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये पुष्प नन्द वन ।
हेत समाधी मरण ।।
तन समेत मन वचन ।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
कामबाण विध्वंसनाय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये चारु चरु अनन ।
हेत समाधी मरण ।।
तन समेत मन वचन ।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
क्षुधारोग विनाशनाय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये लौं अगम पवन ।
हेत समाधी मरण ।।
तन समेत मन वचन ।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
मोहांधकार विनाशनाय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये धूप नूप अन ।
हेत समाधी मरण ।।
तन समेत मन वचन ।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अष्टकर्म दहनाय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये मधुर फल चमन ।
हेत समाधी मरण ।।
तन समेत मन वचन ।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
मोक्षफल प्राप्तये
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये द्रव्य नव्य धन ।
हेत समाधी मरण ।।
तन समेत मन वचन ।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अनर्घ्यपद प्राप्तये
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘कल्याणक अर्घ’
रतन रतन झिर गगन ।
मात हाथ अर सुपन ।।
हेत समाधी मरण ।।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं गर्भ-कल्याणक-मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सार्थ सुर सहस-नयन ।
मेर तीर्थ शिश न्हवन ।।
हेत समाधी मरण ।।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं जन्म-कल्याणक-मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
केश लुञ्च, निज मगन ।
वस्त्र मुञ्च झट नगन ।।
हेत समाधी मरण ।।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं तप कल्याणक-मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
समो-शरण सिंह हिरण ।
ज्ञान नयन तिहु भुवन ।।
हेत समाधी मरण ।।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं ज्ञान कल्याणक-मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
समय मात्र ऋज गमन ।
मुक्ति राधिका रमण ।।
हेत समाधी मरण ।।
पंच बालयति नमन ।।
ॐ ह्रीं मोक्ष कल्याणक-मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जयमाला लघु चालीसा
‘दोहा’
कीर्तन सिवा न दूसरा,
कलि कल्याणक द्वार ।
आ पल पल सु-मरण करें,
ना ‘कि तीज त्योहार ।।
दया से भींगे तेरे नैन ।
और हित रहते तुम बेचैन ।।
किसी की देख न सकते पीर ।
दृगों से बहने लगता नीर ।।१।।
लगाई रानी सीता टेर ।
लगाई फिर तुमने कब देर ।।
शील जय शीलवती बड़भाग ।
बदल चाली पानी में आग ।।२।।
दया से भींगे तेरे नैन ।
और हित रहते तुम बेचैन ।।
किसी की देख न सकते पीर ।
दृगों से बहने लगता नीर ।।३।।
लगाई देवी सोमा टेर ।
लगाई फिर तुमने कब देर ।।
शील जय शीलवती बड़भाग ।
फूल माला में बदले नाग ।।४।।
दया से भींगे तेरे नैन ।
और हित रहते तुम बेचैन ।।
किसी की देख न सकते पीर ।
दृगों से बहने लगता नीर ।।५।।
लगाई देवी नीली टेर ।
लगाई फिर तुमने कब देर ।।
शील जय शीलवती बड़भाग ।
खुला दरवाजा सति बेदाग ।।६।।
दया से भींगे तेरे नैन ।
और हित रहते तुम बेचैन ।।
किसी की देख न सकते पीर ।
दृगों से बहने लगता नीर ।।७।।
लगाई रानी द्रोपत टेर ।
लगाई फिर तुमने कब देर ।।
शील जय शीलवती बड़भाग ।
चीर जा करे क्षितिज अनुराग ।।८।।
दया से भींगे तेरे नैन ।
और हित रहते तुम बेचैन ।।
किसी की देख न सकते पीर ।
दृगों से बहने लगता नीर ।।९।।
हाय ! मेरा भी फूटा भाग ।
करो कुुछ मने दिवाली फाग ।।
निराकुल कर लो अपने भाँत ।
यही फरियाद जोड़कर हाथ ।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘दोहा’
सिवा एक भगवत कृपा,
लो खरीद, दे मोल ।
अश्रु सिवा भगवान् को,
सका न कोई तोल ।।
।।परि पुष्पांजलिं क्षिपामि।।
‘विधान प्रारंभ’
पंच बाल-यति जिनम् ।
दरद-मन्द ! नैन-नम ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
‘बीजाक्षर नवार्घ’
जय जय अरिहन्त जय ।
जयतु सिद्ध नन्त जय ।।
सूर उपाध्याय, सन्त ।
जय जय वन्दन अनन्त ।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ
अक्षर असिआ उसा नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मंगल अरिहन्त जिन ।
सिद्ध नन्त सन्त जन ।।
मंगलम् क्षमाद धर्म ।
कथित ‘मथित घात’ कर्म ।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं ए ऐ ओ औ अं अः
अक्षर चतुर्विध मंगलाय नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
उत्तम अरिहन्त जिन ।
सिद्ध नन्त सन्त जन ।।
उत्तमम् क्षमाद धर्म ।
कथित ‘मथित घात’ कर्म ।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं क ख ग घ ङ
अक्षर चतुर्विध लोकोत्तमाय नमः
आग्नेय-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शरणा अरिहन्त जिन ।
सिद्ध नन्त सन्त जन ।।
शरण क्षमा आद धर्म ।
कथित ‘मथित घात’ कर्म ।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं च छ ज झ ञ
अक्षर चतुर्विध शरणाय नमः
दक्षिण-दिशि अर्घ निर्वापमिति स्वाहा ।।
दर्श सुख अनन्त-वाँ ।
ज्ञान वीर्य नन्त-वाँ ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
अक्षर पञ्च बालयति जिनेन्द्राय नमः नैऋत्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पुष्प, छतर, तूर, तर ।
पीठ, चँवर, नूर, स्वर ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं त थ द ध न
अक्षर पञ्च बालयति जिनेन्द्राय नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामिति स्वाहा ।।
बल-अतुल, विचित्र चिन ।
अमल, वचन ‘इत्र’ तन ।।
वर संस्थां, रिक्त श्वेद ।।
अर-संहनन, रक्त श्वेत ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
अक्षर पञ्च बालयति जिनेन्द्राय नमः
वायव्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दया, विद् अशेष, ‘मुख’ ।
नभ गत ‘गत’ केश नख ।।
गत छाया, विगत क्लेश ।
सुभिख, अभुक्, निर्निमेष ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं य र ल व
अक्षर पञ्च बालयति जिनेन्द्राय नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मित्र, उदक-गन्ध, ऋत ।
वसु मंगल धर्म-वृत ।।
भू दर्प’ण, पन्थ, भाष ।
दिश्, नभ, ‘सुर’, गुल, वताश ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श ष स ह
अक्षर पञ्च बालयति जिनेन्द्राय नमः
ईशान-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रथम वलय पूजन विधान की जय
‘अनन्त चतुष्टय’
हन्त दर्शना-वरण ।
नन्त दर्शना-भरण ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।१।।
ॐ ह्रीं अनन्त-दर्शन मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मोह पुरुषार्थ हन ।
हाथ सुख अनन्त अन ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।२।।
ॐ ह्रीं अनन्त सुख मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हन्त ज्ञान आवरण ।
नन्त ज्ञान आभरण ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।३।।
ॐ ह्रीं अनन्त-ज्ञान मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कर्म अन्तराय हन ।
नन्त वीर्यवान धन ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।४।।
ॐ ह्रीं अनन्त वीर्य मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दर्श सुख अनन्त-वाँ ।
ज्ञान वीर्य नन्त-वाँ ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।
ॐ ह्रीं अनन्त-चतुष्टय मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
द्वितीय वलय पूजन विधान की जय
‘अष्ट-प्रातिहार्य’
यथा नाम भाँत गुण ।
झड़ी सुमन पाँत पुन ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।१।।
ॐ ह्रीं पुष्प-वृष्टि-मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
एक छत्र राज चिन ।
तीन छत्र, नाज जिन ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।२।।
ॐ ह्रीं छत्र-त्रय-मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नाद देव दुन्दुभिन् ।
कर्ण प्रिय मन-हरिण ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।३।।
ॐ ह्रीं देवदुन्दुभि-मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘तर’ अशोक भागवाँ ।
तर त्रिलोक बागवां ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।४।।
ॐ ह्रीं वृक्ष-अशोक मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भौन, दीठ-मन हरी ।
सोन पीठ मण जड़ी ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।५।।
ॐ ह्रीं सिंहासन-मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
देव स्वर्गपुर बड़े ।
चौंर लिये सुर खड़े ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।६।।
ॐ ह्रीं चामर मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भा-वलय कतार भाँ ।
सौम्य समां चन्द्रमा ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।७।।
ॐ ह्रीं भामण्डल-मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
स्वर्ग-मोख भव्य सुन ।
फर्श ढ़ोक दिव्य धुन ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।८।।
ॐ ह्रीं दिव्य-ध्वनि-मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पुष्प, छतर, तूर, तर ।
पीठ, चँवर, नूर, स्वर ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।
ॐ ह्रीं अष्ट-प्रातिहार्य मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तृतीय वलय पूजन विधान की जय
‘जन्मातिशय’
फूँक मात्र ‘गिर’ गिरे ।
कोटि भट विनत खड़े ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।१।।
ॐ ह्रीं संबल मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वस-सहस्र उपलखन ।
सार्थ नाम लख ‘लखन’ ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।२।।
ॐ ह्रीं ‘लाखन’ गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अमल, फुर कपूर वत् ।
स्वर्ग भोग अनगिनत ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।३।।
ॐ ह्रीं निर्मल गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बोल सुरीले बड़े ।
अमृत मीसरी घुरे ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।४।।
ॐ ह्रीं बोल अमोल मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तनु सुगन्ध दूसरी ।
यूँ ना कस्तूर भी ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।५।।
ॐ ह्रीं सौरभ गौरव मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चाँद दाग, आग रव ।
आप भाग आप छव ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।६।।
ॐ ह्रीं सुन्दर, तन मन्दर मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
संस्थां सम चतु रसर ।
अर सामुद्रिक पतर ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।७।।
ॐ ह्रीं छटा संस्थाँ मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भाग-दौड़ गुम कहीं ।
नाम बिन्दु श्रम नहीं ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।८।।
ॐ ह्रीं हीन पसीन गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वज वृषभ नराच-नन ।
बार अबकि संह-ननन ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।९।।
ॐ ह्रीं धन ! संहनन मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
करुणा, आरक्त-दृग् ।
दुग्ध समां रक्त रग ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।१०।।
ॐ ह्रीं सित शोणित मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बल-अतुल, विचित्र चिन ।
अमल, वचन ‘इत्र’ तन ।।
वर संस्थां, रिक्त श्वेद ।।
अर-संहनन, रक्त श्वेत ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।
ॐ ह्रीं दश-जन्मातिशय मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चतुर्थ वलय पूजन विधान की जय
‘केवल-ज्ञानातिशय’
उर करुणा ! अहि गरुण ।
समशरणा सिंह हिरण ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।१।।
ॐ ह्रीं ‘मा-हन्त’ गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तुम प्रसिद्ध तापसी ।
सिद्ध-रिद्ध आप ही ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।२।।
ॐ ह्रीं ‘विद्यालय’ गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दिखे मुख दिशा दिशा ।
प्रतिभा चउ-मुख निशाँ ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।३।।
ॐ ह्रीं चतुर्मुख प्रतिभा गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ज्ञान एक क्या मिले ।
चतु-रंगुल उठ चले ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।४।।
ॐ ह्रीं ‘गगन-चरन’ गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मंजिल आती दिखी ।
वृद्धि केश नख रुकी ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।५।।
ॐ ह्रीं नग केश-नख गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तेज खुद, न बाहरी ।
पड़ रही न छाहरी ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।६।।
ॐ ह्रीं छाया माया गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ज्ञान एक सिध, तभी ।
विघ्न खो चले सभी ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।७।।
ॐ ह्रीं ‘हन विघन’ गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ईतिंयाँ बिला चलीं ।
भीतिंयाँ, बला टलीं ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।८।।
ॐ ह्रीं इक सुभिख गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अमि भी’तर धार जब ।
थिति कवलाहार कब ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।९।।
ॐ ह्रीं अन अनशन गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आतमा रही झलक ।
झपक ना रही पलक ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।१०।।
ॐ ह्रीं झलक अपलक गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दया, विद् अशेष, ‘मुख’ ।
नभ गत ‘गत’ केश नख ।।
गत छाया, विगत क्लेश ।
सुभिख, अभुक्, निर्निमेष ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।
ॐ ह्रीं दश केवल-ज्ञानातिशय मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पंंमम वलय पूजन विधान की जय
‘देव-कृतातिशय’
हुआ वैर भाव गुम ।
धरा हो चली कुटुम ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।१।।
ॐ ह्रीं ‘मै-त्र’ ‘गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जल फुहार झीन सी ।
सुर’भी अनचीन सी ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।२।।
ॐ ह्रीं मोहक गन्धोदक गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
फल अमूल झूलते ।
सकल फूल फूलते ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।३।।
ॐ ह्रीं ऋत-ऋत गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मंगल सुर-नार सर ।
गांधर्वी न्यार स्वर ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।४।।
ॐ ह्रीं वस मंगल गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तील इक सहस्र अठ ।
देव रक्ष धर्म-वृत ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।५।।
ॐ ह्रीं अग्र धर्मचक्र गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कुछ हटके झूम है ।
दर्पण सी भूम है ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।६।।
ॐ ह्रीं फर्श आदर्श गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
साध डूब भीतरी ।
हाथ खूब भी’तरी ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।७।।
ॐ ह्रीं साध आह्लाद गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दूर दूर शूल ना ।
‘मा…रग’ वत् धूल ना ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।८।।
ॐ ह्रीं ‘मा-रग’ गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भाष अर्ध मागधी ।
सहज सुलभ भाग धी ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।९।।
ॐ ह्रीं भाष अध-मागध गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धूल न नामो निशाँ ।
शारद विदिशा दिशा ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।१०।।
ॐ ह्रीं ‘दिशा’ गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दूर तक न श्याम घन ।
स्वच्छ शारदी गगन ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।११।।
ॐ ह्रीं मगन गगन गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
इक सुर आवाज दें ।
यहाँ धर्म-राज हैं ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।१२।।
ॐ ह्रीं स्वर सुर गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आप रख रहे कदम ।
देव रच रहे पदम ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।१३।।
ॐ ह्रीं पद पद्म गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मन्द सुगन्धित पवन ।
थम चले तरंग मन ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।१४।।
ॐ ह्रीं ह-वा…वा-ह गुण मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मित्र, उदक-गन्ध, ऋत ।
वसु मंगल धर्म-वृत ।।
भू दर्प’ण, पन्थ, भाष ।
दिश्, नभ, ‘सुर’, गुल, वताश ।।
पूज्य, मल्ल, नेम-देव ।
पार्श्व, वीर, नुति सदैव ।।
ॐ ह्रीं चतुर्दश देव-कृतातिशय मण्डिताय
श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
…जयमाला…
‘दोहा’
वासुपूज्य जै, मल्ल जै,
नेम, पार्श्व, जै वीर ।
हित सु-मरण आगे बढूँ,
वर दो लागूँ तीर ।।
पंच बाल-यति तीर्थंकर जय ।
जयत जयत जय, जयत जयत जय ।।
बरसा रतन,
झिर लग गगन,
सोलह सुपन,
माँ देखती गद-गद हृदय ।
जयत जयत जय, जयत जयत जय ।।
पंच बाल-यति तीर्थंकर जय ।
जयत जयत जय, जयत जयत जय ।।
क्षीर जल कण,
कलश कंचन,
सुमेर न्हवन,
सौधर्म इन्द्र करता सविनय ।
जयत जयत जय, जयत जयत जय ।।
पंच बाल-यति तीर्थंकर जय ।
जयत जयत जय, जयत जयत जय ।।
केश लुञ्चन,
भेष मुञ्चन,
अशेष नगन,
दृष्टि नासा रख इन्द्रिय विजय ।
जयत जयत जय, जयत जयत जय ।।
पंच बाल-यति तीर्थंकर जय ।
जयत जयत जय, जयत जयत जय ।।
धन ! समशरण,
केशर हिरन,
सुने प्रवचन,
जात-वैर अपना करके विलय ।
जयत जयत जय, जयत जयत जय ।।
पंच बाल-यति तीर्थंकर जय ।
जयत जयत जय, जयत जयत जय ।।
सद्-ध्यां अगन,
कर अर दहन,
ऋज गत गमन,
जा लगे समय इक सिद्धालय ।
जयत जयत जय, जयत जयत जय ।।
पंच बाल-यति तीर्थंकर जय ।
जयत जयत जय, जयत जयत जय ।।
‘दोहा’
यथा-जात ! अन्दर मना,
पंच बाल-यति देव ।
आगे भी यूँ-ही कृपा,
रखिये बना सदैव ।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च बालयति जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
‘दोहा’
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
‘आरती’
ढ़ोल बजाओ
धूम मचाओ
पंचबालयत आरती
उतारो आओ
थाल सजाओ
ज्योत जगाओ
पंचबालयत आरती
उतारो आओ
सम्यक् दर्शन आरति पहली ।
दिखी आतमा उजली-उजली ।।
भीतर आओ
भी’ तरि पाओ
पंचबालयत आरती
उतारो आओ
सम्यक् ज्ञान आरती दूजी ।
हाथ विवेक नीर-पय पूँजी ।।
झुकते जाओ
‘मात’ मनाओ
पंचबालयत आरती
उतारो आओ
सम्यक् चारित्र आरती तीजी ।
देख पीर पर अँखिया भींजी ।।
कदम बढ़ाओ
मंजिल पाओ
पंचबालयत आरती
उतारो आओ
ढ़ोल बजाओ
धूम मचाओ
पंचबालयत आरती
उतारो आओ
थाल सजाओ
ज्योत जगाओ
पंचबालयत आरती
उतारो आओ
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