हरेक रिश्ता
रिसता
पै न रिश्ता
राखी फरिश्ता ।।१।।
लगा बहिन को,
राखी आई,
गादी जो खुजलाई ।।२।।
कौन बहिन,
भाई को मनाती,
जो राखी न आती ।।३।।
अजूबा…
धागा कच्चा
बाँधे बन्धन इतना पक्का ।।४।।
धागा बुलाये,
कब हों ऐसा,
भाई न भागा आए ।।५।।
भाई-बहिन
जीवन-आधार
न सिर्फ दो-तार ।।६।।
छु अनबन
बहिन-भाई
छुआ रक्षा बन्धन ।।७।।
जंजीर तोड़ी,
जा सकती
पर… न प्रेम की डोरी ।।८।।
राखी के दिन,
भैय्या-बिन्ना
न वैसे बाकी के दिन ।।९।।
उजला मन,
रा…खी
खी…रा
उजला करे आनन ।।१०।।
है फौजिंयों को इंतजार पाखी का
आज राखी क्या ।।११।।
इतना कर दो साँई….
राखी पे हो घर पे भाई ।।१२।।
धागा कच्चा,
ले-कर मक…री
रक्षा-बन्धन सच्चा ।।१३।।
राखी वो दिन,
न लेते ‘कि हिचकी भाई बहिन ।।१४।।
विना बहिन के जो
‘रे ‘भाई’
सिर्फ कहने के वो ।।१५।।
बनाये एक बेर….
बहिन-भाई
मन्नतें ढ़ेर ।।१६।।
सबसे ज्यादा
बहना भाई… भाई
रब से ज्यादा ।।१७।।
गाँठ सरक फूँद वाला,
बन्धन-रक्षा निराला ।।१८।।
रक्षा-बन्धन
कच्चे-धागों का, एक पक्का बन्धन ।।१९।।
पर तितली से,
जल-मछली से,
भाई-बहिन ।।२०।।
कहे बहना
तू जुग-जुग-जिये
भाई-कहना ।।२१।।
भाई बहना
जिस्म जुदा…एक जाँ
राखी कहना ।।२२।।
था इंतज़ार, भाई-बहिन,
आया राखी का दिन ।।२३।।
आये राखी का दिन
इंतजार ‘कि भाई-बहिन ।।२४।।
कब न जिये,
भाई-बहिन एक-दूजे के लिए ।।२५।।
धागे कच्चे, पै सच्चे
बॉंधे कलाई
बहिन भाई ।।२६।।
कर लो,
हो’…री आई,
उधड़े रिश्तों की तरपाई ।।१।।
छुई मजाक-ठिठोली,
तो ले माफी लो आई होली ।।२।।
गाल-गुलाल,
ललाट-रोली,
जश्ने-फतह होली ।।३।।
न कहे
दो ‘री कपड़े नये छोड़ी,
भोली सी होली ।।४।।
और करीब लाने भाई-भाई को,
होली आई लो ।।५।।
रोज बागबाँ ले पिचकारी,
रंग डालने क्यारी ।।६।।
नजारा होरी,
आसमाँ में सुबहो-शाम देखो’ री ।।७।।
इन्द्र-धनुष देखो ‘री,
खेले पानी, सूरज होली ।।८।।
वही हाथों में ले,
रंग
जिसके न हो हाथ मैले ।।९।।
अबकी होली अहंकार,
जले धू-धू
न ‘कि झाड़ ।।१०।।
चुके उपले,
जलें होली अबकी,
शिकवे गिले ।।११।।
है खेले नहीं हो…री कम,
कागद संग कलम ।।१२।।
छुआ गु…लाल
‘कि छू हुआ मलाल
हो…’री कमाल ।।१३।।
है होली आई ‘रे !
अनबन
ओ’ खो लो
गाँठ मन ।।१४।।
होली आई ‘रे !
मनमुटाव
खो
बो…लो गहराव ।।१५।।
होली आई ‘रे !
झट-पट खो
यदि खटपट हो ।।१६।।
होली आई ‘रे !
मन की गाँठें
खो…लो
खटकी बातें ।।१७।।
सुन ‘चुन…री’ की आते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।१८।।
दे माफी, माफी मँगाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।१९।।
और हिचकी दिलाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।२०।।
रस चुगली छकाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।२१।।
दीप से दीप जलाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।२२।।
धागे-सुई को मिलाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।२३।।
पेज इमेज बढ़ाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।२४।।
कान दीवाल हटाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।२५।।
पन्ना पन्ने सा बनाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।२६।।
घुुन औगुण हटाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।२७।।
जोड़ आईने से नाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।२८।।
छ: पीछे तीन बनाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।२९।।
मुट्ठी लाख की बनाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।३०।।
पौंछते, आँसू गौ आते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।३१।।
रूठे हुये को रिझाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।३२।।
बनते वृक्षों से छाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।३३।।
रिसते रिश्ते जमाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।३४।।
भेजा कलेजा बनाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।३५।।
गिले शिकबे गलाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।३६।।
संग भँवरों के गाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।३७।।
फूलों के साथ मुस्काते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।३८।।
फूल, हवा से बचाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।३९।।
दादी के चश्मे कहाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।४०।।
दादू की छड़ी कहाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।४१।।
हार अपनों से जाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।४२।।
मन से गाँठें हटाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।४३।।
नशे को आँख दिखाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।४४।।
भूलों की भूलें भुलाते,
आ रंगों का पर्व मनाते ।।४५।।
नयना नम,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
जयनागम ।।१।।
गुरु पूर्णिमा
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
गुरु पूर्ण माँ ।।२।।
झंडा तिरंगा,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
सौगन्ध गंगा ।।३।।
झाँसी की रानी,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
खूँ बलिदानी ।।४।।
नीम दातून,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
नींद-सुकून ।।५।।
माँ थपकियाँ,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
माथे बिंदिंयाँ ।।६।।
माँ का दुलार,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
पापा का प्यार ।।७।।
बतिंयाँ साँच,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
चूड़िंयाँ काँच ।।८।।
घोड़ा चेतक,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
थोड़ी झिझक ।।९।।
मुँः बोले रिश्ते,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
लोग फरिश्ते ।।१०।।
महात्मा गाँधी,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
साधर्मी शादी ।।११।।
लोरियाँ माँ-की,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
डाकिया-पाँखी ।।१२।।
तीज त्यौहार,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
प्रेम-व्यौहार ।।१३।।
जुबान हिन्दी,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
शील–सुगंधी ।।१४।।
मोटा जीमना,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
घाटा लीलना ।।१५।।
हाथ मिलाना,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
हाथ मै…ले ना ।।१६।।
खाना हाथ माँ,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
ध्यान आतमा ।।१७।।
कबूतर-जा,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
तू भी…तर जा ।।१८।।
हाट दुकान,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
बात दो…कान ।।१९।।
मानव सेवा
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
जै गुरु देवा ।।२०।।
जैविक कृषि
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
जैनिक ऋषि ।।२१।।
ताज-महल
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
लाज–महिल ।।२२।।
हाथ करघा
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
स्वाद घर का ।।२३।।
रक्षा बन्धन,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
अच्छा चिन्तन ।।२४।।
गो शाला-धाम
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
गो…पाला नाम ।।२५।।
माटी के घड़े,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
माफी लें बड़े ।।२६।।
प्रतिभा-स्थली
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
प्रति…भा…रती ।।२७।।
पति-व्रताएँ
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
सति कथाएँ ।।२८।।
संस्कृत भाषा
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
आश-विश्वासा ।।२९।।
गोमटेश्वर,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
होम के स्वर ।।३०।।
नाड़ी संज्ञान
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
नारी सम्मान ।।३१।।
कन्या का दान,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
कंधा विमान ।।३२।।
दया धरम
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
हया-शरम ।।३३।।
मोटी-पोशाक
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
रोटी–औ साग ।।३४।।
मूड़ ढ़कना
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
मुः न तकना ।।३५।।
मठ मन्दर,
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
पाठ मन्तर ।।३६।।
चारों ही धाम
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
प्यारो श्री राम ।।३७।।
दुआ बुज़ुर्ग
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
मुआ ‘कि स्वर्ग ।।३८।।
‘जी खेती बाड़ी
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
सूती की साड़ी ।।३९।।
दूध गाय घी
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
भू हरी–भरी ।।४०।।
गो–माथे रोली
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
दीवाली-होली ।।४१।।
दादी के किस्से
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
नानी के नुस्खे ।।४२।।
पतंग बाजी
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
सन्त बाबा जी ।।४३।।
गो–धूलि बेला
‘शान–ए-हिन्दुस्तान’
कुम्भ का मेला ।।४४।।
आज नाम ही काफी
पूर्णायु
राम राज्य ‘टू कॉपी’ ।।१।।
सांस राहत वाली
पूर्णायु
राह चाहत वाली ।।२।।
प्रसाद गुरु–पूजा
पूर्णायु
नाम विश्वास दूजा ।।३।।
विश्व–शान्ति का बीज
पूर्णायु
हर–दिल अजीज ।।४।।
माँ फूँक वाली मरहम
पूर्णायु
पूर्ण…माँ सम ।।५।।
मीठी–सी जाड़े–धूप
पूर्णायु
तारा–ध्रुव अनूप ।।६।।
जगन्नाथ का भात
पूर्णायु
नहीं किसके साथ ।।७।।
है आँच–साँच को क्या
पूर्णायु सिवा
दें सभी धोखा ।।८।।
सुदूर अन्धे–धंधे
पूर्णायु
डे…
हो सण्डे या मण्डे ।।९।।
कम करता वादा
पूर्णायु
काम करता ज्यादा ।।१०।।
किरण-एक आशा
पूर्णायु
नेक-दिल जुदा-सा ।।११।।
पढ़ा दूसरी कक्षा
पूर्णायु
बच्चे-सा दिल सच्चा ।।१२।।
लक्ष्य
पूर्णायु
मानव सेव
न ‘कि भरना जेब ।।१३।।
आँख पूर्णायु क्या उठाई
रोगों की शामत आई ।।१४।।
नाचता आँधी दीया
पूर्णायु
आज के गांधी दिया ।।१५।।
देख लीजिए
आज…मा आप
दिल पूर्णायु साफ ।।१६।।
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’
पूर्णायु की एक प्रार्थना ।।१७।।
दवा…खाना
खा…ना, दबा
कहे खुद ही दवाखाना ।।१८।।
गया नहीं
‘कि पेट काड़ा
बजते रोगों के बारा ।।१९।।
जुदा प्रपञ्च कर्म
विधा अद्भुत ही पञ्च कर्म ।।२०।।
न दवाखाना खाली
पूर्णायु
भाई व्रति दीवाली ।।२१।।
कम ही दवा
दे पूर्णायु
दी गुरु कीमती दुआ ।।२२।।
रखने वाली बड़ी खूबिंयाँ
साधो ! जड़ी बूटियाँ ।।२३।।
है पूर्णायु के साथ
सभी गुरुओं का आशीर्वाद ।।२४।।
गुरु जी ने दें डोरिंयाँ
दे डालीं द्यु-शिव डोलिंयाँ ।।२५।।
दिये गुरु जी ने सूत्र लाख
हाथ करघा राख ।।२६।।
मंदिर, चर्च, मस्जिद, गुरुद्वारा
करघा म्हारा ।।२७।।
जुदा सबसे,
‘सहजो-निरा…कुल’
खुदा रब-से ।।१।।
कब कहते,
‘सहजो-निरा…कुल’
सब सहते ।।२।।
नाक रखते,
‘सहजो-निरा…कुल’
धाक रखते ।।३।।
चलें धीमे-से,
‘सहजो-निरा…कुल’
हंस-धी में से ।।४।।
कुछ खास हैं,
‘सहजो-निरा…कुल’
कछु…आ से हैं ।।५।।
नहीं भाग लें,
‘सहजो-निरा…कुल’
न ही भाग लें ।।६।।
तोड़ें न फूल,
‘सहजो-निरा…कुल’
जोड़ें न भूल ।।७।।
कहें न तुम,
‘सहजो-निरा…कुल’
बड़े मासूम ।।८।।
न करें बातें,
‘सहजो-निरा…कुल’
कर दिखा दें ।।९।।
तानें न मारें,
‘सहजो-निरा…कुल’
यारों से हारे ।।१०।।
करें..जो ठाने,
‘सहजो-निरा…कुल’
बड़ों की मानें ।।११।।
न करें भूलें,
‘सहजो-निरा…कुल’
करके भूलें ।।१२।।
चटुकी न लें,
‘सहजो-निरा…कुल’
झट-चीन लें ।।१३।।
दूर चगुली,
‘सहजो-निरा…कुल’
खुद-ही-कुली ।।१४।।
ताँकें न झाँकें,
‘सहजो-निरा…कुल’
रोकें न टोकें ।।१५।।
मले न हाथ,
‘सहजो-निरा…कुल’
मैं…लें न हाथ ।।१६।।
सोचें न बुरा,
‘सहजो-निरा…कुल’
लेते चित् चुरा ।।१७।।
कादे कमल,
‘सहजो-निरा…कुल’
काँधे सबल ।।१८।।
झुकीं नजरें,
‘सहजो-निरा…कुल’
दुखी न करें ।।१९।।
न लाँघें हद,
‘सहजो-निरा…कुल’
जगत्-जगत ।।२०।।
खुद से इक,
‘सहजो-निरा…कुल’
खुद-मालिक ।।२१।।
निस्पृह-नेही
‘सहजो-निरा…कुल’
देह-विदेही ।।२२।।
ले चालें धका,
‘सहजो-निरा…कुल’
न देते धक्का ।।२३।।
चलें न चाले,
‘सहजो-निरा…कुल’
सलें न पालें ।।२४।।
लेते खा धोखा
‘सहजो-निरा…कुल’
देते न धोखा ।।२५।।
बैठते पीछे,
‘सहजो-निरा…कुल’
देखते नीचे ।।२६।।
माखन से हैं,
‘सहजो-निरा…कुल’
माफिक सिंह ।।२७।।
हँसी करें न,
‘सहजो-निरा…कुल’
चाँदी सी रैना ।।२८।।
करें न जल्दी,
‘सहजो-निरा…कुल’
हेल्दी ‘वेल’ धी ।।२९।।
न चाले दूब,
‘सहजो-निरा…कुल’
बचा लें खूब ।।३०।।
उठें गिर के,
‘सहजो-निरा…कुल’
हैं रबर के ।।३१।।
नाम के जैसे,
‘सहजो-निरा…कुल’
काम के पैसे ।।३२।।
गृहस्थ सन्त,
‘सहजो-निरा…कुल’
दरद-मन्द ।।३३।।
सुदूर-होड़,
‘सहजो-निरा…कुल’
लें ढूँढ तोड़ ।।३४।।
रास्ते से चालें,
‘सहजो-निरा…कुल’
रिश्ते निभा लें ।।३५।।
दिल मक्खन,
‘सहजो-निरा…कुल’
तिल दक्खन ।।३६।।
कच्चे न कान,
‘सहजो-निरा…कुल’
अच्छे इंसान ।।३७।।
चाँद बेदाग,
‘सहजो-निरा…कुल’
सोने-सहुाग ।।३८।।
रहें मिल के,
‘सहजो-निरा…कुल’
साफ दिल के ।।३९।।
सीधे औ’ साधे,
‘सहजो-निरा…कुल’
निभाते वादे ।।४०
शुभ शगुन,
‘सहजो-निरा…कुल’
सुरीली धुन ।।४१।।
बोलें कमती
‘सहजो-निरा…कुल’
सुनें, कीमती ।।४२।।
न तमतमा,
‘सहजो-निरा…कुल’
कर दें क्षमा ।।४३।।
हाथ ले हाथ,
‘सहजो-निरा…कुल’
चालते साथ ।।४४।।
दूर-जलन,
‘सहजो-निरा…कुल’
दूर चलन ।।४५।।
दें बना काम,
‘सहजो-निरा…कुल’
चाहें न नाम ।।४६।।
दिल पे न लें,
‘सहजो-निरा…कुल’
चलते चलें ।।४७।।
न डरें… पता,
‘सहजो-निरा…कुल’
न करें ख़ता ।।४८।।
सुनें न निंदा,
‘सहजो-निरा…कुल’
सुनैना चन्द्रा ।।४९।।
चश्मा नाक माँ,
‘सहजो-निरा…कुल’
न मनाक् गुमाँ ।।५०।।
क्षमा के बुत,
‘सहजो-निरा…कुल’
सोच अद्भुत ।।५१।।
ठण्डी में धूप,
‘सहजो-निरा…कुल’
प्यासे को कूप ।।५२।।
आगे पग लें,
‘सहजो-निरा…कुल’
जीत जग लें ।।५३।।
अंधे को आँखें,
‘सहजो-निरा…कुल’
परिन्दे-पाँखें ।।५४।।
भरें न हापी,
‘सहजो-निरा…कुल’
लें माँग माफी ।।५५।।
‘जी…ना चिढ़ते,
‘सहजो-निरा…कुल’
‘जीना’ चढ़ते ।।५६।।
न बात काटें,
‘सहजो-निरा…कुल’
राहत बाँटें ।।५७।।
‘जि आँखें नम,
‘सहजो-निरा…कुल’
राखें शरम ।।५८।।
औ’ चाँद पूनो,
‘सहजो-निरा…कुल’
व्यौहार नोनो ।।५९।।
बरगद-से
‘सहजो-निरा…कुल’
बढ़-चढ़ के ।।६०।।
जहाँ-दो नूर,
‘सहजो-निरा…कुल’
चश्मे-बद्दूर ।।६१।।
बोलते धीमे,
‘सहजो-निरा…कुल’
बो लेते ‘धी’ में ।।६२।।
‘सहजो-निरा…कुल’
सबसे खुल,
बनते पुल ।।६३।।
‘सहजो-निरा…कुल’
उठ…
कहते सूरज उठ ।।६४।।
‘सहजो-निरा…कुल’
कहें सुबहो,
शाम शुभ हो ।।६५।।
‘सहजो-निरा…कुल’
तिनके तोड़ें,
न ‘कि तिनके ।।६६।।
‘सहजो-निरा…कुल’
‘करते कुछ’,
बाद में मुख ।।६७।।
मैं छूता गया,
अपव्यय का द्वार
हुई त्यों…हार ।।१।।
हैं जान लेवा,
आइये…
पटाखों से करते तौबा ।।२।।
लिक्खी पटाखों पे मौत…
बस करो… हुआ बहुत ।।३।।
खूनी पटाखे,
जरा बच-के…
रख देंगें फटा…के ।।४।।
दूर से करो नमस्कार,
पटाखे हहा ! अंगार ।।५।।
करूँ
जाने क्यूँ प्यार,
पटा…खा गया जानें हजार ।।६।।
दें हॉस्पिटलें हवाले
जा…
पटाखे फोड़ने वाले ।।७।।
त्योहार दीपों का,
मना…ना पटाखों से
दे…ना धो…खा ।।८।।
ढ़ेर पटाखों के शिकार,
कहते ही अखबार ।।९।।
बिखरे कई परिवार,
पटाखे बड़े खूॅंखार ।।१०।।
दें….
ना मजा ही
पटाखे
दें हाँ..
सजा भी
सो जानवी ।।११।।
रुको,
चखाने में मजा,
मजा आता है पटाखों को ।।१२।।
खबरदार,
दर्ज नामे पटाखे ढ़ेर F.I.R. ।।१३।।
छीनें पटाखे खुशिंयाँ,
समझेगी कब दुनिया ।।१४।।
न जोड़ नाता,
पटाखों को खिलाना
मुँह की आता ।।१५।।
आम बात…
धो बैठना हाथ आँखों से,
पटाखों से ।।१६।।
सावधान…
लें छीन छोटे जीवों के,
पटा…खे कान ।।१७।।
सर ‘जी !
कर देती भार,
त्योहार,
फिजूलखर्ची ।।१८।।
हा ! आग,
बने जितना
तू पटाखों से दूर भाग ।।१९।।
जाँ बचा-के
हा !
करें खेल–खेल में
खेल पटाखे ।।२०।।
जपें पटाखे
हरदम
अंधेरा रहे कायम ।।२१।।
ज्योति भी…तर अनूठी,
दी पटाखों की खुशी झूठी ।।२२।।
क्या पटाखों का जाता,
उन्हें अपना
अपना घाटा ।।२३।।
यम का मुँह बोला भैय्या,
पटाखा जान-लिवैय्या ।।२४।।
उगले विष,
दूध पी–के,
ना…गिन पटाखे नीके ।।२५।।
जुबान मिश्री,
छुपाये छुरी
चीज पटाखे–बुरी ।।२६।।
छीनते श्वास हैं
पटाखे
शातिर बदमाश हैं ।।२७।।
अच्छा है…
टूटे संबन्ध,
पटाखों–से फूटे दुगन्ध ।।२८।।
आतिशबाजी,
पंक्ति में आती…शव…’जी’
जिनके ‘जि ।।२९।।
होते अन्दर से काले,
पटाखे
न भरोसे–वाले ।।३०।।
छोड़ रहम खाना,
आता पटाखों को
कहो ? क्या ना ।।३१।।
छुपे रुस्तम
पटाखे
बहुरूप…पठाये यम ।।३२।।
खुशी चुराना…
पटाखों को पड़ता नहीं सिखाना ।।३३।।
पटाखे बड़े मशहूर…
छीनने में चश्मेनूर ।।३४।।
ज्यादा क्या कहें हम,
जाऊँगा पटा…खा
कहे स्वयम् ।।३५।।
बगुले नादाँ…
चालबाजी में
आगे पटाखे ज्यादा ।।३६।।
छोड़ें पटाखे बगावते–बू
करे क्यूँ सोबत तू ।।३७।।
बताते…
धोखे–बाजी में
ये पटाखे अव्वल आते ।।३८।।
पटाखे बनें,
‘कि छोड़िये,
‘जान’ के भूखे भेड़िये ।।३९।।
चींटी के पर आते
मौत आती तो
पटाखे भाते ।।४०।।
भरोसा कर पटाखों का,
किसको दें हम धोखा ।।४१।।
छुरी शहद लिपटी,
पटाखे बे–हद कपटी ।।४२।।
दो दूर से ही दण्डौ़त
पटाखे खूँ खार बहुत ।।४३।।
देख आईना,
दीवाली…
और लक्ष्मी जाई चाइना ।।४४।।
आतिशबाजी
रही बाज़ी मार
ये कैसा दीप त्योहार ।।४५।।
अपना…
सर…गम
मेरा ले लिया
पापा दरिया ।।१।।
ज़िन्दगी,
रात अमावस की काली
पापा दीवाली ।।२।।
छूती आसमाँ…
ज़िन्दगी की पतंग
पापा के संग ।।३।।
पापा की छाँव है
जो कभी,
छू पाया न तनाव है ।।४।।
छूते–ही पैर…
ली…
भगवन् ने सुन…
पापा शगुन ।।५।।
साँची
पापा ही पापा जैसे…
जिन्दगी मेले में पैसे ।।६।।
पाँव फफोले…
देख ! पापा बोले…
रो तू ना…मैं हूँ ना ।।७।।
जब–तब…
मैं ही रूठा…
कब रूठे…
पापा अनूठे ।।८।।
बाजी हारते-हारते
जीता मैं…
थे पापा सामने ।।९।।
पहले खुदा से…
आते याद
पापा हैं ही जुदा से ।।१०।।
हुई मुझसे गुस्ताखी…
पापा ने ली खुदा से माफी ।।११।।
की…पापा आँखों ने बर्षा…
देख मुझे उन्नीसा–बीसा ।।१२।।
भर–विश्वास
पापा ने छुवाया,
ले काँधे आकाश ।।१३।।
रोते… हँसते बच्चे
रोते–हँसते
‘पापा’ फरिश्ते ।।१४।।
कालिख
मुख मेरा देख पाई ना
पापा आईना ।।१५।।
ठण्डी में मुठ्ठी बाँधी हुई हैं,
पापा
धागा–सुई हैं ।।१६।।
जिन्दगी
धूप चुभती दुपहरी,
पापा छतरी ।।१७।।
रहा होगा
न प्यार थोड़ा
पापा का बनना घोड़ा ।।१८।।
दिया कभी न रोने
पापा ने
ला…ला दिये खिलोने ।।१९।।
उठा हाथों में झुलाया
पापा ने
जो रोया हँसाया ।।२०।।
दो जिस्मेक जाँ
हम गिरते
चीख पड़ते
पापा ।।२१।।
सिखाते पापा
हों भले गर्दिशें
न खोना आपा ।।२२।।
न इस जहाँ में
पापा के जैसा
न उस जहाँ में ।।२३।।
दिया ला…ला के
हाथों में हर–वक्त
पापा–दरख्त ।।२४।।
खिलाया…खाना ले हाथ में,
पापा ने खाया बाद में ।।२५।।
पेंसिल थमा
पापा ने
आज
‘दिया’ थमा
आसमाँ ।।२६।।
दर्द था हुआ खतम…
‘फूँक’
पापा की मरहम ।।२७।।
साथ पापा की दुआ जो,
काम लिया हाथ हुआ वो ।।२८।।
नज़र पापा की बागवाँ
हुआ आसाँ…
सफर आस्माँ ।।२९।।
यूँ किया
‘कि न मुख पे कोई हँसा
पापा मदर्सा ।।३०।।
खुजलाई
गा…दी
देख…पापा
बच्चों की चाँदी-चाँदी ।।३१।।
वो पापा ही
दें दिला कामयाबी,
पा…पा याद दिला ।।३२।।
प्रभु
जिसमें होते गुरु
हो पंक्ति वो मॉं से शुरु ।।१।।
पूरी, पापड़, अचार,
दोपहर का टिफिन माँ ।।२।।
था कुछ, तभी तो लगा
रखती थी सदा डाँट माँ ।।३।।
खा खेल आते, लौट
मिलती खाते खुरचन माँ ।।४।।
बर्षे ‘कि कोई,
बन छतरी घड़ी घड़ी खड़ी माँ ।।५।।
स्केचर
स्केच मेरा बनाये देख
देख देख स्केच माँ ।।६।।
हप्ते में छुट्टी लें सभी,
छुट्टी नहीं ले तो सिर्फ माँ ।।७।।
घण्टी बजती
‘कि दिखती हँसती,
माई बस थी ।।८।।
शिशु दिलाये बिना मंजिल
माने न माँ का दिल ।।९।।
पौन से ज्यादा
दी आधी रोटी माँ…ने
दानी बनाने ।।१०।।
करती किसी बच्चे से
खूब प्यार ‘माँ’
संस्कृत ना ।।११।।
मुँह पे बच्चे
‘कि जब जब आई
मा…ला थमाई ।।१२।।
जिसके पास मॉं है,
उसकी मुट्ठी में आसमां है ।।१३।।
अब दिला न पाता कोई ‘मात’
आतीं तू याद ।।१४।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
पढ़े न खाली,
करे जुगाली ।।१।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
खाती स-आग,
न ‘कि दिमाग ।।२।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
बढ़ाये हाथ,
न ‘कि विवाद ।।३।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
जीमे सलीके से,
धीमे-धीमे ।।४।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
जय जिनेन्द्र बोले
पहले ।।५।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
न चाहे मान,
दे आये मान ।।६।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
लड़…के
लेती बोल,
अमोल ।।७।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
उतार चश्मा,
देखे करिश्मा ।।८।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
मिले शबरी से,
सब्र खीसे ।।९।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
ले चुन काँटे,
खुशिंयाँ बाँटे ।।१०।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
पचड़े पड़े न,
बिगड़े न ।।११।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
दूर तू-तू मैं-मैं,
निजी खेमे ।।१२।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
सलीके चाले,
मंजिल पाले ।।१३।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
पढ़ चेहरे ले,
भोली-भले ।।१४।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
न अटकी,
न तन झटकी ।।१५।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
सपने,
लेती कर अपने ।।१६।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
फेर चाबी,
ले-छू कामयाबी ।।१७।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
मति-मराल सी,
निरालसी ।।१८।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
फटे क्षीर,
ले बना पनीर ।।१९।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
महीन बड़े,
बुने कपड़े ।।२०।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
चुये घड़ा,
‘कि चुने गमला ।।२१।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
हड्डी लख,
न चबाये नख ।।२२।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
डरे न कल,
करे न छल ।।२३।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
निष्फिकर,
माँ हाथ पकड़ ।।२४।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
काटे कुतरे न
रात दिना ।।२५।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
पंक्ति न सूम,
बड़ी मासूम ।।२६।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
पढ़ाई,
पढ़ी अखर ढ़ाई ।।२७।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
संस्कृत निष्ठ,
संस्कृति इष्ट ।।२८।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
न पेंसिल से,
‘लिखे’ दिल से ।।२९।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
न अस्त व्यस्त
रहती…व्यस्त ।।३०।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
खुद खुद सी,
अद्भुत शशी ।।३१।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
बने न जोक,
न डरपोक ।।३२।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
भारत बोले,
वारि-न ढ़ोले ।।३३।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
साँचे-साँचे की,
मारे न शेखी ।।३४।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
बात ले पचा,
हाथ के बचा ।।३५।।
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’,
मिला के कुल,
है निराकुल ।।३६।।
न ले उबासी,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
खा के उपासी ।।३७।।
कच्ची न कान,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
बच्ची गुमान ।।३८।।
सकैण्ड काँटा,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
न खाये माथा ।।३९।।
सफेदी पेट,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
अप-टू-डेट ।।४०।।
जीमे न बोले,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
धीमे से बोले ।।४१।।
हाथ मनाना,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
साथ जमाना ।।४२।।
बुने न जाल,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
चुने न खाल ।।४३।।
जुग न तोड़े,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
मुख न मोड़े ।।४४।।
खाये, खिला के,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
बाँटे बुला के ।।४५।।
न सोचे बुरा,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
सकोचे जरा ।।४६।।
फेरे न रंग,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
करे न तंग ।।४७।।
खड़ी पाँवन,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
घड़ी पावन ।।४८।।
बोले सीमित,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
चुरा लेती चित् ।।४९।।
धूम मचा ले,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
रंग जमा ले ।।५०।।
न बने कैंची,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
अपने जैसी ।।५१।।
लेटे सो जाये,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
बैठे खो जाये ।।५२।।
बने न बोझ,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
ले माफी रोज ।।५३।।
दाँत औ’ मोती,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
बात औ’ पोथी ।।५४।।
देखती नीचे,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
बँधी विधि से ।।५५।।
दूर गुरुर,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
पखं मयूर ।।५६।।
स…ध्यान सुने,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
सद् ध्यान चुने ।।५७।।
दादा की लाठी,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
चश्मा भी दादी ।।५८।।
माँ मरहम,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
पापा कलम ।।५९।।
चाची चहेती,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
चाचा दृग् ज्योती ।।६०।।
छैय्या भईया,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
गैय्या गुईंया ।।६१।।
मामी पसंद,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
मामा सौगन्ध ।।६२।।
तीजी नयना,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
जी…जी आईना ।।६३।।
बुआ गुमान,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
मौसी मुस्कान ।।६४।।
लेवे न भाग,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
खेले न आग ।।६५ ।
न खाती झेप,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
रहती सेफ ।।६६।।
देती न तूल,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
ले भूल-भूल ।।६७।।
हँसे न और,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
धसे ‘जी’ और ।।६८।।
सितारा भोर,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
चाँद चित् चोर ।।६९।।
दिल पे न ले,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
बढ़ा पग ले ।।७०।।
बाँटे… कम ले,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
बाँट गम ले ।।७१।।
न राह रोके,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
हँसाय….रो…के ।।७२।।
बाँस गुट-की,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
न ले चुटकी ।।७३।।
नाचे, ना ‘जी ना,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
नचाये भी ना ।।७४।।
न खो…दे छुट्टी,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
न खोले मुट्ठी ।।७५।।
न डर रक्खे,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
रबर रक्खे ।।७६।।
देती रिश्ते सी,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
फरिश्ते जैसी ।।७७।।
न डोर तोड़े,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
बेजोड़ जोड़े ।।७८।।
ले बैठा गोट,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
देती ना चोट ।।७९।।
ताँके न झाँके,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
ताने न चाखे ।।८०।।
ओढ़े चूनर,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
हो…ले दूनर ।।८१।।
बचे… दिखावे,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
रुचे ‘कि खावे ।।८२।।
बिन्दी दे थान,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
हिन्दी दे मान ।।८३।।
पहरे चूड़ी,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
पहरे पूरी ।।८४।।
गिर…हो खड़ी,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
दूसरी पढ़ी ।।८५।।
न आखँ मीचे,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
भागे न पीछे ।।८६।।
ना कान खाली,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
नाक ना खाली ।।८७।।
रब पे फिदा,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
सब से जुदा ।।८८।।
माने कहना,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
जाने सहना ।।८९।।
जुल्म न सहे,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
आपे में रहे ।।९०।।
पानी न चाले,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
पानी संभाले ।।९१।।
चाँद तारों में,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
एक लाखों में ।।९२।।
खोती न आज,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
ज्योती जाँबाज ।।९३।।
चाँद सुलाती,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
सूर्य जगाती ।।९४।।
राखती पानी,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
है स्वाभिमानी ।।९५।।
हूरिक परी,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
दूर-चुगली ।।९६।।
अंगूर बोली,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
दूर-ठिठोली ।।९७।।
चले आहिस्ते,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
ले निभा रिश्ते ।।९८।।
एक विनीत,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
विवेक मीत ।।९९।।
करीबी-हार,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
ले बाजी-मार ।।१००।।
अकेली गो ‘री,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
और न जोड़ी ।।१०१।।
बाखुश्बू गुल,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
लाजे-दो-कुल ।।१०२।।
दबा न खाये,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
चबा-के खाये ।।१०३।।
ले दीर्घ साँस,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
जिये बिन्दास ।।१०४।।
दरद मन्द,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
वक्त पाबन्द ।।१०५।।
दे न धमकी,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
नैन नमकीं ।।१०६।।
पायल पाँव,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
काजल छाँव ।।१०७।।
राज न खो…ले,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
बारिस रो ले ।।१०८।।
न समझाये,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
समझ जाये ।।१०९।।
न दौड़े धूल,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
न तोड़े फूल ।।११०।।
रोगी… सो गई,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
होगी सो नई ।।११०।।
साथ सहेली,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
साफ हथेली ।।१११।।
दीया नदिया,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
कछुआ धिया ।।११२।।
‘जी’ भोली-भाली,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
है चोटी वाली ।।११३।।
सोच के… बढ़े,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
ले लोच…लड़े ।।११४।।
हेम भौ-कादे
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
प्रेम गो साधे ।।११५।।
प्रीति वर्धमाँ,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
जीती वर्तमाँ ।।११६।।
भींचे न होंठ,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
न लोट-पोट ।।११७।।
विगत गुमां,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
सयंत जुबां ।।११८।।
कांधे न खाली,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
वादे ना जाली ।।११९।।
शबरी दूजी,
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’
धागा व सूजी ।।१२०।।
जेब कफन,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
फरेब फन ।।१२१।।
मेंढ़क तोल,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
टाल-मटोल ।।१२२।।
बगुला भक्ति,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
बुझक्कड़ धी ।।१२३।।
टाईम पास,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
क्राईम पाश ।।१२४।।
ताव तनाव,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
‘नाव’ लगाव ।।१२५।।
काग धुलाई,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
दाग ढुलाई ।।१२६।।
कोट-कचेरी,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
नोट बटोरी ।।१२७।।
दुकान ब्याज,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
जुबान राज ।।१२८।।
छेद पत्तल,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
खेल कत्तल ।।१२९।।
दर्प दर्शन,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
दर्श दर्पण ।।१३०।।
मटर-गस्ती,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
जबरदस्ती ।।१३१।।
पान पसन्द,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
माणिक-चन्द ।।१३२।।
रोग जलन,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
लोक चलन ।।१३३।।
धी खरगोश,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
रागरु रोष ।।१३४।।
हरेक नशे,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
फरेबन से ।।१३५।।
तीन दो पाँच,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
मीन मेखाँच ।।१३६।।
खूब सोने से,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
डूब रोने से ।।१३७।।
कुट्टी पहल,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
मुट्टी गहल ।।१३८।।
खेल टोपी से,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
गैल खोटी से ।।१३९।।
केकड़े फन,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
झगड़े धन ।।१४०।।
बंदर बाँट
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
अदंर गाँठ ।।१४१।।
व्याल-चाल से,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
ताल-गाल से ।।१४२।।
खोट नीयत,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
मौत जीयत ।।१४३।।
किले हवाई,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
जग हँसाई ।।१४४।।
फास्ट फूड से,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
ऑफ मूड से ।।१४५।।
फटाखन से,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’
फनाफन से ।।१४६।।
फिजूलखर्ची,
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’,
मन की सच्ची ।।१४७।।
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’,
गुस्से से,
वक्त जाया किस्से से ।।१४८।।
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’,
ड्रग्स से, ड्रिकं से,
स्मोकिंग से ।।१४८।।
‘बच्ची’ प्रतिभा स्थली’,
खा मिठाई,
जा…पानी पी आई ।।१४९।।
बागान लेती मुस्कान
कली
‘बच्ची प्रतिभा स्थली’ ।।१५०।।
रोशन दां…
जो भर देता रोशनी से
मेरा मकाँ ।।१।।
है जो तो,
बाजा डर बाजा
वो घर का दरवाजा ।।२।।
दीवालें…
मन जिनका न करे,
‘कि चुगली खा लें ।।३।।
सूरज…
सुब्हो–सुब्हो निभाने जो
आ जाता फरज ।।४।।
रबर…
होने पर भी बेखबर
मैं बेफिकर ।।५।।
पेंसिल…
मेरे सपनों को
दिलाने वाली मञ्जिल ।।६।।
आईना…
कहे जो पल-पल,
रुक,
कर घाई ना ।।७।।
तू ‘साई…कल’
बोले,
‘रे ! चल रास्ते से
होले-होले ।।८।।
ट्रक…
नशे में बोल निकले
देते शिक्षा ‘टिरक’ ।।९।।
कहती सी
J.C.B.
अच्छी जिन्दगी
मिली जैसी भी ।।१०।।
कहती बस…
तलक मुकाम
आ ही गया बस ।।११।।
कंघी…
वालों के प्रश्न, जो सुलझाती,
प्रेम में रंगी ।।१२।।
कपड़े…
देख जाना जमाने ने
न पूछा क्या पढ़े ।।१३।।
वाईपर…
‘कि जन्मा
जाऊँ फिसल न घाई कर ।।१४।।
टेलीविजन…
कुछ न कुछ जाता थमा,
डेली धी धन ।।१५।।
फैन…
बखूब आता
दिलाना जिसे निंदिया चैन ।।१६।।
कूलर…
हवा आह
जिसकी हवा वाह छूकर ।।१७।।
मिक्सी…
मनक सी राहत,
जिससे न ‘कि तनिक सी ।।१८।।
छत…
‘री राखी
मौसम सर्दी, गर्मी,
बरसा–पत ।।१९।।
खूँ…
दौड़ रहा ‘के रंगों में,
बैठ सकूँ, मैं साथ सुकूँ ।।२०।।
काजर…
आँखों की कीमत
दुगुणी जो देता कर ।।२१।।
न छूती छोर तोर-मोर,
वो मीठे पानी की बोर ।।२२।।
कुआँ…
आ कोई प्यासा न जाये,
रही जिसकी दुआ ।।२३।।
आ अपने को छाता…
न मुझे वर्षा में देख पाता ।।२४।।
जाते ही मद-रिसा
जहाँ दूसरा ही, मदर…सा ।।२५।।
जॉब…
वजह एक यही
‘के पूरे
अधूरे ख्वाव ।।२६।।
बचपन…
था जब,
साफ-सुथरा सा सच मन ।।२७।।
बुढ़ापा…
खोया, लौटा लाता
जो पग उलटे आपा ।।२८।।
आत्म विश्वास…
एहसास
‘के हूँ मैं भी कुछ खास ।।२९।।
मेरा आतम…
पहने–गहने जो लाजो-शरम ।।३०।।
मेरे भगवन्…
मुझे जिन सा होना
सजग–मन ।।३१।।
सत्संग…
भरे जीवन मेरे
जिस ने सतरंग ।।३२।।
खुश–किस्मती…
लक्ष्मी अण्टी में,
कण्ठी में सरस्वती ।।३३।।
दुकाँ…
बखूब, खूब चल के
रही रास्ता जो दिखा ।।३४।।
पा जायें राह मासूम,
दे पनाह क्लास रूम ।।३५।।
दी बुजुर्गो की बुनियाद,
है आई ‘कि दुनिया हाथ ।।३६।।
दादा बढ़ई…
बना बना
जो चीजें दें नई नई ।।३७।।
आशियाना…
‘कि देने लगा तवज्जो
मुझे जमाना ।।३८।।
सच बोलने की आदत,
मंजूर कि इबादत ।।३९।।
नारी…
भागती दौड़ती हित पर
उम्मर सारी ।।४०।।
कागा…
सुबह सुबह आ कहे
तू भी न अभागा ।।४१।।
मध्यमा,
पंजों पे होते ही खड़े,
जो छूती आसमाँ ।।४२।।
धागा सुई,
जो किसी ने,
तो इसी ने भलाई छुई ।।४३।।
तारे…
मिलने आते पुरखे,
मिस जिस हमारे ।।४४।।
जानें खुशिंयाँ लौटाना बेहिसाब,
पौधा गुलाब ।।४५।।
पेंक्रियाज…
लो हाजिर जो,
देते ही एक आवाज ।।४६।।
रेक्टम…
बनें मरहम
भावना ‘कि मर…हम ।।४७।।
फेफड़े…
हित मदद खड़े
कद में काफी बड़े ।।४८।।
लीवर…
कह के पुकारे जिगर
न ‘कि दीगर ।।४९।।
वात, पित्त व कफ,
स्वस्थ्य मैं रहूँ,
करे ‘कि जप ।।५०।।
स्किन…
है राखी लाज
वरना
देखा ‘कि आती घिन ।।५१।।
पलक…
बिछी निजी इन्तजार में
जो सब्र रख ।।५२।।
देह दो दह
जाये जो रह
‘अस्ति’
सार्थक अस्थी ।।५३।।
‘मानो’ जिन्दगी रूप परिन्दे पाखें
अनूप आँखें ।।५४।।
नासा…
जिसपे टिकी नज़र
‘कि छू मन्तर आशा ।।५५।।
दाँत…
सिखाते
रहना कैसे मिल-के एक साथ ।।५६।।
होंठ…
न हिले जो
अहिंसा का लिये बिना सपोट ।।५७।।
माथा…
झुकना दर-दर पर,
न जिसको आता ।।५८।।
भ्रूएँ…
जिनके मध्य में ध्याये मन्त्र
प्रसिद्धि छुयें ।।५९।।
केश…
जो हुये क्या सफेद
आया याद अपना देश |।६०।।
जुबान
एक समान
बचपन
क्या
पचपन ।।६१।।
गला
सामने जिसे देख
बगलें झाँकें कोकिला ।।६२।।
अंगुलिंयाँ…
ले कलम दी बदल मेरी दुनिया ।।६३।।
पैर…
दें करा फोकट में
विदेश-देश की सैरे ।।६४।।
घुटने…
बल जिनके चल
लागे हाथ सपने ।।६५।।
कदम…
बढ़े मंजिल की तरफ
जो हरदम ।।६६।।
कमर…
बाँधा भर
छू-मंतर ‘कि लो बाधा हर ।।६७।।
नाखून…
देखा जिन्हें
आ जाता याद चन्द्रमा पून ।।६८।।
तर्जनी…
‘उठी- बोल’
अंगुली तीन ओर अपनी ।।६९।।
अँगूठा…
वक्त वक्त पे
जो दे-बता रास्ता अनूठा ।।७०।।
रखने वालीं
सीलीं सीलीं निगाहें
दो फैलीं बाहें ।।७१।।
दरख्त…
और काम
आता रहता जो हर वक्त ।।७२।।
परिन्दा…
आत्म-प्रशंसा
दूर-कोस
जो पर-निंदा ।।७३।।
ट्यूब लाईट…
खिलाफ अँधेरे जो छेड़े फाईट ।।७४।।
‘रे मामा चाँद मेरा…
रात
छोड़े न मुझे अकेला ।।७५।।
रसाई घर,
कोई रहती जिसे मेरी फिकर ।।७६।।
भाखी…राखी मैं भी दर…पन
छोड़ो भी भटकन ।।७७।।
कोट… राखी जो ओट
गर्मी सपोट
दे ठण्डी चोट ।।७८।।
तेल…
पा मची बालों की
खुशिंयों की रेलमपेल ।।७९।।
पायजेब…
‘री रही तो राहत
पा एकौर जेब ।।८०।।
बिछिया…
साथ जिसके उठ-बैठ
हंस धी-छिया ।।८१।।
टार्च…
सच में,
सूरज से इक्कीसी ही जो कद में ।।८२।।
पवन…
बिना जिसके
कल्पना
से परे जीवन ।।८३।।
बिजली…
इस दुनिया की
दुनिया ही ‘रे बदली ।।८४।।
पेज…
दे मुझे रोशनी
की जिसने स्याही इमेज ।।८५।।
कह पलट
ली…चि
चि…ली क्या कोई हमसे ज्यादा ।।८६।।
कमीज…
मुझे बचाने पसीने से
गई जो भींज ।।८७।।
बटन…
बिन जिसके है
बनने वाली बट…न ।।८८।।
डेडी…
जिन्होंने साथ साथ नाईट
लुटाये डे भी ।।८९।।
ताऊ जी…
प्यार-दुलार की
जिन्होंने दी ढ़ेर पूँजी ।।९०।।
बहना…
है क्या चाहिये
जिससे न पड़ा कहना ।।९१।।
दादू…
रहती हाथों में
घड़ी घड़ी ‘के छड़ी जादू ।।९२।।
चाची…
जिन्होंने
जी गहरे उतारा
कहना साँची ।।९३।।
चाचा…
भरोसा किया
न परखा न मुझको जाँचा ।।९४।।
रहती सदा
साथ मेरे जिसकी दुआ
माँ बुआ ।।९५।।
मामी…
जो देती रो,
देख जर्रा सी भी मुझमें खामी ।।९६।।
मामा…
न दिया फिसलने ‘के हाथ
कसके थामा ।।९७।।
साथी…
नाम मुझको दिया,
थे जले माफिक बाती ।।९८।।
गुरु जी…
चूर-चूर गुरुर
दी दृग् जिन्होंने तीजी ।।९९।।
पड़ोसी…
बड़े ही सन्तोषी,
जिनकी चर्या सन्तों सी ।।१००।।
सिवा मेरे न
देता कुछ दिखाई,
ताऊ-व-ताई |।१०१।।
जो पूर्णिमा सी
दुनिया स्याही निशी
पूरण माँ-सी ।।१०२।।
ला…ला दी
जिन ने नसीहत न ‘कि लादी
माँ दादी ।।१०३।।
जिन्हें चन्दन
प्रभु चरण रज
पूज्य पूर्वज ।।१०४।।
मम्मा
करीब होना जिनका
करें बौना आसमाँ ।।१०५।।
हाई-को ?
(१)
और न अता पता
पास श्री गुरु निराकुलता
(२)
गुरु सा और कौन ?
जमीं ही नहीं,
आस्मां भी मौन
(३)
जिस्म रूह में
होता है रिश्ता वही
शिष्य गुरु में
(४)
खाली हाथ न करें दर्शन गुरु
लो रोना शुरु
(५)
बस आ गया,
चल…
धका, दें दिला गुरु मंजिल
(६)
कल्प तरु न यूँ माया
बिना माँगे गुरु से पाया
(७)
‘तरु से’
सीख लेना औरों को खींच लेना
गुरु से
(८)
गुरु जी कभी न होते खफ़ा
बच्चों से जैसे पापा
(९)
तरु ने लौटा दिया,
सभी तो लुटा दिया गुरु ने
(१०)
कुछ हटके ढ़ाली मूर्ति गुरु जी,
तभी न दूजी
(११)
किसी का बुरा न सोचते गुरु जी,
दूजे प्रभु ही
(१२)
करना पड़े ‘कि आगाह,
दें गुरु जी वो न राह
(१३)
शीतल जैसे माटी घड़े,
गुरु
‘जी’ के होते बड़े
(१४)
गई खो काली रैन,
गुरु जी ने, थे ही खोले नैन
(१५)
हैं अक्षरों में,
अकार समान,
श्री गुरु भगवान्
(१६)
चेहरे पढ़ लेते अच्छे से,
गुरु जी हैं माँ जैसे
(१७)
दूजी माँ की ही छवि,
गुरु जी होते न मतलबी
(१८)
बनायें खुद सारीखा,
गुरु आगे ‘पारस’ फीका
(१९)
ऐसे कैसे हैं,
गुरु जी हार जाते,
माँ के जैसे हैं
(२०)
बस हों शिशु प्यासे,
गुरु पिलाते अमृत माँ से
(२१)
कैसे भी देंगे बता हल,
दे बता गुरु मुश्किल
(२२)
भूल किसी से भी हो,
आँखें गुरु जी की पड़तीं हैं रो
(२३)
बड़े सरल,
होते गुरु जी
जल भिन्न कमल
(२४)
मुफ्त बाँटने में खुश्बू,
रहें आगे फूलों से गुरु
(२५)
गुरु मित्र ही दूसरे,
थाम लेते भक्त जो गिरे
(२६)
समाँ बागबां
गुरु
शिष्य-दाने
दें भिजा आसमां
(२७)
गिनती उसी से हो शुरु
जिसकी तरफी गुरु
(२८)
गर हो इच्छा
देते माटी के गुरु वर भी शिक्षा
(२९)
रहें,
पै
स्पर्शें न संसार जल
हैं गुरु कमल
(३०)
तरु
अपने लिए न खर्चें निध अपनी
गुरु
(३१)
गुरु दर्शन पाके,
हम न हमें मंजिल ताँके
(३२)
लोग उलझा दें,
पहेलियाँ,
गुरु जी सुलझा दें
(३३)
इन्हें गुरु ने चुना,
उन्हें न,
कभी ऐसा न सुना
(३४)
हैं मिठास में कहां,
वैसे सन्तरे
जैसे सन्त ‘रे
(३५)
बहुत अच्छे
होते गुरु जी
जैसे
निश्छल बच्चे
(३६)
फँस तो जाते,
बातों में गुरु जी न कभी फँसाते
(३७)
‘और’ नाजुक कमल,
गुरु खुद को नारियल
(३८)
बाहर से,
‘ना…रियल’
भीतर से
गुरु ‘बर’से
(३९)
बिना गाँठ,
लें रिश्ते धागे जोड़,
श्री गुरु माँ और
(४०)
माँ कभी नहीं भूलती,
करें बच्चे ही ये गलती
(४१)
रूठे,
झूठे भी तुम
मेरा टूटना,
‘होगा’
झूठ ना
(४२)
पा बेशुमार गुरु दुलार,
शिष्य ले बाजी मार
(४३)
न पहनाते ताबीज
सिखलाते गुरु तमीज
(४४)
सिर्फ तुझसे मतलब है
तुही मेरा रब है
(४५)
माँ से गुरु
न रक्खें, पेट में बस नौ मास शिशु
(४६)
आगे श्री गुरु चले,
‘के काँटें चुभें मुझे पहले
(४७)
न सोते,
गुरु जी
रात भर
मृग-‘लाँछन’ धोते
(४८)
विद्या सागर मंथन,
दे अनेक नेक रतन
(४९)
बिना कलम-कापी,
श्री गुरु जी दें सिखला काफी
(५०)
बनाया
शब्द
‘गुरु’
तुमनें…
मैं भी आया जुड़ने
(५१)
ब्रह्मा न विष्णु न महेश,
धी जैसी गुरु विशेष
(५२)
डरूँ,
मैं सुई
कहीं जाऊँ न खो
दे गुरु-सूत्र दो
(५३)
मैं गया खोता ही खोता
लगा विद्या-सिन्धु में गोता
(५४)
करना खूब बातें,
करूॅं क्या ? भर पै आतीं आंखें
(५५)
तुम और के हो,
रहो…
थे, तुम्हारे रहेंगे हम
(५६)
वैसे जोड़ें न,
जोड़ें तो गुरु पीछे उसे छोड़ें न
(५७)
‘वाह’ गजब !
था नया-नया,
‘दिया’ दे दिया सब’
(५८)
और द्वीप के लगते तुम,
आँख थारी जो नम
(५९)
गु…गुपाल जो
रु…अरु
मन से नो-जात-बाल जो
(६०)
छाहरी गर्मी में,
बर्षा में छतरी
माँएँ सबरी
(६१)
मीठा ‘गुर’ उ सी जुबां
किसी की तो सिर्फ़ गुरु जी
(६२)
ले जाते गुरु ‘जी’ चुरा के,
प्रभु जी सा मुस्कुरा के
(६३)
देते हैं सिल उधड़े रिश्ते
गुरु और फरिश्ते
(६४)
अजनबी
हो करीबी जाता,
गुरु को जादू आता
(६५)
सुन था रक्खा
आपको सुन आज अमृत चखा
(६६)
जादू से दूर हैं,
गुरु जादूगर मशहूर हैं
(६७)
पढ़ चेहरे लेते गुरु जी,
पढ़े जो कक्षा दूजी
(६८)
होता प्रभु के होने का अहसास,
गुरु के पास
(६९)
जाँ निकले
‘श्री गुरु-मुख’
फिर बद्-दुआ निकले
(७०)
होते अनोखे,
गुरु-पैर छूने के,
छोटे न मौके
(७१)
गुरु नयना,
सीखे ही न,
किसी को बुरा कहना
(७२)
चित् चुराने का मंत्र,
पा विरासत में जाते सन्त
(७३)
गुरु-रु-माँ,
हैं हारने में माहिर
जगज्-जाहिर
(७४)
सर्दी में धूप गुनगुनी,
गर्मी में छाहरी मुनी
(७५)
सोचें भलाई सब की,
परछाई गुरु रब की
(७६)
जाने जमाना,
तुम्हें न आता, किसी को ठुकराना ।।
(७७)
जगत् रुलाये,
आप ही जिसे, आँसु पोंछना आये ।
(७८)
‘सबका कुछ-कुछ है,
पै तू मेरा सब कुछ है’
(७९)
मेरी थकान
छू-मन्तर, छू एक तेरी मुस्कान ।
(८०)
रहता जब लग रस्ता ।
श्री गुरु निभाते रिश्ता ।।
(८१)
गिनती उसी से हो शुरु ।
जिसकी तरफी गुरु ।
(८२)
किये छिद्रों को देते हैं भर,
‘धागे’ श्री गुरुवर
(८३)
गुरूर, अंतस्थ ‘र’ हटा ।
‘कि गुरु-पन प्रकटा ।।
(८४)
सहज-निरा’कुल लो बना
बस मुझे अपना
(८५)
अपने पास बुला लो,
दी जिन्दगी,
तुम्हीं सँभालो
(८६)
तुम्हारे सिवा
मतलब न मुझे, किसी और से
(८७)
आते जिनके ख्वाबों में,
ले लो उन भक्तों में हमें
(८८)
है न अंधेरा तले दीया,
ले चालो वो नगरिया
(८९)
ले चालो उस देश,
‘ड्रेस’
जहाँ पे एक
‘एड्रेस’
(९०)
विनन्ती म्हारी,
निकल आये आप से रिश्तेदारी
(९१)
जाऊँ तो, कहाँ मैं,
मेरे तुम एक हो, दो-जहां में
(९२)
गुरु जी तुम्हें
हद से गुज़र के
चाहता हूँ मैं
(९३)
तेरे नाम से जाने मुझे जहां,
दे ये दो वरदाँ
(९४)
पा गया चारु पंख मोर ।
देख लो मेरी भी ओर ।।
(९५)
‘आपका दिल है,
या माया ओ !
आया जो,
समाया वो’
(९६)
जिनके आँसु न थमें ।
ले लो भक्तों में उन हमें ।
(९७)
हीरा न मोती,
‘चाहिये’
मुस्कान,
हाँ भले ही छोटी
(९८)
आप का निरा…कुल है ।।
और कौन निराकुल है ।
(९९)
थामे रखना मोर ड़ोर
तोड़ना ‘मत’ छोड़ना
(१००)
दो तकदीर बना
बनाया नीर को क्षीर सुना
(१०१)
झरते आँखों से बोल ।
रिश्ता गुरु शिष्य अमोल ।।
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