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विधान

30. दीवाली केवल ज्ञान लक्ष्मी विधान

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

समर्पण भावना

अमृत रूखा सूखा ।
साधु न लौटा भूखा ।।
पर धन पत्थर ढ़ेरी ।
मुझपे बड़ी कृपा है तेरी ।
भगवन् ! बड़ी कृपा है तेरी ।।१।।

ना मुझे किसी से लेना ।
ना मुझे किसी का देना ।।
निरत मदद बिन देरी ।
मुझपे बड़ी कृपा है तेरी ।
भगवन् ! बड़ी कृपा है तेरी ।।२।।

जुगनू साथ सितारे ।
चाँद दिया ले चाले ।।
रातरि भले अंधेरी ।
मुझपे बड़ी कृपा है तेरी ।
भगवन् ! बड़ी कृपा है तेरी ।।३।।

निंदिया चैन सुला ले ।
बिंदिया जैन सजा लें ।।
रास न हेरा फेरी ।
मुझपे बड़ी कृपा है तेरी ।
भगवन् ! बड़ी कृपा है तेरी ।।४।।

सार्थ नाम ‘वर’-साता ।
खेत तुसार न खाता ।।
छैय्या धूप घनेरी ।
मुझपे बड़ी कृपा है तेरी ।
भगवन् ! बड़ी कृपा है तेरी ।।५।।

दया धर्म फिर धन है ।
पाप कर्म अनबन है ।।
सहज सहजता मेरी ।
मुझपे बड़ी कृपा है तेरी ।
भगवन् ! बड़ी कृपा है तेरी ।।६।।

दोहा
छोर न जब तक आ चले,
छोड़ ना देना डोर ।
‘स‌हज निराकुल’ बन स‌का,
बड़ी कृपा है तोर ।।

पूजन प्रारंभ

‘अप्प दीव भव’ भवि ! कह चाले ।
कर्म शुक्ल ध्यानानल जारे ।।
वीर ! तीर जयकारे गूंजे ।
कौन न पूजे, शिख गुरु दूजे ।।
भूल मूल क्या ? भान हुआ है ।
गौतम केवल-ज्ञान हुआ है ।।
‘अप्प दीव’ जागे ले आशा ।
मृण दीपों में भरा प्रकाशा ।।
मनु मृण तन करते संस्कारा ।
हित मेटन मानस अंधियारा ।।
ऋद्धि चौंसठी केवल ज्ञाना ।
आज केवली, कल निर्वाणा ।।
हृदय वेदिका आन पधारो ।
तारे नेक, मुझे भी तारो ।।
ॐ ह्रीं केवल ज्ञान लक्ष्मी मण्डित
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अत्र अवतर ! अवतर ! संवौषट् !
इति आह्वाननम्
अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:!
इति स्थापनम्
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् !
इति सन्निधिकरणम्

पीछा जन्म मरण से छूटा ।
अमृत अनूठा, निर्झर फूटा ।
ढ़ोल बजाओ ।
ढ़ोक लगाओ ।‌
गंगा जल लाओ ।।
महिमा केवल ज्ञान लक्ष्मी की,
आओ ‘री गाओ ।
पूज रचाओ ।
पर्व मनाओ ।
दृग जल झलकाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ’री आओ ।।
ॐ ह्रीं श्री गणी-गौतम-भगवन् !
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अब संसार ताप ना थोड़ा ।
लगा किनारे तोरा मोरा ।
झूम दिखाओ ।
धूम मचाओ ।
घिस चन्दन लाओ ।।
महिमा केवल ज्ञान लक्ष्मी की,
आओ ‘री गाओ ।
पूज रचाओ ।
पर्व मनाओ ।
दृग जल झलकाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ’री आओ ।।
ॐ ह्रीं श्री गणी-गौतम-भगवन् !
चंदन निर्वपामीति स्वाहा ।।

पद अखण्ड अक्षय पाया है ।
चारों खाने चित् माया है ।
पंख लगाओ ।
रंग उड़ाओ ।
कण अक्षत लाओ ।।
महिमा केवल ज्ञान लक्ष्मी की,
आओ ‘री गाओ ।
पूज रचाओ ।
पर्व मनाओ ।
दृग जल झलकाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ’री आओ ।।
ॐ ह्रीं श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।

काम बाण विध्वंसे सारे ।
नासा टिका रखे दृग कारे ।।
लगन लगाओ ।
सु…मन बनाओ ।
दिव्य पुष्प लाओ ।।
महिमा केवल ज्ञान लक्ष्मी की,
आओ ‘री गाओ ।
पूज रचाओ ।
पर्व मनाओ ।
दृग जल झलकाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ’री आओ ।।
ॐ ह्रीं श्री गणी-गौतम-भगवन् !
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।

क्षुधा तृषादिक एक न दोषा ।
मूर्ति सौम्य ! दर्पण सन्तोषा ।।
फाग मनाओ ।
राग घटाओ ।
सुर-व्यंजन लाओ ।।
महिमा केवल ज्ञान लक्ष्मी की,
आओ ‘री गाओ ।
पूज रचाओ ।
पर्व मनाओ ।
दृग जल झलकाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ’री आओ ।।
ॐ ह्रीं श्री गणी-गौतम-भगवन् !
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

महा मोह अंधियार मिटाया ।
अपना वैभव खोल दिखाया ।।
ज्योत जगाओ ।
मोह घटाओ ।
मण-दीवा लाओ ।।
महिमा केवल ज्ञान लक्ष्मी की,
आओ ‘री गाओ ।
पूज रचाओ ।
पर्व मनाओ ।
दृग जल झलकाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ’री आओ ।।
ॐ ह्रीं श्री गणी-गौतम-भगवन् !
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कर्म अनंत समाप्त किये हैं ।
नन्त चन्तुष्टय प्राप्त किये हैं ।
माल रचाओ ।
द्वार सजाओ ।
सुगंध दश लाओ ।।
महिमा केवल ज्ञान लक्ष्मी की,
आओ ‘री गाओ ।
पूज रचाओ ।
पर्व मनाओ ।
दृग जल झलकाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ’री आओ ।।
ॐ ह्रीं श्री गणी-गौतम-भगवन् !
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।

साथ सींह हिरणा सम-शरणा ।
सुन धुन सुरपुर सिरपुर तरणा ।।
प्रीत जगाओ ।
गीत उठाओ ।
ऋत ऋत फल लाओ ।।
महिमा केवल ज्ञान लक्ष्मी की,
आओ ‘री गाओ ।
पूज रचाओ ।
पर्व मनाओ ।
दृग जल झलकाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ’री आओ ।।
ॐ ह्रीं श्री गणी-गौतम-भगवन् !
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कुशल क्षेम पूछे शिव गोरी ।
पद अनर्घ आया है झोरी ।।
थाल सजाओ ।
भाल झुकाओ ।
अष्ट द्रव्य लाओ ।।
महिमा केवल ज्ञान लक्ष्मी की,
आओ ‘री गाओ ।
पूज रचाओ ।
पर्व मनाओ ।
दृग जल झलकाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ’री आओ ।।
ॐ ह्रीं श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

विधान प्रारंभ

होड़ न, रुकना आया ।
मृग कस्तूरी पाया ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
गरिमा अगम महान ।।

करुणा क्षमा निधान ।
गणि गौतम भगवान् ।।
हृदय विराजो आन ।
हेत सार्थ कल’याण ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
गरिमा अगम महान ।।
ॐ ह्रीं केवल ज्ञान लक्ष्मी मण्डित
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अत्र अवतर ! अवतर ! संवौषट् !
इति आह्वाननम्
अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:!
इति स्थापनम्
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् !
इति सन्निधिकरणम्

समर्पण पूजन विधान

नमन कोटि अरिहन्ता ।
सिद्ध सूरि भगवन्ता ।।
उपाध्याय जै ढ़ोक ।
नुति मुनि जेते लोक ।।
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ
ए ऐ ओ औ अं अः
अक्षर असिआ उसा नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मंगल केवल बुद्धा ।
मंगल अनन्त सिद्धा ।।
मंगलमय निर्ग्रन्थ ।
मंगल करुणा पन्थ ।।
ॐ ह्रीं अर्हं क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
अक्षर चतुर्विध मंगलाय नमः
दक्षिण-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।

उत्तम हितोपदेशी ।
उत्तम सिद्ध हितैषी ।।
ऋषि, मुनि, यति, अनगार ।
उत्तम दया प्रचार ।।
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
अक्षर चतुर्विध लोकोत्तमाय नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।

चरणा अरिहत शरणा ।
शरणा सिद्ध अगणना ।।
मुनि नासा दृग टेक ।
शरण अहिंसा एक ।।
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
य र ल व, श ष स ह
अक्षर चतुर्विध शरणाय नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।

प्रथम वलय पूजन विधान
*क्षायिक रत्नत्-त्रय*

दृढ़ निमित्त दृग सांचे ।
बढ़ मण, दें बिन यांचे ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१‌।।
ॐ ह्रीं क्षायिक सम्यक् दर्शन मण्डित
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१।।

अवगम अब गम खाली ।
जगमग दीप दिवाली‌ ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।२।।
ॐ ह्रीं क्षायिक सम्यक् ज्ञान मण्डित
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२।।

व्रत विरहित अतिचारा ।
जैन गगन ध्रुव तारा ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।३।।
ॐ ह्रीं क्षायिक सम्यक् चारित्र मण्डित
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३।।

*’स-ह-जो’ गुण*

रत गर्हण मन हल्का ।
दर्पण वत् जग झलका ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१।।
ॐ ह्रीं अनन्य सर्वज्ञ
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४।।

हित जन-जन का साधा ।
रीझी सिरपुर राधा ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।२।।
ॐ ह्रीं एक हितोपदेशी
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५।।

उधड़े रिश्ते सीते ।
नो कषाय नौ रीते ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।३।।
ॐ ह्रीं परम वीतरागी
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६।।

द्वितीय वलय पूजन विधान
*अनन्त चतुष्टय*

घात दर्श आवरणा ।
पाँत दर्श आभरणा ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१।।
ॐ ह्रीं अनन्त दर्शन मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१।।

विघात ज्ञानावरणा ।
प्रभात ज्ञानाभरणा ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।२।।
ॐ ह्रीं अनन्त ज्ञान मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२।।

अन्तराय विनशाया ।
संबल अनन्त पाया ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।३।।
ॐ ह्रीं अनन्त वीर्य मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३।।

मोह अनंत विघाता ।
सुख अनंत गुण नाता ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।४।।
ॐ ह्रीं अनन्त सुख मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४।।

*अष्ट प्रातिहार्य*

दृष्टि उठा कब देखा ।
सिंहासन सोने का ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१।।
ॐ ह्रीं सिंहासन मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५।।

अद्भुत दृश्य सलोना ।
तर अशोक तन सोना ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।२।।
ॐ ह्रीं वृक्ष अशोक मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६।।

चॅंवर ढ़ोरते देवा ।
पर-हित अंखियां रेवा ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।३‌।।
ॐ ह्रीं चामर मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७।।

मित्र दीन कहलाये ।
छत्र तीन सिर छाये ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।४।।
ॐ ह्रीं छत्र-त्रय मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८।।

चरणन सु-मनन वर्षा ।
मति परिणति आदर्शा ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।५।।
ॐ ह्रीं पुष्प-वृष्टि मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९।।

स्वर्ण सुगंधी बिरली ।
गंध-कुटी धुन बिखरी ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।६।।
ॐ ह्रीं दिव्य-ध्वनि मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०।।

राग विगत, गत द्वेषा ।
भामण्डल खुद जैसा ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।७।।
ॐ ह्रीं भामण्ड़ल मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।११।।

देव दुंदुभी बाजे ।
नत राजे महराजे ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।८।।
ॐ ह्रीं देवदुन्दुभि मण्डिताय
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१२।।

तृतीय वलय पूजन विधान

*अठारह दोष*
क्षुधा बात झूठी है ।
झिर अमरित फूटी है ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१।।
ॐ ह्रीं अवशोष क्षुधा दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१।।

तृषा अलविदा बोली ।
तिष्णा यम दर छोड़ी ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।२।।
ॐ ह्रीं अवशोष तृषा दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२।।

पिण्ड जन्म से छूटा ।
जागा पुण्य अनूठा ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।३।।
ॐ ह्रीं अवशोष जन्म दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३।।

सुमरण सुहाग सोना ।
मरण कहाँ अब होना ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।४।।
ॐ ह्रीं अवशोष मरण दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४।।

राख रखा जो आपा ।
चित्‌ चउ कोन बुढ़ापा ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।५।।
ॐ ह्रीं अवशोष जरा दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५।।

राग न डाले डोरे ।
सुना, कहें क्या छोरे ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।६।।
ॐ ह्रीं अवशोष राग दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६।।

द्वेष भाव गुमसुम है ।
धरा अशेष कुटुम है ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।७।।
ॐ ह्रीं अवशोष द्वेष दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७।।

अनबन कूट गली जो ।
तव-मम रूठ चली लो ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।८।।
ॐ ह्रीं अवशोष मोह दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८।।

भोग टूक दो रिश्ता ।
रोग ढूंढ़ते रस्ता ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।९।।
ॐ ह्रीं अवशोष रोग दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९।।

निर्जन क्रन्दन त्यागा ।
शोक दाब दुम भागा ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१०।।
ॐ ह्रीं अवशोष शोक दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०।।

निद्रा बाज़ी हारी ।
मन तरंग क्या मारी ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।११।।
ॐ ह्रीं अवशोष निद्रा दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।११।।

चिंता दूर दिखानी ।
स्वपर वस्तु पहचानी ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१२।।
ॐ ह्रीं अवशोष चिंता दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१२।।

भय सप्तक पर लागे ।
क…छुआ भी…तर? जागे ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१३।।
ॐ ह्रीं अवशोष भय दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१३।।

वस्तु स्वरुप पिछाना ।
विस्मय हेत न थाना ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१४।।
ॐ ह्रीं अवशोष विस्मय दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१४।।

भिन्न जीव जड़ दोई ।
खेद खिन्नता खोई ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१५‌।।
ॐ ह्रीं अवशोष खेद दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१५।।

हक न किसी का छीना ।
क्यूँ कर झले पसीना ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१६।।
ॐ ह्रीं अवशोष श्वेद दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१६।।

मद से दामन झटके ।
कद पाया कुछ हटके ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१७।।
ॐ ह्रीं अवशोष मद दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१७।।

सुरत याद ना आती ।
भेजे वधु शिव पाती ।।
लक्ष्मी केवल ज्ञान ।
महिमा आप समान ।।१८।।
ॐ ह्रीं अवशोष रति दोष
श्री गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१८।।

जयमाला

बड़ी अद्भुत है ।
ज्योत अनबुझ है‌ ।
शुभ मुहूरत है ।
वासन्त ऋत है ।
लक्ष्मी केवल-ज्ञान सरीखी खुद है ।

करिया नाग ।
दरिया झाग ।
बरिया बाग ।
चांद बेदाग, बड़ी अद्भुत है ।
लक्ष्मी केवल-ज्ञान सरीखी खुद है ।

चन्दन नाग ।
कुन्दन आग ।
क्रन्दन याग ।
धन मण चिराग, ज्योत अनबुझ है‌ ।
लक्ष्मी केवल-ज्ञान सरीखी खुद है ।

कोहरा बाग ।
कोयल काग ।
खोट दिमाग ।
गांठ बिन धाग, शुभ मुहूरत है ।
लक्ष्मी केवल-ज्ञान सरीखी खुद है ।

सूरज आग ।
नीरज ठाग ।
द्यु-गज स्वांग ।
सोने सुहाग, वासन्त ऋत है ।
लक्ष्मी केवल-ज्ञान सरीखी खुद है ।

==दोहा==
जन्म जैन कुल में हुआ,
गर्व मुझे अभिमान ।
पर्व दिवाली पूजता,
लक्ष्मी केवल-ज्ञान ।।
ॐ ह्रीं केवल ज्ञान लक्ष्मी मण्डित
गणी-गौतम-भगवन् !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

*शांति पाठ*
अथ पौर्वाह-निक (अप-राह-निक)
देव-शास्त्र-गुरु-वन्दना-क्रियायाम्
पूर्वाचार्या-नुक्-क्रमेण,
सकल-कर्मक्-क्षयार्-थम्,
भाव-पूजा-वन्दना-स्तव समेतम् श्री शांति-भक्ति कायोत्सर्गम् ,
करोम्यहम्
(९ बार णमोकार )

*चौपाई*
दर्शन मात्र मेंटता दुखड़ा ।
भाँत चन्द्रमा सुन्दर मुखड़ा ।।
नासा टिके नैन मनहारी ।
करें वन्दना नाथ ! तुम्हारी ।।

आप चक्रधर-पञ्चम नामी ।
वन्द्य इन्द्र शत, अन्तर्-यामी ।।
प्रभो शान्ति-जिन करके करुणा ।
करो शान्ति ! जश निरखो अपना ।।

छत्र, सिंहासन, वृक्ष-अशोका ।
धुनि, दुन्दुभि, दल-चँवर अनोखा ।।
भा-मण्डल झिर-पुष्प-अनूठी ।
प्रातिहार्य-वसु आप विभूती ।।

अर्चित-जगत् ! शान्ति करतारी ।
ढ़ोक करो स्वीकार हमारी ।।
प्राण-भूत, सत्, जीव समस्ता ।
पायें परिणति शान्त प्रशस्ता ।।

देवों में जो देव बड़े हैं ।
चरणों में हित सेव खड़े हैं ।।
हंस-वंश वे जग उजियारे ।
करें शान्ति मण्डित जग सारे ।।
(निम्न श्लोक को पढ़कर
जल छोड़ना चाहिए)

शान्ति कीजिये गाँव-गाँव में ।
विश्व लीजिये पाँव-छाँव में ।।
डूब ‘साध-जन’ उतरें गहरे ।
लहर लहर-पचरंगा लहरे ।।

नृप धार्मिक बलशाली होवे ।
विकृत-प्रकृत मनमानी खोवे ।।
धर्म-चक्र-जिन सौख्य प्रदाता ।
रहे प्रवाहित यूँ हि विधाता ।।

द्रव्य सुमंगल-कारी होवे ।
क्षेत्र अमंगल-हारी होवे ।।
होवे काल सुमंगल-कारी ।
होवें भाव अमंगल-हारी ।।

कर्मन-घात घात मद सारा ।
सहजो सिद्ध रिद्ध परिवारा ।।
आदि आदि अर्हन् चौबीसा ।
शान्ति प्रदान करें निशि दीसा ।।

*दोहा*
किया शान्ति जिन भक्ति का,
भगवन् कायोत्सर्ग ।।
करूँ दोष आलोचना,
जो प्रद-स्वर्ग-पवर्ग ।।

*चौपाई*
पाँच सभी कल्याणक धारी ।
आठ प्राति-हारज मन-हारी ।।
अतिशय तीस चार मण्डित हैं ।
अर बत्तीस इन्द्र वन्दित हैं ।।

चौ-विध संघ नखत मानिन्दा ।
राम श्याम चक्री, प्रभु ! चन्दा ।।
‘निलय-विनय’ अन-गिनत गभीरा ।
आद-आद जिन अंतिम वीरा ।।

अर्चन-पूजन-वन्दन करता ।
उनका मैं अभिनन्दन करता ।।
पीड़ा-दुक्ख-दरद-भय खोवे ।
मेरे कर्मों का क्षय होवे ।।

रत्नत्रय का मुझे लाभ हो ।
मेरी ‘गति-पंचम-उपाध’ हो ।।
मृत्यु-महोत्सव मना सकूँ मैं ।
जिन-गुण-सम्पद् कमा सकूँ मैं ।।

अथ पौर्वाह-निक (अप-राह-निक)
देव-शास्त्र-गुरु-वन्दना-क्रियायाम्
पूर्वाचार्या-नुक्-क्रमेण,
सकल-कर्मक्-क्षयार्-थम्,
भाव-पूजा-वन्दना-स्तव समेतम्
श्री समाधि-भक्ति कायोत्सर्गम्
करोम्यहम्
(९बार णमोकार )

*चौपाई*
सदा शास्त्र अभ्यास करूँ मैं ।
सन्त समीप निवास करूँ मैं ।।
मौन धरूँ क्यूँ, गुणी दिखाये ।
गौण करूँ, यूँ दोष-पराये ।।

भावन-आत्म तत्व, नम-नयना ।
हित-मित रखूँ मधुरतम वयना ।।
जब तक राधा-मुक्ति रिझाऊँ ।
इन्हें जन्म जन्मान्तर पाऊँ ।।

तारण हारे……शरण सहारे ।
हृदय हमारे….चरण तुम्हारे ।।
चरण तुम्हारे….हृदय हमारा ।
रहे, तलक जब भव-जल-धारा ।।

स्वर-अक्षर पद मात्रा गलती ।
हुईं, चाहते बिन अनगिनती ।।
हो अपराध क्षमा यह मेरा ।
‘जैसा भी’ मैं अपना तेरा ।।

*दोहा*
किया समाधी, भक्ति का,
भगवन् कायोत्सर्ग ।।
करूँ दोष आलोचना,
जो प्रद-स्वर्ग-पवर्ग ।।

*चौपाई*
सम्यक्-दर्शन, सम्यक्-ज्ञाना ।
सम्यक्-चारित, ताना-बाना ।।
रूप अनूप ध्यान परमातम ।
बुद्ध-विशुद्ध ज्ञान धर आतम ।।

पूजन नित वन्दन करता हूँ ।
अर्चन अभिनन्दन करता हूँ ।।
क्षय होवें दुख संकट सारे ।
क्षय हो जावें कर्म हमारे ।।

मुझे लाभ रत्नत्रय होवे ।
सुगति गमन, भय-सप्तक खोवे ।।
पाऊँ मरण-समाधी स्वामी ।
बनूँ रतन जिन-गुण आसामी ।।
‘पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्’
(यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र
पढ़ना चाहिए )

*विसर्जन पाठ*
अंजन को पार किया ।
चंदन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।

धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।

अगनी ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।

बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।
(निम्न श्लोक पढ़कर
विसर्जन करना चाहिये )

*दोहा*
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
कृपा ‘निराकुल’ आपकी,
बनी रहे निशि-दीस ।।
(यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)

==आरती==

आंख में ले अद्भुत मोती ।
हाथ में ले अनबुझ ज्योती ।।
मेटने अंधियारा अज्ञान ।
उतारें मिल के देव विमान ।
आरती लक्ष्मी केवल-ज्ञान ।।

किया क्या हनन ।
दर्श-नावरण ।
दर्श-नाभरण ।
हाथ, इक कर्म घात अवसान ।
झूमता भाव विभोर जहान ।।
लसी शिव राधा मुख मुस्कान ।
आरती लक्ष्मी केवल-ज्ञान ।।
मेटने अंधियारा अज्ञान ।
उतारें मिल के देव विमान ।।

किया क्या हनन ।
ज्ञान आवरण ।
ज्ञान आभरण ।
हाथ, इक कर्म घात अवसान ।
झूमता भाव विभोर जहान ।।
लसी शिव राधा मुख मुस्कान ।
आरती लक्ष्मी केवल-ज्ञान ।।
मेटने अंधियारा अज्ञान ।
उतारें मिल के देव विमान ।।

किया क्या हनन ।
अन्तरायनन ।
वीर्य अक्षरन ।
हाथ, इक कर्म घात अवसान ।
झूमता भाव विभोर जहान ।।
लसी शिव राधा मुख मुस्कान ।
आरती लक्ष्मी केवल-ज्ञान ।।
मेटने अंधियारा अज्ञान ।
उतारें मिल के देव विमान ।।

किया क्या हनन ।
कर्म मोहनन ।
सुख अहो अनन ।
हाथ, इक कर्म घात अवसान ।
झूमता भाव विभोर जहान ।।
लसी शिव राधा मुख मुस्कान ।
आरती लक्ष्मी केवल-ज्ञान ।।
मेटने अंधियारा अज्ञान ।
उतारें मिल के देव विमान ।।

आंख में ले अद्भुत मोती ।
हाथ में ले अनबुझ ज्योती ।।
मेटने अंधियारा अज्ञान ।
आश ले सौख्य ‘निराकुल’ थान ।
उतारें मिल के देव विमान ।
आरती लक्ष्मी केवल-ज्ञान ।।

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