सवाल आचार्य भगवन् ! गुरुदेव ज्ञान सागर जी महाराज आपको उतना ही चाहते थे, जितना ‘कि आप उन्हें चाहते हैं, सुबह हो, दोपहर हो, शाम हो, बस एक यही गीत चरितार्थ होता है, ‘के “साँसों की माला सुमरूँ मैं, तेरा […]
सवाल आचार्य भगवन् ! गुरुदेव ज्ञान सागर जी महाराज आपको उतना ही चाहते थे, जितना ‘कि आप उन्हें चाहते हैं, सुबह हो, दोपहर हो, शाम हो, बस एक यही गीत चरितार्थ होता है, ‘के “साँसों की माला सुमरूँ मैं, तेरा […]
सवाल आचार्य भगवन् ! आपने कभी किसी के भक्तों को फोड़ा हो, या ‘कि जोड़ा हो ऐसा कोई वाकया, आपको याद आ रहा हो, तो भगवन् ये हमारी विनय पर ध्यान दीजिए नमोऽस्तु भगवन्, नमोऽस्तु भगवन्, नमोऽस्तु भगवन्, जवाब… लाजवाब […]
सवाल आचार्य भगवन् ! यूँ ही आपको, वर्तमान-वर्धमान नहीं कहते हैं सच आज कलिजुग में भी, आपका वर्धमान चारित्र है, भगवन् ! पर… एक जिज्ञासा है फूंक-फूंक कर भी, कदम भले ही क्यों न रक्खे जायें, काई तो फिसलाने में […]
सवाल आचार्य भगवन् ! सुनते हैं, आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज, किसी वस्तु का त्याग करते थे, तो उसका विकल्प नहीं रखते थे यानि ‘कि छोड़ी चीज की जगह, पेट में छोड़ कर रखते थे, मतलब हर दिन ऊनोदर करके […]
सवाल आचार्य भगवन् ! दीक्षा की रजत क्या स्वर्ण जयंती निकलने को है, लेकिन देखते आ रहे है हम स्वयम्, आपके बाजोटे पर, गुरुणांगुरु ज्ञान सागर जी महाराज के द्वारा प्रदत्त वही धर्म ध्यान की पुस्तक, जीर्ण-शीर्ष रक्खी रहती है, […]
सवाल आचार्य भगवन् ! मल्लप्पा जी ने तो आपके लिए बहुत डॉंटा था, सुनते है, जब साइकल, हाथ छोड़ के चलाते हुये देखा था, तब घर आकर, आपके लिए बहुत डॉंटा था, लेकिन भगवन् ! बताईये क्या गुरुजी ने भी […]
सवाल आचार्य भगवन् ! लोगों को आपके सपने आते हैं, आये दिन सुनने में आ जाता है, ‘के आज गुरु जी को आहार दिया मैंने, पड़गाहन करके, तो भगवन् ! क्या ऐसा भी कोई पुण्यात्मा जीव है, जिसके यहाँ आपका […]
सवाल आचार्य भगवन् ! कहीं भी आप, नये पत्थर के मंदिर बनाने के लिये, आशीर्वाद दे देते हैं यद्यपि आप यह जानते हैं, ‘कि पत्थर के मंदिर में वैसा पैसा बहाना पड़ता है जैसे ईंट-गारे के मंदिर मे पानी भगवन् […]
सवाल आचार्य भगवन् ! ब्रहचारी विद्याधर जी खेस नहीं रखते थे, पर भगवन् ! वह तो फलालेन का सूती ही होता है क्या सोच थी इसके पीछे आपकी ? नमोऽस्तु भगवन्, नमोऽस्तु भगवन्, नमोऽस्तु भगवन्, जवाब… लाजवाब ओ हो… फलां, […]
सवाल आचार्य भगवन् ! तत्त्व ग्रहण ही जब टेड़ी खीर है, तब आप जाल में फँसी पहली मछली छोड़, उसे जीवन दान देने वाले के लिए, तच्व-पथ-ग्राहक बनने की बात कहकर के क्या मोक्ष मार्ग सहजो-सरल नहीं कर रहे हैं […]
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