(५१) बाहर दन्द-फन्द, द्वन्द है कोहरा है, धुन्ध है कर्मों का बन्ध है अन्दर, आनन्द ही आनन्द है सोने सुगन्ध है परिणति सन्त है भावी भगवन्त है शान्ति अनन्त है अन्दर, आनन्द ही आनन्द है सार सभी ग्रन्थ है मोक्ष […]
(५१) बाहर दन्द-फन्द, द्वन्द है कोहरा है, धुन्ध है कर्मों का बन्ध है अन्दर, आनन्द ही आनन्द है सोने सुगन्ध है परिणति सन्त है भावी भगवन्त है शान्ति अनन्त है अन्दर, आनन्द ही आनन्द है सार सभी ग्रन्थ है मोक्ष […]
(४१) शुद्ध, बुद्ध, अविनाशी मैं अक्षर धाम निवासी मैं अखर अंक हूँ हेम पंक हूँ निष्कलंक हूँ साँची मैं, साथी ! मैं, कह रहा हूँ सांची मैं ऊर्ध्व रेत हूँ मैं अभेद हूँ अच्छेद्य हूँ साँची मैं, साथी ! मैं, […]
(३१) ज्ञान घन, ज्ञान घन, ज्ञान घन, ज्ञान घन हूँ मैं हाय ! अब तक रहा अंधेरे में । क्यूॅं न उतरूॅं आज गहरे में ।। ‘के बस जानूॅं और देखूॅं मैं । ज्ञान घन हूँ मैं माटी मोह की […]
(२१) अपनी आँख बन्द कर मैंने झाँका अन्दर दिखा मुझे एक शान्त समुन्दर आहा ! अहा ! मैं अन्दर ही अन्दर बड़ा खुश हुआ पर हा ! हहा ! जाने ये क्या हुआ आ विकल्प ने मुझे छुआ यानि ‘कि […]
(११) एक है, एक है, एक है । आत्मानुभूति कहो । या ज्ञानानुभूति अहो ! ।। एक है, एक है, एक है । ज्ञान-घन , ज्ञान-घन, ज्ञान-घन । देखना हमें बैठ के अपनी ही आत्मा में अपना ही आत्मा प्रत्येक […]
(१) रहे न मैली । परणति मेरी ।। और कुछ भी न चाहूँ मैं । सर समयसार अवगाहूँ मैं ।। धोकर हाथ पड़ी है पीछे । अपनी और मुझे है खींचे ।। मुँह की खाये अबकी वैरी । रहे न […]
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