परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 67 जयतु गौरवम् सदलगा । नन्दनम् श्री मन्त माँ ।। वन्दनम् सुत सिन्ध ज्ञाँ । जयतु गौरवम् सदलगा । लो हमें अपने रँग में रँगा ।।स्थापना।। नीर झार हाथ में […]
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 67 जयतु गौरवम् सदलगा । नन्दनम् श्री मन्त माँ ।। वन्दनम् सुत सिन्ध ज्ञाँ । जयतु गौरवम् सदलगा । लो हमें अपने रँग में रँगा ।।स्थापना।। नीर झार हाथ में […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 66 अकारण शिव साथिया । जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में । अय ! निर्झर दया । सिन्धु विद्या, जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मंदिर […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 65 संयम है उपहार जिन्हें गुरु, ज्ञान सिन्धु का । रूप सलोना हरने वाला, मान इन्दु का ।। मूक प्राणियों के प्राणों से, जिन्हें प्यार है । गुरु विद्या वे […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचितपूजन क्रमांक 64 पारस पत्थर तो, है पड़ता छुबोना ।तब कहीं जा कर, लोहा बनता है सोना ।जादुई चिराग जो, है पड़ता घिसना ।तब कहीं जाकर, पूरा होता है सपना ।पर अचरज बड़ा […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 63 शरद पून शश गौर । सन्तन इक सिर-मौर ।। कब अनसुनी करें आवाज, चले आते झट दौड़ ।। जय विद्यासागर जय । जय विद्यासागर जय ।।स्थापना।। ‘अर-णव’ गागर नीर […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 62 न देखूँ तुझे, तो क्या करूँ, तू सुन्दर जो इतना । पास आसमां जो चाँद है, न सुन्दर वो इतना ।। चेहरे-तिल, ऐसा दरिया-दिल, है और कहाँ । न […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 61 तुम जो मिल गये, हमसफर मुझको । अब जमाने की, न फिकर मुझको ।। कहो जमाने ने, कब साथ दिया । दूर अजनबी, अपने साये ने भी, अँधेरे में […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 60 होता जा रहा, जितना तेरा मैं । खोता जा रहा, उतना मेरा ‘मैं’ ।। जयतु जयतु गुरुदेव । रखना कृपा सदैव ।। जयतु जयतु गुरुदेव ।।स्थापना।। आया तेरे द्वार […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 59 जुग-जुग शरण । आप जुग-चरण ।। मिलती रहे हमें । कुछ न चाहूँ , और मैं ॥स्थापना॥ बडे़ कलशे । भरे जल से ।। करूँ अर्पण । अय ! […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 58 था मैं अजनबी भले ।। माँगने से ही पहले, दिया तुमने मुझे, ज्यादा ही कुछ फरिश्तों से ।। मतलबी रिश्तों से । दोनों आँखों से । दोनों हाथों से […]
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