परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 930 तेरे इतने करीब जो हैं हम नसीब वाले तो है वगैर माँगे मन्नत खुल पड़ी मेरी किस्मत बरस पड़ी तेरी रहमत वगैर माँगे मन्नत हम नसीब वाले तो है […]
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 930 तेरे इतने करीब जो हैं हम नसीब वाले तो है वगैर माँगे मन्नत खुल पड़ी मेरी किस्मत बरस पड़ी तेरी रहमत वगैर माँगे मन्नत हम नसीब वाले तो है […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 929 तेरा चेहरा सबसे जुदा है । चाँद चौदवीं का, तुझ पे फिदा है ।। भले मुझे कहने का कोई हक नहीं, पर मुझे कहने में कोई शक नहीं । […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 928 गुनगुनाता रहूँ तराने तेरे अफसाने तेरे मन में लाता रहूँ यूँ ही शामो-सुबह अय ! इक मिरे जीने की वजह रह-रह के यूँ ही शामो-सुबह गुनगुनाता रहूँ तराने तेरे […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 927 मेरी खबर, जो है तुम्हें करूँ क्यूँ मैं, कोई फिकर हूँ गोद में माँ की जब पोत खे माँझी तब क्या हो जाता नहीं बड़ा मुश्किल भी आसान सफर […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 926 बसा, आँखों मे तू, हुआ ओझल कब है । आके ख्वाबों में तू, हुआ बोझिल कब है ।। सब है यहां तक ‘कि तू मेरा रब है । तेरे […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 925 प्यार-वेवजह, इक तुम्हीं ने तो किया है पार-वेवजह, इक तुम्हीं ने तो किया है राजी-खुशी से, न ‘कि कहने से किसी के बल्कि अपनी खुशी से मेरा ये अपना […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 924 किसी की याद बहुत आती आ करके फिर वापिस नहीं जाती करिश्मे जैसा अय ! रहनुमा कुछ कर दो ऐसा नहीं आ पा रहा है तो, दे भिजा ही […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 923 रात ख्वाब देखूँ तो, मुझे तुम चाहिये जो सुबहो जागूँ तो, मुझे तुम चाहिये यही उससे गुजारिश मेरी कोई और न ख्वाहिश मेरी दुनिया से बिदा लूँ तो, मुझे […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 922 तेरे बिना, आँगन मेरा है सूना सूना तेरे बिना, हैं सावन-भादों के जैसे नैना डाल भी दे एक नजर तू ले भी ले मेरी खबर तू क्या दिन, क्या […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 921 था न इस के काबिल मैं पैरों से उठा लिया मुझे बिठा लिया तुमनें जो अपने दिल में कर लिया विश्वास मुझ पर गैर, बेगाना मैं अजनबी ‘के तुमसे […]
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