वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=पूूजन=
तुम्हें भक्त प्यारे ।
तभी जग पुकारे ।।
जयतु जिन-अजित जय,
जिन अजित हमारे ।।
ॐ ह्रीं श्री अजित जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री अजित जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री अजित जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
बनी रहे तंगी ।
महंगाई अंधी ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
भरे क्षीर जल से ।
हाथ स्वर्ण कलशे ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं दारिद्र निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रिश्ते जो आते ।
सो रिसते जाते ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
जन जन मन भाया ।
घिस चन्दन लाया ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं वैवाहिक बाधा निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पढ़े-लिखे अच्छे ।
घर बैठे बच्चे ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
थाली रतनारी ।
अक्षत धाँ शाली ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं आजीविका बाधा निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
मुँह काला कागा ।
दाग चुनर लागा ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
सुगन्ध मन हारी ।
गुल नन्दन क्यारी ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं अपकीर्ति निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नाद शोक गूँजा ।
बाद रोग दूजा ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
जेते जग मीठे ।
लाया दृग् तीते ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं मारी बीमारी निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मत खोटी मोरी ।
रत तोरी-मोरी ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
मण मोती थाली ।
गो घृत दीपाली ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं अल्प बुद्धि निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मन्त्र-मूठ माया ।
सिर काला साया ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
इतर गन्ध वाले ।
धूप घट निराले ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं टुष्टविद्या निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रीय चीज मोरी ।
हो चाली चोरी ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
अपने ही भाँती ।
फल परात चाँदी ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं इष्ट वियोग निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
देख राह काँटे ।
‘शू’-साइड नाते ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
रतनारी कोना ।
अर्घ थाल सोना ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं अपमृत्यु-अल्पमृत्यु निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=कल्याणक-अर्घ=
रहती बस रोती ।
सूनी बहु गोदी ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
हो चाले अपने ।
माँ सोलह सपने ।।
रतनारी कोना ।
अर्घ थाल सोना ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्यां
गर्भ कल्याणक-प्राप्ताय
अकुटुम्ब बाधा निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मानस अवतारा ।
मन बक-परिवारा ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
शचि अर महतारी ।
इक भव अवतारी ।।
रतनारी कोना ।
अर्घ थाल सोना ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं माघ शुक्ल दशम्यां
जन्म कल्याणक प्राप्ताय
मानस विकार निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पास, तदपि दूरी ।
दीक्षा कस्तूरी ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
पुण्य आप जैसा ।
क्षीर सिन्धु केशा ।।
रतनारी कोना ।
अर्घ थाल सोना ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं शुक्ल माघ नवम्यां
दीक्षा कल्याणक प्राप्ताय
सिद्ध साक्षि दीक्षा बाधा निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
स्वप्न हाथ ‘पाई’ ।
दुकाँ नजर खाई ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
भाई-सिंह हिरणा ।
बहना सम शरणा ।।
रतनारी कोना ।
अर्घ थाल सोना ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं पौष्य शुक्ल एकादश्यां
ज्ञान कल्याणक प्राप्ताय
व्यापार बाधा निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ताँता लग बाधा ।
वैर बन्धु साधा ।।
छुपा कहाँ स्वामी ।
तुम अन्तर्यामी ।।
अपूर्व अगवानी ।।
दुल्हन शिव रानी ।।
रतनारी कोना ।
अर्घ थाल सोना ।।
भेंट रहा भगवन् ।
हित अखीर सु-मरण ।।
ॐ ह्रीं चैत-शुक्ल-पंचम्यां
मोक्ष कल्याणक प्राप्ताय
बन्धुजन कृत बाधा निवारकाय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=विधान=
जय विश्व विजेता ।
जय ऊरध रेता ।।
हितु इक जयतु अजित,
सद्धर्म प्रणेता ।।
ॐ ह्रीं श्री अजित जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री अजित जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री अजित जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
बीजाक्षर सहित मूल नवार्घ
अरिहन्त वन्दना ।
‘सि’ अनन्त वन्दना ।।
सूरीश्वर, ‘भी’ स्वर,
निर्ग्रन्थ वन्दना ।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ
अक्षर असिआ उसा नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अरिहन्त मंगलम् ।
अगणन्त मंगलम् ।।
निर्ग्रन्थ, दयामय
सत्पन्थ मंगलम् ।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं ए ऐ ओ औ अं अः
अक्षर चतुर्विध मंगलाय नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
उत्तम कृति वंशा ।
सर माहन हंसा ।।
निर्ग्रन्थ, दयामय
सत्पन्थ अहिंसा ।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं क ख ग घ ङ
अक्षर चतुर्विध लोकोत्तमाय नमः
आग्नेय-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अरिहन्ता शरणम् ।
सिध नन्ता शरणम् ।।
निर्ग्रन्थ, दयामय
सत्पन्था शरणम् ।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं च छ ज झ ञ
अक्षर चतुर्विध शरणाय नमः
दक्षिण-दिशि अर्घ निर्वापमिति स्वाहा ।।
मृग हाँप भुलाई ।
दृग् नाक टिकाई ।।
दृग्, ज्ञान, वीर्य, सुख,
निधि नन्त रिझाई ।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
अक्षर अजित जिनेन्द्राय नमः
नैऋत्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘तर’ पहुपन बरसा ।
दुन्दुभि-धुन सरसा ।।
छत, चँवर, सिंहासन,
भव सप्तादर्शा ।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं त थ द ध न
अक्षर अजित जिनेन्द्राय नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामिति स्वाहा ।।
संहनन संस्थाना ।
सित लहु ‘बल’ ‘वाना’ ।।
‘छव’, विमल’ इतर-तन,
श्रम-जल चिन ना ‘ना’ ।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
अक्षर अजित जिनेन्द्राय नमः
वायव्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चउ-मुख अनिमेषा ।
‘नभ’-गत नख केशा ।।
‘विद’ सुभिख, अभुक्, दय,
गत छाया क्लेशा ।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं य र ल व
अक्षर अजित जिनेन्द्राय नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।
‘सूर’ ‘गुल’ ‘ऋत’ भाषा ।
‘वृत’-‘पथ, जल-राशा ।।
‘मुख’ दर्प’ण-भू नभ,
दिश् मित्र वताशा ।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श ष स ह
अक्षर अजित जिनेन्द्राय नमः
ईशान-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रथम वलय पूजन विधान की जय
*अनन्त चतुष्टय*
हन दृग् आवरणा ।
धन ! दृग् आभरणा ।।
हितु इक जयतु अजित,
आभरणा करुणा ।।१।।
ॐ ह्रीं अनन्त-दर्शन मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हत ज्ञानावरणा ।
ऋत ज्ञानाभरणा ।।
हितु इक जयतु अजित,
इक शरण्य शरणा ।।२।।
ॐ ह्रीं अनन्त-ज्ञान मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अन्तराय घाता ।
बल अनन्त नाता ।।
हितु इक जयतु अजित,
त्रिभुवन इक त्राता ।।३।।
ॐ ह्रीं अनन्त वीर्य मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अरि मोह नशाया ।
सुख अनन्त छाया ।।
हितु इक जयतु अजित,
अभिजित मद माया ।।४।।
ॐ ह्रीं अनन्त सुख मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मृग हाँप भुलाई ।
दृग् नाक टिकाई ।।
दृग्, ज्ञान, वीर्य, सुख,
निधि नन्त रिझाई ।।
ॐ ह्रीं अनन्त-चतुष्टय मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
द्वितीय वलय पूजन विधान की जय
*अष्टप्रातिहार्य*
‘तर’ आसन माड़ा ।
‘तर’ शोक विडारा ।।
हितु इक जयतु अजित,
भय-हर जयकारा ।।१।।
ॐ ह्रीं वृक्ष अशोक मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तर डण्ठल वाली ।
झिर सुमन निराली ।।
हितु इक जयतु अजित,
रट, तट करतारी ।।२।।
ॐ ह्रीं पुष्प-वृष्टि मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तुरही, इक-तारा ।
बाजा परिवारा ।।
हितु इक जयतु अजित,
गाजा जयकारा ।।३।।
ॐ ह्रीं देव दुन्दुभि मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भव दुख हरतारी ।
शिव सुख करतारी ।।
हितु इक जयतु अजित,
धुन, अतिशय कारी ।।४।।
ॐ ह्रीं दिव्य-ध्वनि मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मणि-झालर वाले ।
अर शशि उजियारे ।।
हितु इक जयतु अजित,
चल छतर निराले ।।५।।
ॐ ह्रीं छत्र-त्रय मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शश लेखा भाँती ।
छव झिलमिल चाँदी ।।
हितु इक जयतु अजित,
चामर चउ-साठी ।।६।।
ॐ ह्रीं चामर मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मण खचित अनोखा ।
आसन सोने का ।।
हितु इक जयतु अजित,
जग और न देखा ।।७।।
ॐ ह्रीं सिंहासन मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रवि तेज समाया ।
शशि भाँत दिखाया ।।
हितु इक जयतु अजित,
भा ‘वृत’ भव माया ।।८।।
ॐ ह्रीं भामण्डल मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘तर’ पहुपन बरसा ।
दुन्दुभि-धुन सरसा ।।
छत, चँवर, सिंहासन,
भव सप्तादर्शा ।।
ॐ ह्रीं अष्ट-प्रातिहार्य मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तृतीय वलय पूजन विधान की जय
*दशजन्मातिशय*
वज वृषभ नराचा ।
संहनन अब वाँचा ।।
हितु इक जयतु अजित,
इति संहनन काँचा ।।१।।
ॐ ह्रीं धन ! संहनन मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सम चतु रस भाई ।
संस्थाँ शिवदाई ।।
हितु इक जयतु अजित,
दूजे जिनराई ।।२।।
ॐ ह्रीं छटा संस्थाँ मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
उर दया निधाना ।
लहु दुग्ध समाना ।।
हितु इक जयतु अजित,
‘सम-दर्श’ ठिकाना ।।३।।
ॐ ह्रीं सित शोणित मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रुख बदले ज्वाला ।
फूँका ‘गिर’ चाला ।।
हितु इक जयतु अजित,
जश अद्भुत न्यारा ।।४।।
ॐ ह्रीं संबल मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हित-परिमित बोली ।
मनु मिसरी घोली ।।
हितु इक जयतु अजित,
मत-परिणत गो’ री ।।५।।
ॐ ह्रीं बोल अमोल मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शश लाञ्छन नामा ।
रवि आगन धामा ।।
हितु इक जयतु अजित,
छव तुम अभिरामा ।।६।।
ॐ ह्रीं सुन्दर, तन मन्दर मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छक दिव्य अहारा ।
कब कहाँ निहारा ।।
हितु इक जयतु अजित,
जीवन-वृत न्यारा ।।७।।
ॐ ह्रीं निर्मल गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गुम मद कस्तूरी ।
नत चन्दन चूरी ।।
हितु इक जयतु अजित,
अर तुम खुशबू ‘री’ ।।८।।
ॐ ह्रीं सौरभ गौरव मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भग-दौड़ न नाता ।
मन नेह झिराता ।।
हितु इक जयतु अजित,
गत श्रम-जल माथा ।।९।।
ॐ ह्रीं हीन पसीन गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
घट, दर्पण, झारी ।
ध्वज, रत्न-पिटारी ।।
हितु इक जयतु अजित,
चिन शगुन हजारी ।।१०।।
ॐ ह्रीं ‘लाखन’ गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
संहनन संस्थाना ।
सित लहु ‘बल’ ‘वाना’ ।।
‘छव’, विमल’ इतर-तन,
श्रम-जल चिन ना ‘ना’ ।।
ॐ ह्रीं दश-जन्मातिशय मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चतुर्थ वलय पूजन विधान की जय
*केवलज्ञानातिशय*
इक आप सरीखा ।
मुख चउ-दिश् दीखा ।।
हितु इक जयतु अजित,
आखर ‘भी’ सीखा ।।१।।
ॐ ह्रीं चतुर्मुख प्रतिभा गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कुछ अपूर्व चाखें ।
दृग् नासा राखें ।।
हितु इक जयतु अजित,
पल पलक न झाँपें ।।२।।
ॐ ह्रीं झलक अपलक गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहाय ।।
उठ अंगुल चारा ।
भू, गगन विहारा ।।
हितु इक जयतु अजित,
स्वर ‘अक्षर’ धारा ।।३।।
ॐ ह्रीं ‘गगन-चरन’ गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पा ज्ञान अशेषा ।
‘नभ’ गति नख केशा ।।
हितु इक जयतु अजित,
अद्वितिय जिनेशा ।।४।।
ॐ ह्रीं नग केश-नख गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पा ज्ञान अपारा ।
सिध, रिध-परिवारा ।।
हितु इक जयतु अजित,
जप शरण-सहारा ।।५।।
ॐ ह्रीं ‘विद्यालय’ गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
योजन शत एका ।
इक सुभिख सुलेखा ।।
हितु इक जयतु अजित,
पावन गज रेखा ।।६।।
ॐ ह्रीं इक सुभिख गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नन्तामृत धारा ।
गत कवलाहारा ।।
हितु इक जयतु अजित,
‘पुन’ अचिन्त्य न्यारा ।।७।।
ॐ ह्रीं अन अनशन गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अहि मोर विराजे ।
मृग, शेर न गाजे ।।
हितु इक जयतु अजित,
इक दयालु बाजे ।।८।।
ॐ ह्रीं ‘मा-हन्त’ गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अर तेज समाया ।
तन पडे़ न छाया ।।
हितु इक जयतु अजित,
जीवन-वृत माया ।।९।।
ॐ ह्रीं छाया माया गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
उपसर्ग विलाये ।
अपवर्ग रिझाये ।।
हितु इक जयतु अजित,
सुध निज घर लाये ।।१०।।
ॐ ह्रीं ‘हन विघन’ गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चउ-मुख अनिमेषा ।
‘नभ’-गत नख केशा ।।
‘विद’ सुभिख, अभुक्, दय,
गत छाया क्लेशा ।।
ॐ ह्रीं दश केवल-ज्ञानातिशय मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पंचम वलय पूजन विधान की जय
*देवकृतातिशय*
इह आओ चाले ।
‘सुर’ लगे निराले ।।
हितु इक जयतु अजित,
त्रिभुवन रखवाले ।।१।।
ॐ ह्रीं स्वर सुर गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विरदावल गाते ।
सुर कमल रचाते ।।
हितु इक जयतु अजित,
ज्यों कदम बढ़ाते ।।२।।
ॐ ह्रीं पद पद्म गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ऋत-ऋत फल डाली ।
ऋत-ऋत गुल क्यारी ।।
हितु इक जयतु अजित,
महिमा भवि ! न्यारी ।।३।।
ॐ ह्रीं ऋत-ऋत गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अध मागध भाषा ।
सुर मगध प्रयासा ।।
हितु इक जयतु अजित,
इक पूरण आशा ।।४।।
ॐ ह्रीं भाष अध-मागध गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वृत माहन चाले ।
इक हजार आरे ।।
हितु इक जयतु अजित,
लगते जयकारे ।।५।।
ॐ ह्रीं अग्र धर्मचक्र गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रज काम तमामा ।
‘मा-रग’ ऋत नामा ।।
हितु इक जयतु अजित,
प्रद सु-मरण शामा ।।६।।
ॐ ह्रीं ‘मा-रग’ गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
खुशबू अनचीनी ।
झिर झीनी-झीनी ।।
हितु इक जयतु अजित,
जप इूब अहीनी ।।७।।
ॐ ह्रीं मोहक गन्धोदक गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मंगल लग ताँता ।
गान्धर्वी गाथा ।।
हितु इक जयतु अजित,
संप्रद सुख साता ।।८।।
ॐ ह्रीं वस मंगल गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहाय ।।
भू दर्पण दूजी ।
दृग्-दृग् अर पूँजी ।।
हितु इक जयतु अजित,
सरगम नभ गूँजी।।९।।
ॐ ह्रीं फर्श आदर्श गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अपगत घन श्यामा ।
नभ शर-दभिरामा ।।
हितु इक जयतु अजित,
प्रद दिव-शिव धामा ।।१०।।
ॐ ह्रीं मगन गगन गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
निर्धूम सुहानी ।
दिश् शरद् बखानी ।।
हितु इक जयतु अजित,
दृग् रस्ते पानी ।।११।।
ॐ ह्रीं ‘दिशा’ गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रापति सपनों की ।
इक डूब अनोखी ।।
हितु इक जयतु अजित,
सन्निधि प्रद मोखी ।।१२।।
ॐ ह्रीं साध आह्लाद गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कोई न अराती ।
भू कुटुम्ब भाँती ।।
हितु इक जयतु अजित,
दिव संस्कृति गाती ।।१३।।
ॐ ह्रीं ‘मै-त्र’ ‘गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ऋत मा’रुत’ गन्धा ।
मनु स्वर्ण सुगन्धा ।।
हितु इक जयतु अजित,
संप्रद आनन्दा ।।१४।।
ॐ ह्रीं ह-वा…वा-ह गुण मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘सूर’ ‘गुल’ ‘ऋत’ भाषा ।
‘वृत’-‘पथ, जल-राशा ।।
‘मुख’ दर्प’ण-भू नभ,
दिश मित्र वताशा ।।
ॐ ह्रीं चतुर्दश देव-कृतातिशय मण्डिताय
श्री अजित जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
…जयमाला-लघु चालीसा…
दोहा-
आ भक्ति के रंग में,
रँगते पल दो-चार ।
सुनते डूबा साध के,
शीघ्र वैतरण पार ।।
गुड घी मिसरी अमृत घोलो ।
‘साध’ मौन जैसे ही खोलो ।।
‘अजित-जयतु-जय’, ‘अजित जयतु- जय’
‘जय-जय अजित’ जयतु जय बोलो ।।१।।
दुखिंयों की सुन लेते जल्दी ।
चाहें रँगे न चावल हल्दी ।।
होली सुबहो, साँझ दिवाली ।
महिमा जप जय-अजित निराली ।।२।।
आग, सरोज सरोवर बदली ।
बदला भाग त्याग झष पहली ।।
मेंढ़क देव ऋद्धिंयों वाला ।
भगवन् कुन्द-कुन्द इक ग्वाला ।।३।।
दुखिंयों की सुन लेते जल्दी ।
चाहें रँगे न चावल हल्दी ।।
होली सुबहो, साँझ दिवाली ।
महिमा जप जय-अजित निराली ।।४।।
चन्दन बाला बारे न्यारे ।
भञ्जन अञ्जन बन्धन सारे ।।
चीर बढ़ चला ले गति वायू ।
भवि ! सुवर्ण बन चला जटायू ।।५।।
दुखिंयों की सुन लेते जल्दी ।
चाहें रँगे न चावल हल्दी ।।
होली सुबहो, साँझ दिवाली ।
महिमा जप जय-अजित निराली ।।६।।
नाग, नकुल, कपि किस्मत जागी ।
वीर तीर-भव सिंह बड़भागी ।।
निशि जल तज हो’शियार कोई ।
जप ‘जय अजित’ गूँज जग दोई ।।७।।
दुखिंयों की सुन लेते जल्दी ।
चाहें रँगे न चावल हल्दी ।।
होली सुबहो, साँझ दिवाली ।
महिमा जप जय-अजित निराली ।।८।।
प्रभु मैं भी किस्मत का मारा ।
छाया जीवन में अँधियारा ।।
छुपा कहाँ कुछ तुमसे स्वामी ।
जग जाहिर तुम अन्तर्यामी ।।९।।
बस रत्ती भर बोझ हमारा ।
सुनते बड़ा जहाज तुम्हारा ।।
देके एक जरा सा कोना ।
अपने भक्तों में रख लो ना ।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री अजित जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दोहा=
‘सहज-निराकुल’ बन सकूँ,
चाहूँ आशीर्वाद ।
पहली मेरी आखरी,
यही एक फरियाद ।।
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
दोहा=
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
=आरती=
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।
करे आरती कर्म सभी क्षय ।
हरे आरती सप्त सभी भय ।।
आरती प्रथम गर्भ कल्याणा ।
उतर स्वर्ग का भू पर आना ।।
दिव्य रतन बरसा अम्बर से ।
सपने देख देख माँ हरसे ।।
कृत भव-पूरब पुण्य उदय ।
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।।
आरती दूज जन्म कल्याणा ।
उतर स्वर्ग का भू पर आना ।।
मेर सुर्ख़िंयों में है छाया ।
सार्थ नाम ‘अख सहस’ बनाया ।।
कब छक पाया रख दृग् द्वय ।
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।।
आरती तुरिय ज्ञान कल्याणा ।
उतर स्वर्ग का भू पर आना ।।
सभा नाम सार्थक सम शरणा ।
वैर विडार बैठ सिंह हिरणा ।।
सुनें दिव्य-धुन साथ विनय ।
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।।
आरती तुरिय ज्ञान कल्याणा ।
उतर स्वर्ग का भू पर आना ।।
सभा नाम सार्थक सम शरणा ।
वैर विडार बैठ सिंह हिरणा ।।
सुने दिव्य-धुन साथ विनय ।
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।।
आरती और मोक्ष कल्याणा ।
उतर स्वर्ग का भू पर आना ।।
ले सित ध्यान खड्ग इस बारा ।
घात अघात कर्म परिवारा ।।
शिव पहुँचे बस लगा समय ।
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।।
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