परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 33
कलि भव जलधि जहाज ।
सन्तों के सरताज ।।
सुनें भक्त आवाज ।
विद्यासागर महाराज ।।
जयकारा गुरु देव का…
जयजय गुरु देव ।।स्थापना।।
आने श्रुत-सुत कतार में बुध,
करें जिनाज्ञा पालन ।
माँ-श्रुत से ले ज्ञान आईना,
करें पाप प्रक्षालन ।।
पाकर ज्ञान आईना लेकिन,
मैंने तन श्रृंगारा ।
भूल भुलाने अब जल लेकर,
तेरा द्वार निहारा ।।जलं।।
आने श्रुत-सुत कतार में बुध,
क्षमा भाव आदरते ।
माँ श्रुत से संज्ञान रतन ले,
कलश गुण शगुन भरते ।।
लेकिन ज्ञान-रतन पाकर हा !
कागा उड़ा भगाया ।
चन्दन ले अब भूल भुलाने,
द्वार तुम्हारे आया ।।चंदनं।।
आने श्रुत-सुत कतार में बुध,
देख अहित मद तजते ।
माँ श्रुत से संज्ञान सुमन ले,
देव स्वानुभव भजते ।।
लेकिन ज्ञान-सुमन पाकर हा !
बुना बाँझ सुत सेहरा ।
अक्षत ले अब भूल भुलाने,
द्वार निहारा तुमरा ।।अक्षतं।।
आने श्रुत-सुत कतार में बुध,
भवद मदन बिसराते ।
माँ श्रुत से संज्ञान नयन ले,
लख मुख वधु शिव आते ।।
लेकिन ज्ञान-‘नयन’ पाकर हा !
मूँदे ज्यों खरगोशा ।
प्रसून ले अब भूल भुलाने,
तुम पर किया भरोसा ॥पुष्पं।।
आने श्रुत-सुत कतार में बुध,
आत्म सदन बिच रहते ।
माँ श्रुत से ले ज्ञान औषधी,
रोग भ्रमण भव नसते ।।
लेकिन ज्ञान-औषधी पाकर,
मुख बिन-पथ्य लगाया ।
नेवज ले अब भूल भुलाने,
द्वार तुम्हारे आया ।।नैवेद्यं।।
आने श्रुत-सुत कतार में बुध,
मोह महा हर लेते ।
माँ श्रुत से संज्ञान दीप ले,
मन प्रकाश भर लेते ।।
लेकिन ज्ञान-दीप पाकर हा !
बुझा श्वास-निज आया ।
दीपक ले अब भूल भुलाने,
पाई दर-तुम छाया ।।दीपं।।
आने श्रुत-सुत कतार में बुध,
ध्यानानल अरि दहते ।
माँ श्रुत से संज्ञान धीर ले,
मान कर्म फल सहते ।।
लेकिन ज्ञान-धीर पाकर हा !
रह रह कर गर्वाया ।
नेवज ले अब भूल भुलाने,
पाई दर-तुम छाया ।।धूपं।।
आने श्रुत-सुत कतार में बुध,
खड्ग धार पग रखते ।
माँ श्रुत से संज्ञान पोत ले,
भव जल तट उस दिखते ।।
लेकिन ज्ञान-पोत पाकर हा !
औरन पार लगाया ।
श्री फल ले अब भूल भुलाने,
द्वार तुम्हारे आया ।।फलं।।
आने श्रुत-सुत कतार में बुध,
सहज निराकुल रहते ।
माँ श्रुत से संज्ञान अमृत ले,
झट पट गट-गट करते ।।
लेकिन ज्ञान-अमृत पाकर हा !
इधर उधर झलकाया ।
वस द्रव ले अब भूल भुलाने,
पाई दर-तुम छाया ।।अर्घं।।
*दोहा*
दया ज्ञान गुरुदेव की,
रहती जिनके साथ ।
श्री गुरु विद्या सिन्धु वे,
तिन्हें नवाऊँ माथ ।।
*जयमाला*
विद्या सिन्धु हमारे हैं ।
मल्लप्पा दृग् तारे हैं ।।
श्रीमति राज दुलारे हैं ।
एक और शश, जश दूनो
धन रातरि शारद पूनो ।
कल जुग एक सहारे हैं ।
विद्या सिन्धु हमारे हैं ।
धन्य सदलगा की माटी ।
गुरु देवा बचपन साथी ।।
जन-जन तारण हारे हैं ।
विद्या सिन्धु हमारे हैं ।
बाल ब्रह्म चारी नाता ।
सूरि देश-भूषण दाता ।।
लागे पाप किनारे हैं ।
विद्या सिन्धु हमारे हैं ।।
शरण ज्ञान गुरुवर लीनी ।
दीक्षा दैगम्बर जैनी ।।
गूँज उठे जय कारे हैं ।
विद्या सिन्धु हमारे हैं ।
मंदिर कलश चढ़ाया है ।
गुरु ने गुरु बनाया है ।।
जनहित काज संवारे हैं ।
विद्या सिन्धु हमारे हैं ।
मल्लप्पा दृग् तारे हैं ।।
श्रीमति राज दुलारे हैं ।
विद्या सिन्धु हमारे हैं
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*दोहा*
भूल बन पड़ी जो इन्हें,
कृपया करके माफ ।
अपने अपनों में मुझे,
रख लीजे गुरु आप ॥
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