परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 41
सबने ठुकराया ।
पास तिरे आया ।।
ले उम्मींद बड़ी ।
दो बना बिगड़ी ।।
विद्या मुनिराया।।स्थापना।।
करता जल अर्पण ।
सपना सम-दर्शन ।।
मिथ्यातम छाया ।
विद्या मुनिराया ।।
पास तिरे आया ।
ले उम्मींद बड़ी ।
दो बना बिगड़ी ।।
विद्या मुनिराया ।। जलं।।
अर्पण घिस चन्दन ।
अटूट भव बन्धन ।।
मृग भागे बायाँ ।
विद्या मुनिराया ।।
पास तिरे आया ।
ले उम्मींद बड़ी ।
दो बना बिगड़ी ।।
विद्या मुनिराया ।।चंदनं।।
अर्पण धाँ शाली ।
रूठी दीवाली ।।
चकाचौंध माया ।
विद्या मुनिराया ।।
पास तिरे आया ।
ले उम्मींद बड़ी ।
दो बना बिगड़ी ।।
विद्या मुनिराया ।।अक्षतं।।
अर्पण फुलवारी ।
रहता मन भारी ।।
विषयन भरमाया ।
विद्या मुनिराया ।।
पास तिरे आया ।
ले उम्मींद बड़ी ।
दो बना बिगड़ी ।।
विद्या मुनिराया ।।पुष्पं।।
अर्पण घृत व्यंजन ।
सपना सदाचरण ।
बगुला मन भाया ।।
विद्या मुनिराया ।।
पास तिरे आया ।
ले उम्मींद बड़ी ।
दो बना बिगड़ी ।।
विद्या मुनिराया ।।नैवेद्यं।।
अर्पण दीप रतन ।
सम्यक् ज्ञान सपन ।
सिर पश्चिम साया ।
विद्या मुनिराया ।।
पास तिरे आया ।
ले उम्मींद बड़ी ।
दो बना बिगड़ी ।।
विद्या मुनिराया ।।दीपं।।
भेंट गंध दश विध ।।
रूठी सी निज निध ।
गेह नेह काया ।
विद्या मुनिराया ।।
पास तिरे आया ।
ले उम्मींद बड़ी ।
दो बना बिगड़ी ।।
विद्या मुनिराया ।।धूपं।।
भेंट रसीले फल ।
नैन पनीले, छल ।।
गान मान गाया ।
विद्या मुनिराया ।।
पास तिरे आया ।
ले उम्मींद बड़ी ।
दो बना बिगड़ी ।।
विद्या मुनिराया ।।फलं।।
दिव्य अर्घ अर्पण ।
स्वर्ग-पवर्ग सपन ।।
खुद मुँह की खाया ।
विद्या मुनिराया ।।
पास तिरे आया ।
ले उम्मींद बड़ी ।
दो बना बिगड़ी ।।
विद्या मुनिराया ।।अर्घं।।
==जयमाला==
*दोहा*= पल-पल जिनको दीखता,
अपना आतम राम ।
श्री गुरु विद्या वे तिन्हें,
सविनय नम्र प्रणाम ॥
पाई खुशबू न्यारी ।
सदलगा फुलबारी ।।
आई सुर्ख़िंयों में ।
पानी अँखिंयों में ।।
जाऊँ मैं बलिहारी ।
पाई खुशबू न्यारी ।
सदलगा फुलबारी ।।
नया एक फूल खिला ।
दूसरा न और मिला ।।
देखी दुनिया सारी ।
जाऊँ मैं बलिहारी ।
पाई खुशबू न्यारी ।
सदलगा फुलबारी ।।
अनूठा मुस्कुराना ।
न छेड़ती पवमाना ।।
नया एक फूल खिला ।
दूसरा न और मिला ।।
देखी दुनिया सारी ।
जाऊँ मैं बलिहारी ।
पाई खुशबू न्यारी ।
सदलगा फुलबारी ।।
कण-पराग कुछ हटके ।
नूर आसमाँ टपके ।।
नया एक फूल खिला ।
दूसरा न और मिला ।।
देखी दुनिया सारी ।
जाऊँ मैं बलिहारी ।
पाई खुशबू न्यारी ।
सदलगा फुलबारी ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
सुन लीजे विनती जरा,
विद्या सिन्धु हजूर ।
रख लीजे नजदीक ही,
अब न कीजिजे दूर ॥
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