परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 48
ओम नमो नमः
ओम नमो नमः
शश शरद पूर्णिमा ।
सुत सिरी-मन्त माँ ।
हृदय करुणा क्षमा ।
ओम नमो नमः
ओम नमो नमः ।।स्थापना।।
नीर क्षीर भर लाया हूँ ।
लिये आश ये आया हूँ ।।
‘के छू पाऊँ आसमाँ ।।
शश शरद पूर्णिमा ।
सुत सिरी-मन्त माँ ।
हृदय करुणा क्षमा ।
ओम नमो नमः
ओम नमो नमः ।।जलं।।
मलय गंध घिस लाया हूँ ।
लिये आश ये आया हूँ ।।
‘के कर सकूँ पुण्य जमा ।।
शश शरद पूर्णिमा ।
सुत सिरी-मन्त माँ ।
हृदय करुणा क्षमा ।
ओम नमो नमः
ओम नमो नमः ।। चन्दनं।।
धान कटोरे लाया हूँ ।
लिये आश ये आया हूँ ।।
‘के पधारें कण्ठ माँ ।।
शश शरद पूर्णिमा ।
सुत सिरी-मन्त माँ ।
हृदय करुणा क्षमा ।
ओम नमो नमः
ओम नमो नमः ।। अक्षतं।।
पुष्प सुगंधित लाया हूँ ।
लिये आश ये आया हूँ ।।
‘के गुमा सकूँ हा ! गुमाँ ।।
शश शरद पूर्णिमा ।
सुत सिरी-मन्त माँ ।
हृदय करुणा क्षमा ।
ओम नमो नमः
ओम नमो नमः ।। पुष्पं।।
बना चारु चरु लाया हूँ ।
लिये आश ये आया हूँ ।।
‘के क्षुधा कहें अलविदा ।।
शश शरद पूर्णिमा ।
सुत सिरी-मन्त माँ ।
हृदय करुणा क्षमा ।
ओम नमो नमः
ओम नमो नमः।। नैवेद्यं।।
दिये साथ में लाया हूँ ।
लिये आश ये आया हूँ ।।
‘के आजूँ ज्ञान सुरमा ।
शश शरद पूर्णिमा ।
सुत सिरी-मन्त माँ ।
हृदय करुणा क्षमा ।
ओम नमो नमः
ओम नमो नमः ।। दीपं।।
नूप धूप घट लाया हूँ
लिये आश ये आया हूँ ।।
‘के पायें न कर्म घुमा
शश शरद पूर्णिमा ।
सुत सिरी-मन्त माँ ।
हृदय करुणा क्षमा ।
ओम नमो नमः
ओम नमो नमः ।।धूपं।।
वन-नन्दन फल लाया हूँ
लिये आश ये आया हूँ ।।
‘के रिझाऊँ शिव रमा।
शश शरद पूर्णिमा ।
सुत सिरी-मन्त माँ ।
हृदय करुणा क्षमा ।
ओम नमो नमः
ओम नमो नमः ।। फलं।।
द्रव्य दिव्य दिव लाया हूँ
लिये आश ये आया हूँ ।।
‘के दो दर्शन रहनुमा
शश शरद पूर्णिमा ।
सुत सिरी-मन्त माँ ।
हृदय करुणा क्षमा ।
ओम नमो नमः
ओम नमो नमः ।। अर्घ्यं।।
“दोहा”
आन-वान अर शान हैं,
जिनकी श्री गुरु-ज्ञान ।
शाने-हिन्दुस्तान वे,
हम भक्तों की जान ॥
जयमाला
जय गुरु ज्ञान सिन्धु सुत थारी ।
जय जय माहन धर्म प्रचारी ॥
संकट हर ! जय त्रिभुवन त्राता ।
दीन बन्धु जय जग विख्याता ॥
एक भक्त ! वत्सल ! मनहारी ।
जय गुरु ज्ञान सिन्धु सुत थारी ।
धीर वीर ! पन अक्ष विजेता ।
जय जय चउ विध संघ विनेता ॥
बाल वैद्य ! जय करुणा धारी !
जय गुरु ज्ञान सिन्धु सुत थारी ।
सदय-हृदय ! इच्छा वरदानी ।
जय कृपालु जय सम-रस सानी ॥
विघ्न विनाशक ! पाप प्रहारी ।
जय गुरु ज्ञान सिन्धु सुत थारी ॥
दया सिन्धु ! जय गुण गम्भीरा ।
जय ऋषि मुनि सन्तन इक हीरा ॥
जय भविकन मिथ्यात्व विदारी |
जय गुरु ज्ञान सिन्धु सुत थारी ॥
विरहित वैर भाव ! निष्कामी !
जय जय तीर्थो-द्धारक नामी ॥
गौ संरक्षक आत्म बिहारी !
जय गुरु ज्ञान सिन्धु सुत थारी
जय जय धुनि जल भाँति प्रवासी !
विगत सँग ! कलि इक विश्वासी ॥
त्रय रत्नन धर ! जय अविकारी !
जय गुरु ज्ञान सिन्धु सुत थारी ॥
कवि कुल गुरु ! विरहित वैशाखी !
जय कलि जुग सत्-जुगीन झाँकी ॥
जय जय दिन-दुर्दिन सहकारी !
जय गुरु ज्ञान सिन्धु सुत थारी ॥
जय अध्यात्म सुधा-रस-रसिया !
भुवन तीन जन जन मन वसिया ॥
कलि पद चरित चक्री अधिकारी !
जय गुरु ज्ञान सिन्धु सुत थारी ॥
निष्प्रमादी जय सजग सिपाही !
अपर गुणाकर त्रिभुवन माहीं ॥
गुण अगम्य ! निस्पृह उपकारी !
जय गुरु ज्ञान सिन्धु सुत थारी ॥
।।जयमाला-पूर्णार्घं।।
“दोहा”
गुरु गुण कीर्तन में रहा,
समरथ कौन सुजान ।
हुआ पूर्ण किसका कहो,
क्षितिज पर्श अरमान ॥
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