परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 47
जयतु जय विद्यासागर सन्त ।
झलकते कुन्द-कुन्द भगवन्त ।।
सदलगा नन्दन बाग प्रसून ।
चन्द्रमा मुखड़ा शारद पून ।।
मलप्पा-नन्दन, सुत श्री-मन्त ।
जयतु जय विद्या सागर सन्त ।।
।।स्थापना।।
लिये आया प्रासुक जल क्षीर ।
अभी भी स्वप्न जलधि भव तीर ।।
स्वप्न पूरण हित नमन अनन्त ।
जयतु जय विद्या सागर सन्त ।। जलं।।
लिये आया जल चन्दन चूर ।
अभी भी स्वप्न आत्म कस्तूर ।।
स्वप्न पूरण हित नमन अनन्त ।
जयतु जय विद्या सागर सन्त ।।चन्दनं।।
लिये आया धाँ शालि परात ।
अभी भी स्वप्न सुदृष्टि प्रभात ।।
स्वप्न पूरण हित नमन अनन्त ।
जयतु जय विद्या सागर सन्त ।।अक्षतं।।
लिये आया प्रसून वन-नन्द ।
अभी भी स्वप्न सहज-आनन्द ।।
स्वप्न पूरण हित नमन अनन्त ।
जयतु जय विद्या सागर सन्त ।।पुष्पं।।
लिये आया घृत व्यञ्जन साथ ।
अभी भी स्वप्न निरंजन पाथ ।।
स्वप्न पूरण हित नमन अनन्त ।
जयतु जय विद्या सागर सन्त ।।नैवेद्यं।।
लिये आया घृत अनबुझ ज्योत ।
अभी भी स्वप्न रतन-मण-मोत ।।
स्वप्न पूरण हित नमन अनन्त ।
जयतु जय विद्या सागर सन्त ।।दीपं।।
लिये आया सुगन्ध दश भाँत ।
अभी भी स्वप्न अखीर समाध ।।
स्वप्न पूरण हित नमन अनन्त ।
जयतु जय विद्या सागर सन्त ।।धूपं।।
लिये आया फल मधुर पिटार ।
अभी भी स्वप्न जलधि भव पार ।।
स्वप्न पूरण हित नमन अनन्त ।
जयतु जय विद्या सागर सन्त ।।फलं।।
लिये आया वसु द्रव्य अमोल ।
अभी भी स्वप्न सुरीले बोल ।।
स्वप्न पूरण हित नमन अनन्त ।
जयतु जय विद्या सागर सन्त ।।अर्घ्यं।।
*दोहा*
बने हुये जो लोक में,
दिव्य भावना धाम |
गुरु विद्या सादर तिन्हें,
मेरा नम्र प्रणाम ।
*जयमाला*
मुझे गुरु साँचा मिल गया ।
मन सुमन मेरा खिल गया ।।
पैंय्या पैंय्या चाले ।
ले गुरु छैय्या चाले ।।
निर्दाम और निष्काम, खे अरु नैय्या चाले ।।
मिल गया जीवन मुझे नया ।
मुझे गुरु साँचा मिल गया ।।
नयना गंगा-जमुना ।
वयना मैना कम ना ।।
जो ‘सहजो निराकुल’, माहन्त पन्थ गहना ।।
जुग दृग हया, रग रग दया।
मुझे गुरु साँचा मिल गया ।।
न चेहरे पे चेहेरा ।
साधे डूबा गहरा ।।
रत्नाकर, विद्याधर ।
दे पहर-पहर पहरा ।।
मन सुमन मेरा खिल गया ।
मुझे गुरु साँचा मिल गया ।।
।।जयमाला-पूर्णार्घं।।
*दोहा*
हो चाली गुरुवर कृपा,
अब क्या मुझसे दूर ।
दिव-शिव दोनों हाथ में,
लड्डू मोती-चूर ।।
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