परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 40
सूरि गुरु कुन्द-कुन्द जैसा,
निराकुल धवल चरित जिनका ।
फेरने के पहले मनके,
भाव फेरा जिनने मन का ।।
शिरोमणि सन्तों में जिनका,
शीर्ष पे आज नाम आता ।
सिन्धु विद्या, मेरे गुरुवर !
नवाता चरणों में माथा ।।स्थापना।।
टकटकी लगा देखती है ।
जिन्हें वसु याम मुक्ति राधा ।।
द्वन्द निज-पर हित में जिनने,
सहज हित अपना है साधा ।।
ज्ञान गुरुवर पधराये है ।
हृदय में वज्र लेप भाँती ।
सिन्धु विद्या, मेरे गुरुवर !
बने वे शिव पुर तक साथी ।। जलं ।।
गरभ दुख लख प्रण जग विसरे,
मगर है जिन्हें याद उनकी ।।
अहो ! गज रूप कुमति भागें,
शीघ्र सुन सिंह नाद जिनकी ।।
ज्ञान गुरु स्वर्णिम सपने से,
हृदय में अपने पधराये ।
सिन्धु विद्या, मेरे गुरुवर !
उन्हीं सा चारित मन भाये ।। चन्दनं ।।
ढेर उपकरणों का गिरि-सा,
आज तक किया जिन्हें सुध है ।
वानरी वन संयत करने,
पास जिनके प्रांजल श्रुत है ।।
ज्ञान गुरु अमिट प्रशस्ति से,
हृदय पधराये जिन्होंने ।
सिन्धु विद्या, मेरे गुरुवर !
शरण आया मद छिन खोने ।। अक्षतं ।।
जगत ये है प्यारा जिनको,
नगर नारी सनेह जैसा ।
कौन वो पल जिस पल ना ये,
सौख्य पायें विदेह जैसा ।।
ज्ञान गुरु अयस् नीर भाँती,
बिठाये जिन्होंने उर में ।
सिन्धु विद्या, मेरे गुरुवर !
सँभालो मुझे रहा गिर मैं ।।पुष्पं।।
दवा खाना क्या कहता है,
कान से उर तक लाये हैं ।
अमृत झिर स्वानुभूत लागी,
जिन्हें कब भोग रिझाये हैं ।।
ज्ञान गुरु पत्थर रेखा से,
किये संस्थापित उर अपने ।
सिन्धु विद्या, मेरे गुरुवर !
उन्हीं से पूरूँ शिव सपने ।।नैवेद्यं।।
और न माँ रुलाऊँगा अब,
जिन्हें इस प्रण की खबर रहे ।
भले ही कर्म जान लेवा,
मगर जिनके उर सबर रहे ।।
ज्ञान गुरु नाम अखर सार्थक,
हृदय अंकित कीने जिनने ।
सिन्धु विद्या, मेरे गुरुवर !
चरण आया उन सा बनने ।।दीपं ।।
भरा आधा गिलास दिखता,
कहाँ दिखता खाली आधा।
जिन्होंने अपराधी को भी,
कभी न पहुँचाई बाधा ।।
ज्ञान गुरुवर जिनने उर में,
स्वर्ण अक्षर संस्थित कीने।
सिन्धु विद्या, मेरे गुरुवर !
चढूँ उन भाँत मुक्ति जीने ।। धूपं ।।
दीन क्रन्दन सुन कर जिनके,
नयन से नीर झलक आता ।
धवल जश इनका गाये बिन,
कहो मन किसका रह पाता ।।
ज्ञान गुरु प्रीत मीन जल से,
जिन्होंने उर अपने थापे ।
सिन्धु विद्या, मेरे गुरुवर !
इन्हें लख भय सप्तक काँपे ।।फलं ।।
जिन्हें सुध द्रव्य-लिंग बाना,
एक ना ओड़ा लख बारी ।
वीट खातिर निदान करके,
साधना खाक हाय ! सारी ।।
ज्ञान गुरु अकृत्रिम जिन से,
जिन्होंने पधराये उर भो ।
सिन्धु विद्या, मेरे गुरुवर !
हाथ उनका मेरे सिर हो ।।अर्घ्यं ।।
*दोहा*
जिन कर कमलन चाहते,
जिन दीक्षा सब लोग ।
श्री गुरु विद्या वे तिन्हें,
सतत हमारी ढोक |
==जयमाला==
दृगों में हया ।
रगों मे दया ।
जय जयतु जय गुरुवर विद्या ।।
पिता मलप्पा ।
सिरी मन्त माँ ।।
शरद पूर्णिमा ।
जन्म सदलगा,चन्द्रमा नया ।
दृगों में हया ।
रगों मे दया ।
जय जयतु जय गुरुवर विद्या ।।
व्रत दिगम्बरा ।
ज्ञान सागरा ।।
छाँव बुत क्षमा ।
नित् नमो नमः, नव सुरोदया ।।
दृगों में हया ।
रगों मे दया ।
जय जयतु जय गुरुवर विद्या ।।
प्रतिभा रत वा ।
संस्थल प्रतिभा ।।
नाज गुशाला ।
आज गुशाला, ‘निराकुल’ दिया ।।
दृगों में हया ।
रगों मे दया ।
जय जयतु जय गुरुवर विद्या ।।
*दोहा*
अरज एक तुम से करूँ,
हाथ जोड़ सिर टेक ।
रहे छका वसु कर्म हैं,
जरा लीजिए देख ।।
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