परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक -5
=== स्थापना ===
दाग शून जश ।
शरद पून शश ।।
सन्त सदलगा ।
रंग लो रँगा अपने, सपने न और बस ।
अय! शरद पून शश ।।स्थापना।।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र अवतर अवतर संवोषट् इति आव्हानम्।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: इति स्थापनम्।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
पुष्पांजलि क्षिपामी…
क्षीर अर्णवज ।
विलय सर्व रज ।।
अपना भी लो ये जल कलश ।
सपने न और बस ।
अय! शरद पून शश ।।जलं।।
मलय पर्वतज ।
विलय सर्व रज ।।
अपना भी लो ये गन्ध रस ।
सपने न और बस ।
अय! शरद पून शश ।।चन्दनं।।
शालि धान अज ।
विलय सर्व रज ।।
अपना भी लो ये धाँऽऽदरस ।
सपने न और बस ।
अय! शरद पून शश ।।अक्षतं।।
बाग नन्दनज ।
विलय सर्व रज ।।
अपना भी लो ये दल सहस ।
सपने न और बस ।
अय! शरद पून शश ।।पुष्पं।।
गाय गिर घृतज ।
विलय सर्व रज ।।
अपना भी लो ये चरू परस ।
सपने न और बस ।
अय! शरद पून शश ।।नेवैद्यं।।
घृत पहर अठज ।
विलय सर्व रज ।।
अपना भी ‘लो’ ये खुद सदृश ।
सपने न और बस ।
अय! शरद पून शश ।।दीप॑।।
मद सुगंध गज ।
विलय सर्व रज ।।
अपना भी लो ये गंध दश ।
सपने न और बस ।
अय! शरद पून शश ।।धूपं।।
स्वर्ग पादपज ।
विलय सर्व रज ।।
अपना भी लो, ये फल सरस ।
सपने न और बस ।
अय! शरद पून शश ।।फल॑।।
थाल रत्न स्रज ।
विलय सर्व रज ।।
अपना भी लो, अय ! ‘पुन’ शश ।
सपने न और बस ।
अय! शरद पून शश ।।
दाग शून जश ।
शरद पून शश ।।
सन्त सदलगा ।
रंग लो रँगा अपने, सपने न और बस ।
अय! शरद पून शश ।।अर्घं।।
दोहा=
एक अमंगल-हार है,
गुरुवर मंगल-कार ।
चरणों में गुरुदेव के,
वन्दन बारम्बार ।।
=जयमाला=
शरद पून शश गौर ।
सन्तन इक सिर-मौर ।।
कब अनसुनी करें आवाज, चले आते झट दौड़ ।
देख न सकते पीर ।
ढुल चलता, दृग् नीर ।।
छोड़ काम सब और,
कब अनसुनी करें आवाज, चले आते झट दौड़ ।
करुणा दया निधान ।
‘गुरु पून माँ’ प्रमाण ।।
वत्सल अंग प्रधान ।
देख न सकते पीर ।
ढुल चलता, दृग् नीर ।।
छोड़ काम सब और,
कब अनसुनी करें आवाज, चले आते झट दौड़ ।
शरद पून शश गौर ।
सन्तन इक सिर-मौर ।।
कब अनसुनी करें आवाज, चले आते झट दौड़ ।
रखें पीछिका हाथ ।
साथ न और उपाध ।।
इक साधना समाध ।
करुणा दया निधान ।
‘गुरु पून माँ’ प्रमाण ।।
वत्सल अंग प्रधान ।
देख न सकते पीर ।
ढुल चलता, दृग् नीर ।।
छोड़ काम सब और,
कब अनसुनी करें आवाज, चले आते झट दौड़ ।
शरद पून शश गौर ।
सन्तन इक सिर-मौर ।।
कब अनसुनी करें आवाज, चले आते झट दौड़ ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
दोहा=
श्रद्धा से जो भी झुका,
आ गुरुवर के द्वार ।
आँखों देखी कह रहा,
सहज निराकुल पार ।।
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