वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=पूजन=
विरदावली…
प्रतिभा स्थली…
शाने-भू-मण्डल अहो,
बारम्बार प्रणाम ।
निरत ‘कि भारत माथ से,
हटे इण्डिया नाम ।।१।।
चेतन कृतियों में रहा,
प्रतिभा-मण्डल नाम ।
शाने-हिन्दुस्तान वे,
शत-शत तिन्हें प्रणाम ।।२।।
गई हिन्दी सम्मान पा,
पा जिनकी मुस्कान ।
हथकरघा की जान में,
नई आ गई जान |।३।।
प्रतिभा स्थली नाम की,
जिनकी बिटियाँ एक ।
छोटे बाबा वे तिन्हें,
मेरे नमन अनेक ॥४।।
यही विनती आपसे,
बच्चों की मुस्कान ।
चखा हमें भी दो कभी,
स्वानुभूति पकवान ।।५।।
वही जो सबसे प्यारे ।
वही जो जग से न्यारे ।।
कौन वह बतला भी दो ।
छोटे बाबा हमारे ।। स्थापना।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
रखें ओढ़नी ओढ़ ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या शिव-मोड़ ।।६।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
बनीं अदब आदर्श ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या प्रद-हर्ष ।।७।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
उड़ा न रहीं मजाक ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या श्रुत आँख ।।८।।
इन्हें गुस्सा न आता ।
छू न अभिमान पाता ।।
नीर लाये स्वीकारो ।
पीर का टूटे ताँता ।। जलं ।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
बोले कोकिल बोल ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या अनमोल ।।९।।
पढ़ प्रतिभा थली बेटियाँ,
रखें सँभल के पाँव ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या मुनि राँव ।।१०।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
रहें नशे से दूर ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या कुहनुर ॥११।।
इन्हें हर कोई प्यारा ।
दी खुला शांति धारा ।।
लिये चन्दन स्वीकारो ।
दो विघट देह-कारा ।। चंदनं ।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
मुँह लग करें न बात ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या मुनि नाथ ॥१२।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
चेटिंग-डेटिंग दूर ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या सुखपूर ॥१३।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
वृक्ष न तोड़ें पात ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या प्रभु भाँत ॥१४।।
इन्हें गोशाला प्यारी ।
बाल हर बाला प्यारी ।।
लिये अक्षत स्वीकारो ।
हर विहर लो दुश्वारी ।। अक्षतम् ।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
रहें ना कच्चे कान ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या भगवान् ॥१५।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
रखें ऐड़िया साफ ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या निष्पाप ॥१६।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
करें ‘हेट’ सिगरेट ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या उर श्वेत ॥१७।।
सदा रहते मुस्काते ।
गीत करुणा के गाते ।।
पुष्प लाये स्वीकारो ।
जोड़ सुख से दो नाते ।। पुष्पं ।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
करें न टाइम पास ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या भवि खास ॥१८।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
वरें न बंदर बाट ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या सम्राट ॥१९।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
करें न गज स्नान ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या गुणखान ॥२०।।
काम ये आते सबके ।
फरिश्ते भेजे रब के ।।
लिये व्यंजन स्वीकारो ।
क्षुधा पीड़ित हम कब के ।। नैवेद्यं ।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
वरें न गफलत कीर ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या भव-तीर ॥२१।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
चटका रहीं न काँच ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या धर-साँच ॥२२।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
रखें घड़ी सी चाल ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या विद्-भाल ॥२३।।
इन्हें प्यारा हथकरघा ।
बोझ दें विघटा सर का ।।
लिये दीवा स्वीकारो ।
दिखा मारग दो घर का ।। दीपं ।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
धरती वत्सल भाव ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या थिर-छाँव ॥२४।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
करें न मंथन नीर ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या धर-धीर ॥२५।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
वरें न म्याऊँ पंथ ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या भगवंत ॥२६।।
अंधेरे में उजियाले ।
तिरे मेरे रखवाले ।।
धूप लाये स्वीकारो ।
मग न रोकें पग छाले ।। धूपं ।।
पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
रेत न खेती नाव ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या भवि-ठाँव ॥२७।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
छुयें आसमाँ छोर ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या सिर-मौर ।।२८।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
विरच रहीं इतिहास ।
रही आपकी ही कृपा,
शिष्य ज्ञान गुरु खास ।।२९।।
बेंत सी लोच समाई ।
सेतु सी सोच समाई ।।
लिये श्रीफल स्वीकारो ।
थमा दो शिव ठकुराई ।। फलं ।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
दें औरों को छाँव ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या शिव नाव ।।३०।।
पड़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
जागे देर न रात ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या मुनिनाथ ।।३१।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
पहने-गहने लाज ।
रही आपकी कृपा,
गुरु विद्या महाराज ।।३२।।
पाप हर लेते सारे ।
सुलट दें भाग सितारे ।।
अरघ लाये स्वीकारो ।
लगा दो नाव किनारे ।। अर्घं ।।
=विधान प्रारंभ=
हम बच्चों की जान ।
गुरु जी थारी मुस्कान ।।
जिससे गुल मुस्काना ।
सीखा शुक बतियाना ।।
पर तितली भरे उड़ान ।
गुरु जी थारी मुस्कान ।।
चीटीं मंजिल पाना ।
सीखी कोकिल गाना ।।
दे-भर अलि कण्ठी गान ।
गुरु जी थारी मुस्कान ।।
लौं अपर काम आना ।
सीखी गो गम खाना ।।
नौ भरे जगत् कल्याण ।
गुरु जी थारी मुस्कान ।।
करघा ताना-बाना ।
सीखा घर का खाना ।।
जिससे शिशु वृद्ध जवान ।
गुरु जी थारी मुस्कान ।।स्थापना।।
प्रथम सम्यक् दर्शन वलय
(१)
हाई-को ?
फ़िक्र पाती छू-ना,
हैं कहें गुरु जी “बेटा ! मैं हूँ ना” ।।
ले नीर,
छुई चौखट, हो चौपट,
भव-पीर ।
‘कि कर्म-बंध ।
ले गंध,
ले धान,
छुई चौखट, हो चौपट,
अभिमान
‘कि मूल भूल ।
ले फूल,
ले भोग,
छुई चौखट, हो चौपट,
क्षुधा रोग ।
‘कि पाप धिया ।
ले दीया ।
ले धूप ।
छुई चौखट, हो चौपट
पाप छुप ।
‘कि माथे सल ।
ले फल ।
ले अर्घ ।
छुई चौखट, हो चौपट,
‘कि अघ सर्व ।।अर्घ्यं।।
(२)
हाई-को ?
तुम्हें देखते ही ।
‘दुःख-दर्द’ मुड़ देखते नहीं ।।
भेंटूँ दृग् जल ।
लो बना मुझे खुद-सा ।
खो जाये ईर्ष्या ।
‘के खो जाये गुस्सा ।
खो जाये लिप्सा ।
‘के खो जाये नशा ।
खो जाये क्षुधा ।
‘के खो जाये निशा,
गहल शशा ।
‘के खो जाये तृषा ।
भेंटूँ जल-फल, छाँव निवसा,
लो बना मुझे खुद-सा ।।अर्घ्यं।।
=महा अर्घ्य=
हम बच्चों की जान ।
बच्चों से दिल सच्चे ।
बच्चों के सँग बच्चे ।।
हर बच्चे को प्यारे ।
छोटे बाबा हमारे ।
इनकी मुस्काँ मीठी ।
मिसरी गुड सारीखी ।।
इनकी वाणी मीठी ।
जिन-वाणी सारीखी ।।
इनकी आँखें नीलीं ।
पर-पीर-देख गीलीं |।
इनकी नासा नीकी ।
गुल चम्पक सारीखी ।।
इनका मुखड़ा नीका ।
शशि भी दिखता फीका ।।
इनके कन्धे नीके ।
उन्नत गिरि सारीखे ।।
इनकी दृष्टि नीकी ।
बिलकुल माँ सारीखी ।।
इनका माथा नीका ।
दिखता सूरज फीका ।।
इनकी गर्दन नीकी ।
छव शंख लगे फीकी ।।
भर भक्ति लिये अरघ ।
कर मुक्ति लगे सुरग ।।अर्घं।।
द्वितीय सम्यक् ज्ञान वलय
(१)
हाई-को ?
कहीं आनन्द लेता श्वास ।
तो सिर्फ गुरु के पास ।।
भेंटूँ दृग् जल,
अय ! भगवन् आन,
दो कर कल्याण ।
अय ! भगवन् मेरे,
दो मेंट अंधेरे ।
अय ! भगवन् मोर,
दो जोड़ बेजोड़ ।
अर ! भगवन् हमार,
दो पार उतार ।
अय ! भगवन् सुनो,
मुझे अपना चुनो ।
अय ! भगवन् त्वरा,
दो द्यु-शिव धरा ।
अय ! भगवन् मम,
कर दो राह सुगम ।
अय ! भगवन् जरा,
दो बरषा कृपा ।
द्रव्य यह, अय ! भगवन् इसे,
लो अपना मन से ।।अर्घ्यं।।
(२)
हाई-को ?
सन्तों का रूप धरकर ।
जमीं औ’तरे ईश्वर ।।
भेंटूँ जल,
ओ वर्तमाँ-वर्धमाँ,
दो छुवा आसमाँ ।
भेंटूँ गंध,
ओ ! सार्गिद इर्द-गिर्द,
लो मेंट दर्द ।
भेंटूँ अक्षत,
औ जुबाँ नौ-जबाँ
दो छुवा वो जहाँ ।
भेंटूँ पुष्प,
गो बाधी राखी ओ
लाज मोरी राखिओ ।
भेंटूँ चरु,
ए-नूरे-जहाँ !
कर दो पूरे अरमाँ ।
भेंटूँ दीप,
ए ! हिया-दूधिया
कीजे दिले-दरिया ।
भेंटूँ धूप,
औ’ नाम, ‘गौ’ धाम,
लिख नाम दो शाम ।
भेंटूँ फल,
ओ ! जल भिन्न कमल,
दो मेंट छल ।
भेंटूँ अर्घ,
ओ ! माँ श्री मन्ती नन्दन,
कोटि वन्दन ।।अर्घ्यं।।
(३)
हाई-को ?
बच्चे ‘कि जाये भाग जाग ।
माँओं की भागमभाग ।।
त्राहिं माम्
सुनते हैं, आप आँसू पौंछते ।
हम जल सौंपते ।
हम चन्दन भेंटें ।
सुनते हैं, आप क्रन्दन मेंटें ।
सुनते हैं, आप विपत् विलोंपें ।
हम अक्षत सौंपें ।
हम पुष्प क्षेपते ।
सुनते हैं, आप, पार भेजते ।
सुनते हैं, आप वैद्य-बाल हो ।
हम नैवेद्य लायो ।
हम प्रदीप बालें ।
सुनते हैं, आप पास बुला लें ।
सुनते हैं, आप दुःख मेंटते ।
हम धूप भेंटते ।
हम फल चढ़ाते ।
सुनते हैं, आप छल बिलाते ।
सुनते हैं, आप अघ करें छू ।
इसलिए अरघ भेंटूॅं ।।अर्घ्यं।।
(४)
हाई-को ?
श्री गुरु दीया, ‘कि लौं लागी ।
अंधेरा बुराई भागी ।।
भेंटूँ जल नयन ।
रहे स्वप्न न सम्यक् दर्शन ।
रहे स्वप्न न सदाचरण ।
घट चन्दन, भेंटूँ धाँ शालि कण ।
रहे स्वप्न न स्वानुभवन ।
रहे स्वप्न न जय नयन ।
दिव्य सुमन, भेंटूँ घृत व्यंजन ।
रहे स्वप्न न जै क्षुध् वेदन ।
रहे स्वप्न न धी हंस धन ।
दीप रतन, भेंटूँ सुगंध अन
रहे स्वप्न न जै कर्म रण ।
रहे स्वप्न न शिव-सदन ।
फल चमन भेंटूँ अर्घ्य भगवन् ! ।
रहे स्वप्न न पड़गाहन ।।अर्घ्यं।।
=महा अर्घ्य=
ओ महा-विद्या-आलय ।
हो रहा विद्या का लय ।।
लगा इतिहास पलटने ।
लगे शिक्षक भी बिकने ।।
गुमें आदर्श हमारे ।
शिष्य गुरु को ललकारे ।।
पढ़ें पुस्तक अनगिनती ।
पे समझ राखें कमती ।।
‘को-एज्युकेशन’ आया ।
पश्चिमी छाई माया ।।
बने रट-रट सब तोते ।
हाथ मलते कल रोते ।।
पैर में चप्पल-जूते ।
पढ़ रहे रख मुँह-झूठे ।।
मृग सी खोजें कस्तूरी ।
हुई कोचिंग जरूरी ।।
मस्त डेटिंग में बच्चे ।
व्यस्त चैटिंग में बच्चे ।।
खूब सेटिंग होती है ।
डूब रैकिंग होती है ।।
कृपा कर जगहा-जगहा ।
दो-खुला संस्थलि प्रतिभा ।।अर्घं।।
तृतीय सम्यक् चारित्र वलय
(१)
हाई-को ?
फँस तो जाते ।
बातों में गुरु जी न कभी फँसाते ।।
हाथ तुम्हारे परहित लकीर ।
भेंटूॅं नीर, सो भेंटूॅं गंध घट ।
परहित, न तुम्हें झंझट ।
करना आया जो परहित तुम्हें ।
सो भेंटूॅं धाँ मैं ।
परहित जो साध लेते तुम ।
भेंटूॅं कुसुम, सो भेंटूॅं चरु घृत ।
आँसे न तुम्हें जो पर हित ।
परहित न तुम्हें भार ।
भेंटूॅं दीप कतार, सो भेंटूॅं सुगंधी ।
आप बन्दगी परहित अंधी ।
परहित में बीतें आप-पल ।
भेंटूॅं श्री फल सो भेंटूॅं अरघ ।
पर हित ‘जि’ ये’ आप रग-रग ।।अर्घ्यं।।
(२)
हाई-को ?
हद उलाँघ देते, देते वक्त ।
श्री गुरु दरख्त ।।
तुम किसी का छीनते न हक ।
भेंटूॅं उदक, सो भेंटूँ चन्दन ।
तुम करते न अनुबन्धन ।
तुम न लेते सहारा दीवाल ।
भेंटूॅं धाँ शाल, सो भेंटूँ पुष्प नाना ।
तुम रखते न सिरहाना ।
तुम लेते न वैशाखी कभी ।
भेंटूॅं नैवेद्य घी, सो भेंटूँ दीपक
तुम ढ़ोलते न पानी नाहक ।
तुम हो जाते उसके अनुरूप ।
भेंटूॅं धूप, सो भेंटूँ श्री फल ।
तुम दे चुके तिलांजली गहल ।
तुम चाहते न मोक्ष-सुरग ।
सो भेंटूँ अरघ ।।अर्घ्यं।।
(३)
हाई-को ?
गुरु से जुड़ प्राणी ।
‘होते गूंगे के गुड़ के’ धनी ।।
कर्तृ जन्मादि रोग-त्रय किनार ।
मैं छोड़ूॅं धार ।
ओ ! भवाताप निकन्दन,
चर्णन चर्चूं चन्दन ।
पद-अखण्ड दातार ।
धाँ कर लो मेरे स्वीकार ।
ओ ! निर्विकार ।
लो स्वीकार, ये मेरा पुष्प पिटार ।
ओ ! रोग-क्षुधा भंजन ।
लो स्वीकार भेंटूॅं व्यंजन ।
ओ ! हरतार मोहान्धकार ।
दीप ये लो स्वीकार ।
ओ कर्माष्टक निवार ।
धूप ये लो कर स्वीकार ।
निरंजन !
दृग् सजल भेंटूॅं फल वन-नन्दन ।
पद अनर्घ कर्तार ।
अर्घ मेरा ये लो स्वीकार ।।अर्घ्यं।।
(४)
हाई-को ?
गये सुलझ ।
पा क्या तुम्हें गये, थे रहे उलझ ।।
भेंटूॅं जल,
ओ रत्न चिन्तामणी ओ,
मेरी सुनियो भेंटूॅं संदल,
ओ जादुई छड़ी ओ,
मेरी सुनियो भेंटूॅं तण्डुल,
ओ पारस मणी ओ,
मेरी सुनियो भेंटूॅं गुल,
ओ काम-धेनू गुणी ओ,
मेरी सुनियो भेंटूॅं नैवेद्य,
ओ ‘कल्पवृक्ष-धी’ ओ
मेरी सुनियो भेंटूॅं दीप,
ओ राम बाण जड़ी ओ,
मेरी सुनियो भेंटूॅं धूप,
ओ शिविका विरली ओ,
मेरी सुनियो भेंटूॅं फल,
ओ आईना तिलिस्मी ओ,
मेरी सुनियो भेंटूॅं अर्घ,
ओ चिराग जादुई ओ,
मेरी सुनियो ।।अर्घ्यं।।
(५)
हाई-को ?
बिन स्वस्ति-ए-श्री गुरु ।
‘कामयाबी’ न होती शुरु ।।
लाये उदक घट,
जन्म-मृत्यु ‘कि जाये विघट ।
लाये चन्दन घट,
भवातप ‘कि जाये विघट ।
चढ़ाने लाये अक्षत,
संकट ‘कि जाये विघट ।
लाये पुष्प द्यु संपत्,
मन्मथ ‘कि जाये विघट ।
लाये नैवेद्य घृत,
रोग क्षुधा ‘कि जाये विघट ।
लाये दीप गो घृत,
मिथ्यातम ‘कि जाये विघट ।
लाये सुगंध घट,
कर्मबन्ध ‘कि जाये विघट ।
लाये श्रीफल अमृत,
गहल ‘कि जाये विघट ।
लाये निकट,
द्रव्य अष्ट,
कष्ट, ‘कि जाये विघट ।।अर्घ्यं।।
(६)
हाई-को ?
हम तुम्हारे हैं ।
जब से नभ में चाँद तारे हैं ।
जन्मान्तक हो गुम,
लाये उदक, आये दृग् नम ।
भौ-तपन हो गुम,
लाये चन्दन, आये दृग् नम ।
गफलत हो गुम,
लाये अक्षत, आये दृग् नम ।
मनसिज हो गुम,
लाये द्यु-स्रज, आये दृग् नम ।
क्षुध् वेदन हो गुम,
लाये व्यञ्जन, आये दृग् नम ।
दुख सीप हो गुम,
लाये प्रदीप, आये दृग् नम ।
कर्म-बन्ध हो गुम,
लाये सुगन्ध, आये दृग् नम ।
सिरी खल हो गुम,
लाये श्रीफल, आये दृग् नम ।।फलं।।
धी उन्मग हो गुम,
लाये अरघ, आये दृग् नम ।।अर्घ्यं।।
(७)
हाई-को ?
यूँ ही न गया बढ़ता चीर,
रोज चढ़ाया नीर ।
यूँ ही न सर-पद्म अगन,
रोज भेंटा चन्दन ।
यूँ ही न बना नागों का हार,
रोज भेंटे धाँ न्यार ।
यूँ ही न खुले बन्धन,
देर भेंटे श्रद्धा सुमन ।
यूँ ही न शूली का सिंहासन,
रोज भेंटे व्यञ्जन ।
यूँ ही न बने ज्वार मोती,
प्रजाली रोजाना ज्योती ।
यूँ ही न हुआ द्यु पूजा जाना,
खेई धूप रोजाना ।
यूँ ही न विष-सर्प विफल,
रोज भेंटे श्री फल ।
यूँ ही न खुले कपाट पाँव लग,
भेंटे अरघ ।।अर्घ्यं।।
(८)
हाई-को ?
चाँद सूरज आते ।
पंक्ति उसी, ‘श्री ऋषि’ बताते ।।
पाने मुस्कान तिरी,
लाया चढ़ाने जल गगरी ।
पाने किरपा तिरी,
लाया चढ़ाने सुगंध घुरी ।
पाने संगत तिरी,
लाया चढ़ाने धान गठरी ।
पाने सन्निधि तिरी,
लाया चढ़ाने पुष्प पाँखुड़ी ।
पाने करुणा तिरी,
लाया चढ़ाने श्रीफल गिरी ।
पाने शरणा तिरी,
लाया चढ़ाने प्रदीपावली ।
पाने नजर तिरी,
लाया चढ़ाने अगर निरी ।
पाने पीछिका तिरी,
लाया चढ़ाने फल मिसरी ।
पाने भक्ति-नौ तिरी,
लाया चढ़ाने द्रव्य-सबरी ।।अर्घ्यं।।
=महा अर्घ्य=
निराकुल और न्यारे ।
बच्चों से दिल हारे ।।
रब से छोटे बाबा ।
सब के तारण-हारे ।।
बच्चे जब भी आते ।
मुस्काँ नुख्सा पाते ।।
साहस-ढाढस पाते ।।
आशीष-शीश पाते ।।
अच्छा रस्ता पाते ।।
प्रश्नों के हल पाते ।।
दो ‘स्यात्’ बात पाते ।।
ऽऽचरणा-शरणा पाते ।।
सुख चैन-अमन पाते ।।
नवकार मन्त्र पाते ।।
ले अर्घ आये गुरु जी |
झूमते ढ़ोल बजाते ।। अर्घं ।।
॥ जयमाला ॥
==दोहा ==
छोटी-मोटी बात ना,
गुरु जी का गुणगान ।
नभ छू पाता कौन है,
भरते सभी उड़ान ॥
ग्राम सदलगा की गलियाँ ।
फूल यहीं बोलें कलियाँ ।।
वृद्ध जवाँ नन्हें मुन्ने ।
कहें किताबों के पन्ने ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।
राखी लें सखियाँ कुछ सँग ।
कहें यही होली के रँग ।।
उजयाली निशि काली भी ।
कहती यही दिवाली भी ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।
झर-झर झरतीं फुल झड़ियाँ ।
कर टिक-टिक कहतीं घड़ियाँ ।।
होले राग-रागिनी से ।
बोले चाँद चाँदनी से ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।
खेत यही हल-वा बाड़ी ।
कहती हथ-करघा साड़ी ।।
सूड़ उठा गजराज यही ।
खून हटा वनराज कही ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।
शिखर कहे जा यही गगन ।
खबर भिजाये यही पवन ।।
मृग कस्तूरी जोरों से ।
कहे मयूरी मोरों से ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।
अथक-अरुक बहती नदिया ।
फुदक फुदक कहती चिड़िया ।।
ग्वाला गो श्यामा-गौरी ।
कहती चल-चरखा डोरी ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।
पूरी मैत्री महिलायें ।
प्रतिभा थलि बाला गायें ।।
अनुशासन हर युवा यही ।
कहे प्रशासन शासन भी ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।
हस्ताक्षर वृष माहन के ।
कहें जिनालय पाहन के ।।
यही आसमाँ जमीं कहे ।
क्यों बिन बोले हमीं रहें ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।
==दोहा==
यही प्रार्थना आपसे,
हाथ जोड़ सिर टेक ।
हाथ मिरे भी खींच दो,
मिलन-शिष्य गुरु रेख ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
दोहा-
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
=आरती=
करें आरती आओ मिल के ।
साधु सन्त जन भगवन् कल के ।।
नरक पतन से डरे डरे हैं ।
देख पीर पर नैन झिरे हैं ।।
लट लुंचन सज, भज पट मुंचन,
जा बीहड़ वन बीच खड़े हैं ।।
ज्योत जगा दीवा घृत भर के ।
करें आरती आओ मिल के ।
साधु सन्त जन भगवन् कल के ।।१।।
घन गर्जन सुन तरु-तल ठाड़े ।
आन खड़े चौराहे जाड़े ।।
ग्रीष्म तपे सूरज चढ़ पर्वत,
तप्त शिला वीरासन माड़े ।।
शिव तक उठने बन कर हल्के ।
ज्योत जगा दीवा घृत भर के ।
करें आरती आओ मिल के ।
साधु सन्त जन भगवन् कल के ।।२।।
ऊपर पटल पटल मल साजे ।
उपल जान मृग खाज खुजावे ।।
जित रण चितवन, सहजो सु…मरन,
क्षण आवीचि मरण जब आवे ।।
श्रद्धा सुमन भेंट ले करके ।
ज्योत जगा दीवा घृत भर के ।।
करें आरती आओ मिल के ।
साधु सन्त जन भगवन् कल के ।।३।।
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