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श्री गुरु विधान

18. विधान- श्री गुरु-कीर्तन धारा

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।

*पूजन*
दिवा स्वप्न खोने से पहले ।
स्वप्न नव सँजोने से पहले ।।
विद्या गुरवे नमो नमः ।
जप लो मन सोने से पहले ।
सद् गुरु विद्या नमो नमः ।।
सन्त सदलगा नमो नमः ।
सुत मल्लप्पा नमो नमः ।।
नन्दन श्री मत नमो नमः ।
ज्ञान सिन्ध शिख नमो नमः ।।
नमो नमः ॐ नमो नमः
विद्या गुरवे नमो नमः
नमो नमः ॐ नमो नमः
सद् गुरु विद्या नमो नमः ।।
बिस्तर से उठने से पहले ।
दस्तक दे यम, उससे पहले ।।
विद्या गुरवे नमो नमः ।
जप लो कुछ करने से पहले ।
सद् गुरु विद्या नमो नमः ।।
कलि गोपाला नमो नमः ।
दीन दयाला नमो नमः ।।
पाछी वायू नमो नमः ।
जाँ पूर्णायू नमो नमः ।।
छोटे बाबा नमो नमः ।
दिव-शिव नावा नमो नमः ।।
सन्त शिरोमण नमो नमः ।
सावन लोचन नमो नमः ।।स्थापना।।

जय विद्या जय विद्या बोलो ।
कपि मन, होता कम चंचल
हाय ! मन रंग बदले पल-पल
मैली अपनी चादर धो लो ।।
जय विद्या जय विद्या बोलो ।
होके भक्ति में मगन,
लगा के गुरु जी से लगन,
मैली अपनी चादर धो लो ।।
कौन सा पाप न करते हम
दिल दुखाते ही रहते हम
सुना आते हैं जिस किसी को,
सुनने की आदत हमें नहीं,
है इक उम्र गुजरने को,
हुई न अब-तक आँखें नम
कौन सा पाप न करते हम
कषायें सब की सब हावी
नज़र बेताली, बेताबी
नाक पे एक भारी चश्मा,
हाथ में लाठी डगमग सी,
चुनेगी क्यों कर ?
कहो तो…
अहो ओ…
क्यों कर चुनेगी हमें कामयाबी
कषायें सब की सब हावी
मैली अपनी चादर धो लो ।।
जय विद्या जय विद्या बोलो ।।जलं।।

सुबह-सुबहो ।
ले नाम गुरु का लो ।।
शुभ हो-शुभ हो ।
ले नाम गुरु का लो ।।
फिर नहिं ले पायेंगे,
रहते काम ढ़ेर सारे ।
पता चले न आ निंदिया,
हो जाती खड़ी द्वारे ।।
सँभलो, देखो भालो ।
भ्रमर कमल के बैठा अन्दर,
सोच रहा नादाँ ।
हुआ विभोर, भोर होने में,
समय न अब ज्यादा ।।
‘कि गजराज आ गया लो ।
कली पिराये, थी बैठी ।
सुन्दर-सुन्दर सपने ।।
क्यों सपने अपने होने से,
पूर्व लगी कँपने ।।
हवा का झोका, आ गया जो ।
शुभ हो-शुभ हो ।
ले नाम गुरु का लो ।।
सुबह-सुबहो ।।चन्दनं।।

जय विद्या, जय विद्या सागर
सारे बोलो
जय विद्या, जय विद्या सागर
मिल के बोलो
जय विद्या, जय विद्या सागर
जोर से बोलो
जय विद्या, जय विद्या सागर
गुण रत्नाकर
ज्ञान दिवाकर
जय विद्या, जय विद्या सागर
झोरी बिन माँगे भर देते
ओ ‘री मुँह-माँगा वर देते
छप्पर फाड़ दया बरसाकर
जय विद्या, जय विद्या सागर
आप नाम कर नाम हमारे
हाथ लगाते चाँद-सितारे,
निस्पृह अपनी गोद उठाकर
जय विद्या, जय विद्या सागर
देकर के भूलों की माफी
करें पास मंजिल के काफी
पाछी हवा समान धकाकर
विद्या, जय विद्या सागर ।।अक्षतं।।

चीन-चीन न बाँट रहे गुरुवर
चीज छीन न बाँट रहे गुरुवर
बाँट रहे गुरुवर बिन माँग किये
आगे गुरुवर, बाद कल्प तरुवर
कृपा अकारण गुरुवर हमजोली
जिसने जय विद्या सागर बोली
किरपा कहीं न ऐसी
अरे न ऐसी-वैसी
पाई तलक-मुख सुनहरी झोली
पाई मुक्तक भरी हुई झोली
कब किताब से देते हैं गुरुवर
कब हिसाब से देते हैं गुरुवर
जब देते हैं दिल से देते हैं
कब दिमाग से देते हैं गुरुवर
आगे गुरुवर, बाद कल्प तरुवर ।।पुष्पं।।

आ मन सुमरो सुबहो शाम ।
विद्या सागर गुरु का नाम ।
मुफ्त बाँटते हैं मुस्कान ।
भक्तों का रखते हैं ध्यान ॥
ध्याते, बनते बिगड़े काम ।
गो वत्सल सा वत्सल नेक ।
दुखी किसी को सकें न देख ॥
भाँत पवन सर ग्रीष्म धाम ।
फले बखूब खूब आशीष ।
सईस भी बन चले रईस ॥
राम शबरि मीरा घन श्याम ।
मधुर रसीले नीके बोल ।
मिसरी दही सरीखे घोल ॥
सम्पूरण मनरथ निर्दाम ।
नजर अपर वरदानी छाँव ।
महर-शहर शिव छेपे नाव ॥
लगे समाधि हाथ मुकाम ।
विद्या सागर गुरु का नाम ।।नैवेद्यं।।

लगन लगा ले
साँचे गुरु से लगन लगा ले
मनुआ ‘रे
‘रे मनुआ ‘रे
रंग केशरिया चुनर रँगा ले
लगन लगा ले
नयन भिंगा ले
मन-चाहा वर नाम लिखा ले
‘मनके’ जय-विद्या अपना ले
इक-तार हाथ ले
दीप-माल साथ ले
रोम-रोम पुलकन
साथ श्रद्धा सुमन
ले गद-गद वचन
भक्ति में झूम-झूम
रुक-रुक फिर घूम-घूम
ज्योत गुरु नाम की, मन में जगा ले
रंग केशरिया चुनर रँगा ले
साँचे गुरु से लगन लगा ले ।।दीपं।।

जपा नाम बन चाला बिगड़ा काम
सन्त शिरोमण गुरु विद्या-सागर
गंगा की धारा सा पावन नाम
गुरु नाम छाहरी
घनी बरगदी छाहरी
और दुनिया घाम
घनी बरगदी छाहरी गुरु नाम
काम-धेन कामना बदले में लेती
मणी चिन्ता रेन बिना सोचे कब देती
बाँट रहा निष्काम गुरु नाम
आते ही सूरज ने कुमुदों को झाँप दिया
निश-नूर दिखा, रस्ता कमलों ने नाप लिया
दिल दुखाने का काम, न गुरु के नाम
गुरु नाम रोशनी
जिन्दगी गुरु नाम
हर खुशी
और दुनिया मावस श्याम
रोशनी, हर खुशी गुरु नाम ।।धूपं।।

छोर-छोर से ।
चारों ओर से ।।
आई आवाज जोर से ।
शरण सहारे ।
तारण हारे ।।
विद्यासागर गुरु हमारे ।।
आ बँध चाले भक्ति डोर से ।
आशीर्वाद में ।
जादू इनके हाथ में ।।
जिसके साथ में, सदगुरु उसके वारे-न्यारे ।।
संजीवनी ।
अंधेरे इक किरण रोशनी ।।
गुरु मुस्कान है,
हुई जिसकी संगिनी ।
बरसी कृपा भगवान् है
दि-व शिव द्वारे ।
जग से न्यारे ।
विद्यासागर गुरु हमारे ।।फलं।।

जय विद्यासागर सूर
जप मंत्र भाग दिव तूर
मंत्र करतार पाप चकचूर
जय विद्यासागर सूर
विद्या सागर नमो नम:
जप मंत्र, छूने आसमां
मंत्र पूरण मनोकामना
विद्या सागर नमो नम:
जय विद्यासागर सन्त
इक मंसा-पूरण मंत्र
जप मंत्र मिलन भगवन्त
जय विद्यासागर सन्त
आओ, लाओ जल गागर ।
लाओ चन्दन मलयागर ।
धाँ शालि अखण्डित पातर ।
वन नन्दन पुष्प सजाकर ।
घृत छप्पन भोग बनाकर ।
अनबुझ दीपिका जगाकर ।
दश-गंध-दिव्य दिव-लाकर ।
भेले श्री-फल, गुण-गाकर ।
सब आठों द्रव्य मिलाकर ।
गुरु चरण चढ़ाओ सादर ।।
दुखहारी विद्या सागर ।
सुखकारी विद्या सागर ।।
अपहारी करनी भरनी ।
उपकारी, तट वैतरणी ।।
बोलने से पहले तोल
अपने वचनों में मिसरी घोल
‘रे मन…
जय विद्या सागर
विद्या सागर
विद्या सागर बोल ।।अर्घ्यं।।

=कीर्तन विधान प्रारंभ=
(१)
आँख सजल… जय गुरुदेव
भक्त वत्सल… जय गुरुदेव
जयतु जयतु जय… जय गुरुदेव
सजग पल-पल… जय गुरुदेव ।।अर्घ्यं।।
(२)
श्री मद् आचार्य देव, जय जयतु जय
सदा, सर्वदा, सदैव
श्री मद् आचार्य देव, जय जयतु जय
जय जयतु जय,
जय जय जयतु जय
श्री मद् आचार्य देव जय जयतु जय ।।अर्घ्यं।।
(३)
मेरे भगवन्, विद्या-सागर
सन्त शिरोमण, विद्या-सागर
भींगे लोचन विद्या-सागर
मेरे भगवन्, विद्या-सागर
संकट-मोचन विद्या-सागर
सन्त शिरोमण, विद्या-सागर
मेरे भगवन्, विद्या-सागर ।।अर्घ्यं।।
(४)
गुरु-सा जय, जयतु गुरु-सा
जय जय, जयतु जयतु गुरु-सा
जय जय, जयतु जयतु गुरु-सा
गुरु-सा जय, जयतु गुरु-सा
जय जय, जयतु जयतु गुरु-सा ।।अर्घ्यं।।
(५)
नमो नमः नमो नमः
श्री विद्या-सागर नमो नमः
श्री विद्या-सागर नमो नमः
नमो नमः नमो नमः
श्री विद्या-सागर नमो नमः ।।अर्घ्यं।।
(६)
जय-विद्या, जय विद्या-सागर
पाणी-पातर
गुण रत्नाकर
जय-विद्या, जय विद्या-सागर ।।अर्घ्यं।।
(७)
तरण वैतरण हैं
गुरुदेव-विद्या-सागर
अकारण शरण हैं
गुरुदेव-विद्या-सागर
आशा की किरण हैं
गुरुदेव-विद्या-सागर
जयतु जयतु जय, जयतु जयतु जय
गुरुदेव-विद्या-सागर ।।अर्घ्यं।।
(८)
शिरोमण सन्त जय जय
सुत माँ श्री-मन्त जय जय
शिख ज्ञान सिन्ध जय जय
शिरोमण सन्त जय जय ।।अर्घ्यं।।
(९)
जपो मन, सुबहो-शाम
गुरु विद्या-सागर नाम
शुरु करने से पहले कोई भी काम
जपो मन, गुरु विद्या-सागर नाम
जपो मन, सुबहो-शाम
गुरु विद्या-सागर नाम ।।अर्घ्यं।।
(१०)
जय विद्या-सागर जय
जय विद्या-सागर जय
जय विद्या-सागर,
विद्या-सागर, विद्या-सागर जय ।।अर्घ्यं।।
(११)
जग रखवाले ।
भोले भाले ।
प्राणों से भी ज्यादा प्यारे ।
विद्या सागर गुरु हमारे ।।
मिलन हो चाला साँचे गुरु से,
आज हमारे बारे-न्यारे ।।अर्घ्यं।।
(१२)
जयतु जय विद्या बोलो
जय जयतु जय विद्या बोलो
जय विद्या, जय विद्या बोलो
जयतु जय विद्या बोलो
जय जयतु जय विद्या बोलो ।।अर्घ्यं।।
(१३)
साथ श्रद्धा
जयतु विद्या
जयतु विद्या, जयतु विद्या,
जयतु विद्या, बोलो मन
जयतु विद्या, बोलो मन
साथ श्रद्धा, जयतु विद्या, बोलो मन ।।अर्घ्यं।।
(१३)
जयतु जयतु गुरुदेव
जयतु जयतु गुरुदेव
जय गुरुदेव
जय जय गुरुदेव
जयतु जयतु गुरुदेव
जयतु जयतु गुरुदेव ।।अर्घ्यं।।
(१४)
जग से न्यारे ।
सबसे प्यारे ।।
जय वर्तमां वर्धमां
गुरु विद्या नमो नमः
निलय करुणा दया क्षमा
गुरु विद्या नमो नमः
जय वर्तमां वर्धमां
गुरु विद्या नमो नमः ।।अर्घ्यं।।
(१५)
गुरुदेवा
गुरुदेवा
जय जय, जय जय
जयतु जयतु जय
जय जय, जय जय
गुरुदेवा
गुरुदेवा ।।अर्घ्यं।।
(१६)
नमन नमन नमन नमन
जयतु जयतु मेरे भगवन्
मेरे मन के देवता नमन
नमन नमन नमन नमन
जयतु जयतु मेरे भगवन् ।।अर्घ्यं।।
(१७)
जयतु जय जय
जयतु जय जय
जय विद्या-सागर जय
जय विद्या-सागर जय
जयतु जय जय
जयतु जय जय
जय विद्या-सागर जय ।।अर्घ्यं।।
(१८)
जयतु जयतु जय, मेरे भगवन्
मेरे भगवन् जय
मेरे भगवन्, मेरे भगवन्, मेरे भगवन् जय
जयतु जयतु जय, मेरे भगवन्
मेरे भगवन् जय ।।अर्घ्यं।।
(१९)
विद्या सागर जी की जय
विद्या सागर जी की जय
आओ मिल के हम सभी,
बोलें विद्या सागर जी की जय
विद्या सागर जी की जय ।।अर्घ्यं।।
(२०)
जय गुरुवर, जय गुरुवर
जयतु जयतु, जय जय गुरुवर
मेरे गुरु का हाथ है, मेरे सर पर
जय गुरुवर, जय गुरुवर
जयतु जयतु, जय जय गुरुवर ।।अर्घ्यं।।
(२१)
जयतु रिषिश्वर
जय सूरीश्वर
छोटे बाबा जय, जय छोटे बाबा
जय छोटे बाबा, जय छोटे बाबा
महा कवीश्वर
जय सूरीश्वर
छोटे बाबा जय, जय छोटे बाबा ।।अर्घ्यं।।
(२२)
साथ श्रद्धा सुमन
लिये भींगे नयन
साथ रोमिल पुलक
लिये भीतर ललक
साथ त्रैविध विनय
लिये गदगद हृदय
आओ मिल के हम सभी,
बोलें विद्या सागर जी की जय
पाने कर्मों पे विजय
करने दुक्खों का क्षय ।।अर्घ्यं।।
(२३)
रोशनी गुरुदेव
जिन्दगी गुरुदेव
हर खुशी गुरुदेव
छाँव घनी गुरुदेव
जयतु जय जय गुरुदेव
जयतु जय जय गुरुदेव ।।अर्घ्यं।।
(२४)
जय धरती के देवता
देवता जय देवता
देवता जय देवता
जय धरती के देवता
जय धरती के देवता ।।अर्घ्यं।।
(२५)
अक्ष विजेता
ऊरध-रेता
साधु शिरोमण
रक्षक गोधन
भारत गौरव
माँ श्रुत सौरभ
विद्या सागर सन्त
निर्ग्रन्थ विरले
भगवन्त अगले
जय विद्या जप ले
‘रे मनुआ, जय विद्या जप ले ।।अर्घ्यं।।
(२६)
आ नमो नमः
उ नमो नमः
सा नमो नमः
आ, उसा नमः, जय आ, उसा नमः
आ नमो नमः
उ नमो नमः
सा नमो नमः ।।अर्घ्यं।।
(२७)
शिव क्या सुन्दर ?
जयकारा गुरुदेव का
सत्य क्या, जग के अंदर ?
जयकारा गुरुदेव का
जयकारा गुरुदेव का
जय जय गुरुदेव
जय जय गुरुदेव ।।अर्घ्यं।।
(२८)
जय जयतु जयतु आचार्य श्री
जय जयतु जयतु आचार्य श्री
नमोऽस्तु आचार्य श्री
नमोऽस्तु आचार्य श्री
जय जयतु जयतु आचार्य श्री
जय जयतु जयतु आचार्य श्री ।।अर्घ्यं।।

 (२९)
आचार्य श्री जी जय
जय आचार्य श्री जी जय
जय जय
जय जय
आचार्य श्री जी जय
जय आचार्य श्री जी जय ।।अर्घ्यं।।
(३०)
लघु नन्दन पुरु देव
जय जय जय जय गुरु देव
जयतु जय लघु नन्दन पुरु देव ।।अर्घ्यं।।
(३१)
वन्दनम् वन्दनम्
जय श्री मन्त नन्दनम्
विद्या-सिन्ध वन्दनम्
वन्दनम् वन्दनम् ।।अर्घ्यं।।
(३२)
जय हो, जयतु जय हो
श्री मन्त नन्द की
शिख ज्ञान सिन्ध की
जय हो, जयतु जय हो ।।अर्घ्यं।।
(३३)
श्री विद्या जय,
श्री विद्या जय,
श्री विद्या जय बोल
अपनी वाणी में अमृत घोल
‘रे तोल मोल के बोल
अपनी वाणी में अमृत घोल
श्री विद्या जय,
श्री विद्या जय,
श्री विद्या जय बोल ।।अर्घ्यं।।
(३४)
मन्त्र वशीकरण
जयतु जय विद्या श्रमण
जयतु जय विद्या श्रमण
जयतु जय विद्या श्रमण
मन्त्र आश पूरण
मन्त्र वशीकरण
जयतु जय विद्या श्रमण ।।अर्घ्यं।।
(३५)
सन्त शिरोमण, जयतु जयतु जय
रक्षक गोधन, जयतु जयतु जय
जयतु जयतु जय, संकट-मोचन
विद्या-सिन्धु जय, मन्त्र जपो मन
रक्षक गोधन, जयतु जयतु जय
सन्त शिरोमण, जयतु जयतु जय ।।अर्घ्यं।।
(३६)
जयतु विद्या, जयतु विद्या
ऊर्ध्व-रेता
अक्ष-जेता
मन विजेता
जयतु विद्या, जयतु विद्या
जयतु विद्या, जयतु विद्या
जयतु विद्या, जयतु विद्या ।।अर्घ्यं।।

=जयमाला=
भज मन सुबहो शाम ।
विद्या सागर नाम ।।
कल जुग मंगलकार ।
एक अमंगलहार ।।
कल्पवृक्ष गो-काम ।
सबसे प्यारा है ।
एक सहारा है ।।
बना रहा हर काम ।
सबसे सुन्दर है ।
दया समुन्दर है ।।
राम भाँत अभिराम ।
जग से न्यारा है ।
भाग सितारा है ।।
शुभ मुहूर्त निर्दाम ।
सबके नीका है ।
छाँव सरीखा है ।।
दौड़ धूप विश्राम ।
हर लेता भव पीर ।
रख देता उस तीर ।।
नौका मोखा धाम ।
जप मन सुबहो शाम ।
विद्यासागर नाम

।।जयमाला पूर्णार्घ्यं।।

‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।

*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
दोहा-
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)

*आरती*

।। ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।
तुम मिले मुझे, सब कुछ मिल गया ।

दीप ने पाई ज्योती ।
सीप ने पाया मोती ।
नदारद बुद्धी खोटी ।
नेह निस्पृह बपोती ।।
श्वास पा गया, लौं जाता दिया ।।
ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।

चांद पा गया चकोरा ।
नाद पाया घन मोरा ।
हाथ मन अन्तर कोरा ।
गांठ बिन सुलझा डोरा ।।
टकटकी लगा, निहारूॅं मूरतिया ।
ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।

अमृत बरषाये चन्दा ।
स्वर्ण पा गया सुगन्धा ।
भक्ति में मनुआ अंधा ।
मात श्री मन्ती नन्दा ।।
और न तुम सा देखी दुनिया ।
ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।

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