सवाल
आचार्य भगवन् !
खूब देना चाहता हूँ,
दिया भी उसी भगवान् ने ही तो है,
लेकिन भगवान् को चढ़ाई द्रव्य,
माली को जो चढ़ चालती है
तो मन हाथ खींचने के लिये कहने लगता है
कैसे सँभाले मन को अपने
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
हम क्या किसी को कुछ देंगें
हाँ…देने का अभिमान जरूर रख सकते हैं
चढ़ाते क्या है हम,
वो जल,
जिसे सार्थ नाम नदिया ने यह कह दिया
‘कि मेरा इसमें कुछ भी नहीं
बादलों ने मुझे दिया
मैंने तुम्हें दे दिया
वो चन्दन,
जिसमें बाला चन्दन बाजी मार करके
ले चाली
न बजने लगते नाम यूँ ही खाली
अक्षत नाम के
टूटन, टूट के बाद कुछ रुक करके
न बोल के चढ़ाते हम
‘गुल’ सार्थ नाम हैं हमारे
कहाँ चारु चरु,
चिट के जैसी चिटकें हमारी
ज्योती,
‘पल पहले जो थी’
कहाँ अनबुझ
हा ! हाय !
हाथों में बादाम
फल का तो बस नाम
सुनो,
दो वक्त के फलके ही मिल पाते होंगे
उसे
वैैसे
आई नहीं ‘हिस्से’ हाथ में
हिस्से बाँट में,
अपनी मर्जी से जिसने माँ…ली
माली वो खुशबूदार
किरदार
इतनी द्रव्य
इतना द्रव्य
तो राखिये उसके हाथ में
‘के पढ़-लिख, हँस खेल
दौड़ा ले अपनी ज़िन्दगी की रेल
वह सपरिवार
विहँस बहस परिवार
ओ सदस्य परवार
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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