सवाल
आचार्य भगवन् !
इक्कीसे होने पर भी,
मेरी टांग, खींच ही जाता है कोई न कोई
आकर जब कभी
कुुछ कह करके लड़ाई मोल लूँ उससे
या फिर लड़ाई मोल लूँ खुद से सह करके
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सामने वाला जीतना चाहता है
लगा लेने दो ना दाब फायदे का सौदा होगा
हारकर जीतने की हुनर का नफा होगा
हाँ…हाँ…
क्यों नहीं
हम भी लगा सकते हैं दाब
मगर यह घाटे का
सौदा होगा
अपने एक नये दुश्मन इजाफा होगा
धारावाहिक महाभारत में,
एक किरदार बड़ा जोरदार है
यदि हमनें थोड़ा-बहुत भी ध्यान दिया हो तो,
श्रीकृष्ण के चेहरे पर जो मुस्कान खेलती थी
वह अनन्य थी
चाहे सुदामा उन्हें मामा बना रहे हों,
या अर्जुन के सारथी बन करके आक्रमण
शब्द सुन करके रथ आगे बढ़ा रहे हों
क्यों ?
क्योंकि जमाने की फितरत जान चुके थे वह
व्यक्ति हमेशा अपना बचाव ढूढ़ता है
सामने वाले को कमती दिखाकर के
अपनी कीमत कुछ बड़ा करके रखना चाहता है
हाँ… बस चाहता ही है
खुशफहमी है उसकी और कुछ भी नहीं
है तो दया का पात्र
सो सुनो सहजो-निराकुल रहो
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
Sharing is caring!