सवाल
आचार्य भगवन् !
बन्द मुट्ठी लाख की,
खुल चली तो खाक की
ऐसा क्यों करते हैं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
हीरे भले ही ‘रे
पर मुट्ठी खोल कर दे…बता नहीं
हर कोई यहाँ,
कहाँ पारखी
कह रहा शब्द खुदबखुद पारखी
पा…रखी
और गूंगे के गुड़ सा चखी
या ! सखी
क…हानि सुनिये
तोते के यहाँ सभी पक्षिंयों की दावत थी
आज सभी व्यंजन बने हैं,
अनार के दानों से परातें भरीं हैं,
न सिर्फ हरी लाल भी मिर्चिंयाँ हैं
धान खिले खुले हैं
फूल, फल, पत्तिंयाँ हैं
पर काका का मन नहीं लग रहा है
क्यों ?
क्योंकि,
नीम की निबोली नदारद है,
कड़वी मत कह देना, काका के सामने,
वरना खैर नहीं
मतलब सीधा सीधा है
जिसको जो पसन्द है
उसको उसमें आनंद है
जब ऐसा ही है
तब क्यों दिखलाना खोल करके
पत्ते अपने
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
Sharing is caring!