सवाल
आचार्य भगवन् !
आपके संघ में एक,
खुरई के की महाराज श्री जी भी हैं
उनका नाम निराकुल सागर जी,
रखने में क्या विशेष राज है ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
यहाँ की जैनी मनीषा
समाय सागर, गगरी
बड़ी अनूठी
नगर-नगर जड़ित मणी अँगूठी
खुदा-राम-ईसा की नगरी
न जाये वरणी
कृपा श्रद्धेय श्री वर्णी
‘के कहा उन्होंनेे
शब्द खुरई, खुदा-राम-ईसा की नगरी
न सिर्फ इतना ही कहे
बल्कि कह रहा खो रही उमरिया
चेत चेतन भैय्या
जगह-जगह खुलवाये
‘गुरुकुल’
‘खुरई में भी आये’
ऐसा रक्खा विचार
सहर्ष किया जैन अजैन बन्धुओं ने स्वीकार बाग-बाग मिशनरी स्कूल भरा
बीचो-बीच
अक्षत सुगंध वाला फूल अवतरा
मानो-मानौ समाज अब तरा
सिन्ध संसार
बाद आनन्द अपार ईषत् प्राग् भार वसुन्धरा
सो मैंने इस नगर को दिया ‘नौ’ नाम…
आनन्द धाम
और होते ही विरलें
अद्वितीय निरे,
‘गुरु…देव’
‘के आपकी क्या करूँ सेव
जिस दिन से इस नगर आया था
अंतरंग में यही समाया था
सो ‘संयोग-मणि-काञ्चन’,
यहाँ एक ब्रह्मचारी जी ने किया समर्पण
यथा नाम तथा गुण…
चन्दन
घिस भी महक देता जो
विष भी हलक लेता जो
सहज निराकुल न ‘कि ढुल-मुल
बस गुरु की जगह गुरु का विशेषण
‘निरा’ रख दिया और
कुल यथावत् रखा
बस हो चला एक अद्भुत शब्द का निर्माण निराकुल
निरा…कुल
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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