सुपार्श्व नाथ
आरती
जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।
लिये दीप आया शरण में तुम्हारी ।
तुम्हीं से लगी है लगन ये हमारी ।।
अबै लौं निभाई, निभा देना आगे ।
कभी भी ना टूटें, यें भक्ति के धागे ।।
लगी धार रत्नों की किसने न देखा ।
लगे हाथ सोलह सुपन माय लेखा ।।
जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।
भवातार शचि-देवि झोली दरश पा ।
मनी मेर दीवाली-होली परश पा ।।
जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।
दिया छोड़ घर-बार कानन पधारे ।
किया हाथ कच-लुञ्चन, झट पट उतारे ।।
जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।
समोशर्ण लागा, बने भक्त देवा ।
खड़े हाथ जोड़े, सभी हेत सेवा ॥
जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।
जरा ध्यान अग्नि, करम अबकि सारे ।
लगा इक समय जा ऋज-गत शिव पधारे ।।
जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।
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