बावनगजा के बड़े बाबा
श्री आदिनाथ पूजन
दोहा
जैन दिगंबर तीर्थ की,
आन, वान व शान ।
जय बाबा बावन गजा,
आदिनाथ भगवान ।।
चौपाई
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
करुँ ह्रदय से आह्वानन में ।
आओ चाँद-मिरे आंगन में ।।
बजे रागनी उसके आंगन ।
सजे चाँदनी उसके आंगन ।।
मेरा आँगन सूना-सूना ।
आ, कर-देते पूनो क्यूँ ना ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)
खोजा, जल-का कलश न पाया ।
आँखों में आंसू भर लाया ।।
चरण पखारूॅं, तारो मुझको ।
दूजा कौन पुकारूँ जिसको ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।
खोजा, कहीं न चंदन पाया ।
पुलकित रोम-रोम चल आया ।।
चरण निहारूँ, तारो मुझको ।
दूजा कौन पुकारूँ जिसको ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।
खोजा, थाल न अक्षत पाया ।
गद-गद हृदय लिए दर आया ।।
चरण निहारुँ तारों मुझको ।
दूजा कौन पुकारूँ जिसको ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।।
खोजा, पुष्प इकाध न पाया ।
शिशु नवजात सुमन मन लाया ।।
चरण चढ़ाऊँ तारो मुझको ।
दूजा कौन पुकारूँ जिसको ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।।
खोजा, पर नेवद्य न पाया ।।
रग-रग भक्ति भाव भर लाया ।
चरण निहारूँ तारो मुझको ।
दूजा कौन पुकारूँ जिसको ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
खोजा, कहीं न दीपक पाया ।
श्रद्धा सहज समर्पण लाया ।।
चरण निहारूँ तारो मुझको ।
दूजा कौन पुकारूँ जिसको ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।।
खोजा, पर घट-धूप न पाया ।
धुन-धड़कन सुमरण तुम भाया ।।
चरण निहारूँ तारो मुझको ।
दूजा कौन पुकारूँ जिसको ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।
खोजा, कहीं न श्रीफल पाया ।
जोड़-हाथ, रख माथे आया ।।
चरण निहारूँ तारो मुझको ।
दूजा कौन पुकारूंँ जिसको ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा।।
खोजा, अर्घ-परात न पाया ।
बची-खुची ले श्वासें आया ।।
चरण चढ़ाऊँ तारो मुझको ।
दूजा कौन पुकारूँ जिसको ।।
बाबा इक सांँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
पंचकल्याणक अर्घ्य
पर्व-गर्भ छः महीने पहले ।
बरसे रत्न गगन से विरले ।।
झूमे नाचे, मंगल गाये ।
पर्व-गर्भ सौधर्म मनाये ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री आषाढ़-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भ-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
अक्षत पुण्य तात महतारी ।
राज-महल गूंजी किलकारी ।।
झूमे नाचे, मंगल गाये ।
पर्व-जन्म सौधर्म मनाये ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री चैत्र-कृष्ण-नवम्यां जन्म-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
चूस-चूस चुक पौंडा काणा ।
चले धर्म भू बोने राणा ।।
झूमे नाचे मंगल गाये ।
उत्सव तप सौधर्म मनाये ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री चैत्र-कृष्ण-नवम्यां तप-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
सार्थक नाम सम-शरण पाया ।
जात-वैर सिंह हिरण भुलाया ।।
झूमे नाचे मंगल गाये ।
पर्व-ज्ञान सौधर्म मनाये ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री फाल्गुन-कृष्ण-एकादश्यां ज्ञान-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
लो चारों खाने चित वैरी ।
माटी गली तूमड़ी तैरी ।।
झूमे नाचे मंगल गाये ।
पर्व-मोक्ष सौधर्म मनाये ।।
बाबा इक साँचे सब झूठे ।
बाबा बावन गजा अनूठे ।।
ॐ ह्रीं श्री माघ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्ष-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
जयमाला
दोहा
जय बाबा बावन गजा,
सुमरो सुबहो-शाम ।
स्वर्ग संपदा चीज क्या,
लगे हाथ शिव धाम ।।
अविकारी मन त्रिभुवन हारी ।
शांत दिगंबर मुद्रा प्यारी ।।
धर्म अहिंसा ध्वजा वंदना ।
बाबा बावन गजा वंदना ।।
उसे फिकर फिर क्यों घबराते ।
सलवट एक न दिखती माथे ।।
भीतर आँखें भिंजा वंदना ।
बाबा बावन गजा वंदना ।।
अंदर मन्दर लेख रहे हैं ।
अणि नासा निज देख रहे हैं ।।
काया, वाचा, मन: वंदना ।
बाबा बावन गजा वंदना ।।
धर ली राह एक, तज दो की ।
मन्द-मधुर मुस्कान अनोखी ।।
भाव भक्ति मन रंगा वंदना ।
बाबा बावन गजा वंदना ।।
बड़े सुरीले आत्मगान हैं ।
खड़े न लग दीवाल कान हैं ।।
गद गद उर, मन मुदा वंदना ।
बाबा बावन गजा वंदना ।।
याचक हल्का कपास वजनी ।
खड़े ने घुटने टेके धरणी ।।
हृदय चरण-तुम वसा वंदना ।
बाबा बावन गजा वंदना ।।
भवद बुद्धि-कर्ता जग दोई ।
भार भुजाएँ लिए न कोई ।।
लगन आप-से लगा वंदना ।
बाबा बावन गजा वंदना ।।
छोर-क्षितिज हठ केवल नादॉं ।
आसन खड़गासन आराधा ।।
जोड़ हाथ सिर झुका वंदना ।
बाबा बावन गजा वंदना ।।
दोहा
जय बाबा बावनजा,
मंशा पूरण एक ।
ऊपर-ऊपर ही सही,
आ मत्था तो टेक ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
चालीसा
दोहा
राखो मेरी लाज मैं,
करता तव गुणगान ।
जय बाबा बावन गजा,
आदिनाथ भगवान ।।
चौपाई
झाड़ नीम के हैं अनगिनती ।
सार्थक संज्ञा निमाड़ धरती ।।
तलक आज तुस सांझ न कूटी ।
‘बड़वानी’ की बान अनूठी ।।१।।
आतुर ग्रहण वृत्ति सिंह-बाना ।
यथा नाम गुण तथा ‘सिंघाना’ ।
संत राम, नर-नारी शबरी ।
मन-हर-तार ‘मनावर’ नगरी ।।२।।
‘बाकानेर’ हरेक निवासी ।
अंत समाध-मरण अभिलासी ।।
ज्ञानगंग अंतरंग बहती ।
‘धर्म-पुरी’ सहती, कब कहती ।।३।।
पीर-पराई लख दृग्-तीते ।
घर-घर ‘बाल-समुद’ जल मीठे ।।
क्या सर ! आवत विनय शील हैं ।
‘कसरावद’ हरजन सुशील हैं ।।४।।
असर न पश्चिम हवा दिखाये ।
आये ‘सुर-मन डले’ डलाये ।।
सहज-निराकुल दया-क्षमा-बुत ।
‘धामनोद’ हर-श्रावक अद्भुत ।।५।।
बने ‘महेश्वर’ पा सच्चाई ।
‘जोवट’ अनेकांत अनुयाई ।।
‘अन-जड़’ कहे खुद-बखुद भ्राता ।
रंच न अपना जड़ से नाता ।।६।।
भिड़े कभी अपनों से हारे ।
गंध-‘गंधवानी’ आहा ‘रे ।।
‘पुर बुरहान’, ‘सुसारी’, ‘कुक्षी’ ।
सीख कूख आये जिद अच्छी ।।७।।
पाठ ‘खंड-वा’ अखंड दीवा ।
सिमरन-हरी ‘ठहरी’ संजीवा ।।
‘पीपल-गोन’, ‘बेड़िया’, ‘बाकी’ ।
श्रावक कभी न बगलें झांकी ।।८।।
मति ‘खर-गोन’ हंस मति धारें ।
आज काज मुख कल न निहारें ।।
भले खा लिया, दिया न धोखा ।
जैन ‘लुहारी’ हरिक अनोखा ।।९।।
रहे स्वप्न भी न कस-मकस में ।
मन ‘बड़वाह’ राखता वश में ।।
निरत इबादत खुद नर-नारी ।
‘नगरी-संत’ सनावद न्यारी ।।१०।।
‘जीराबाद’ सुमन अपने सा ।
पहले धर्म जिसे फिर पैसा ।।
माँ रेवा आँचल की छाया ।
बोया कण माटी, मन पाया ।।११।।
केलि, कपास, पपीता, गन्ना ।
आगे-सेठ न लगते धन्ना ।।
चलता अंधा धंधा-पानी ।
मिसरी घुली सुरीली वाणी ।।१२।।
बाग बगीचे आप सरीखे ।
कहीं और घर यथा न दीखे ।।
पता असर ये किसका भाई ।
बाबा बावन गजा गुसांई ।।१३।।
लाज-नाज राखे ज्यों बाड़ी ।
घेर खड़ी सतपुड़ा पहाड़ी ।।
शीत लहर ढ़ा कहर न पाये ।
निर्झर कल-कल राग सुनाये ।।१४।।
कहें, चलो… अपना सो अन्दर ।
दिखने लगें दूर से मन्दर ।।
मन आकर्षित करने वाले ।
गगन चूमते शिखर निराले ।।१५।।
गाता दया-धर्म-जिन गाथा ।
शिखर शिखर ‘भी’ ध्वज लहराता ।।
देख कौन दृग् चाहे खोना ।
सोने का ध्वज-दण्ड सलोना ।।१६।।
नयन और मन हरने वाले ।
गुम्बद गुम-मद करने वाले ।।
रहे ठगी-सी पल-को श्वासा ।
पाथर-पाथर गया तरासा ।।१७।।
अन्दर जाने जो बढ़ता है ।
झुक कर ही जाना पड़ता है ।।
हिवरा भी-तर विश्व समूचा ।
रखती कद चौखट कुछ ऊॅंचा ।।१८।।
अंगुलि दॉंतो बीच दबा-के ।
देखें गुण-मण्डप सब आके ।।
कहतीं कलि भगवन् की प्रति-मॉं ।
बड़ीं-बड़ीं भगवन् कीं प्रतिमां ।।१९।।
आर्या दीक्षा लेख लिखा है ।
रानी मंदोदरी गुफा है ।।
छटा प्राकृतिक छटी छटाई ।
दिखें चूल गिर रेवा माई ।।२०।।
साढ़े पांच करोड़ महंता ।
मुक्त यहीं से नमन अनंता ।।
कुंभ-करण कल्याण हुआ है ।
इंद्र-जीत निर्वाण छुआ है ।।२१।।
दर्शन निरसन-जन्म-मरण हैं ।
टोंक बनी हैं… बने चरण हैं ।।
उतर सीढ़िंयॉं आते नीचे ।
बाबा-तेज आप दृग् मीचे ।।२२।।
जैनों के काशी काबा हैं ।
दीन-दयाल बड़े बाबा हैं ।।
घूॅंघर वालीं अलकें जिनकी ।
पद्म पांखुड़ी पलकें जिनकी ।।२३।।
माथ समुन्नत भ्रूएँ सजीलीं ।
आंखें नीलीं सहज पनीलीं ।।
गोल कपोल बड़े ही नीके ।
आगे होंठ बिंब-फल फीके ।।२४।।
चिबुक सलोनी आप सरीखी ।
चंपक पुष्प नासिका नीकी ।।
ग्रीवा शंखावर्तों वाली ।
छटा चिन्ह श्रीवत्स निराली ।।२५।।
रचित और माटी सुडोल हैं ।
काँधे छूते कर्ण-लोल हैं ।।
तारण तरण अकारण शरणा ।
करतल कमल सहस दल चरणा ।।२६।।
पॉंवन मध्य विराजा नंदी ।
पद्म प्रफुल्लित स्वर्ण सुगंधी ।।
हृदय सिंधु से बढ़ गहराई ।
बावन गज प्रतिमा ऊॅंचाई ।।२७।।
माँ मरु देवी अँखिंयन तारे ।
पिता नाभि नृप राज दुलारे ।।
अक्ष विजेता ! ऊरध रेता ।
कृषि आदि षट्-कर्म प्रणेता ।।२८।।
भला सभी का करने वाले ।
हरने वाले दिल के छाले ।।
नयनन नीर समंदर झलका ।
सुन दुखड़ा, कर दें मन हल्का ।।२९।।
आंख देख माँ सके न रोती ।
मनो-कामना पूरण होती ।।
साढ़े-साती खाती गोटे ।
माया मिले उतार मुखोटे ।।३०।।
कृपा बरस क्या बाबा जाये ।
रंग जिंदगी तितली पाये ।।
होता अशर्फिंयों से नाता ।
नाम सुर्खिंयों में छा जाता ।।३१।।
गीत प्रीत विरले जग गाये ।
खिसकी जमीं तले पग आये ।।
आंख तीसरी भी पा जाता ।
आ अंधा क्या ध्यान लगाता ।।३२।।
जोड़ नेह दो रेशम धागे ।
धुन भी-तर वो सुनने लागे ।।
बॉंस वास चरणन बन मुरली ।
आये घोल कर्ण-पुट मिसरी ।।३३।।
सर गंधोदक धारा, हारी ।
मंत्र मूठ मारी-बीमारी ।।
झूम-झूम-झुक कीं आरतिंयॉं ।
मैंटीं आरत नारक गतिंयॉं ।।३४।।
धूल-चरण सर मस्तक कीनी ।
नूर आसमाँ दस्तक दीनी ।।
छतर चढ़ाना चॅंवर ढुराना ।
जन-मन अगर चुराना आना ।।३५।।
मत्था श्रद्धा से टेका है ।
सूनी गोद भरी देखा है ।।
की पूजा अक्षत ला धो-के ।
पीले हुए हाथ लाडो के ।।३६।।
मन जयकार लगाया सच्चे ।
रोजगार से लगते बच्चे ।।
दी प्रदक्षिणा रख विश्वासा ।
अग्नि परीक्षा भी हो आसाँ ।।३७।।
रखते ही चरणों में पगड़ी ।
रहती बने बग़ैर न बिगड़ी ।।
लगे बरस-हर मेला साथी ।
माघ कृष्ण चौदस क्या आती ।।३८।।
आदि आज सीझे थे सपने ।
आप-आप घर पहुॅंचे अपने ।।
बीते जुग सहसाधिक वरषा ।
श्रावक साधु मनाये जलसा ।।३९।।
हर्ष ! महा-मस्तकाभिषेका ।
वर्ष बारवे फिर…अभिलेखा ।।
आज रही न कल जिंदगानी ।
लो स्वीकार आँख का पानी ।।४०।।
दोहा
जय बाबा बावन गजा,
मंत्र जपा एक बार ।
देखा, सिर्फ न सुन रखा,
बेड़ा होता पार ।।
आरती
चौपाई
दीप रत्न घृत, स्वर्ण थालियाँ
झूम झूम झुक, बजा तालियाँ
बाबा बावन गजा आरती
करुँ, सुना रथ मोक्ष सारथी
गर्भ समय की आरति पहली
हुई रत्न वरषा नभ विरली
बाबा बावन गजा आरती
करुँ, सुना जीवन सवाँरती
जन्म समय की आरति दूजी
महल नाभि किलकारी गूँजी
बाबा बावन गजा आरती
करुँ, सुना जल जन्म तारती
त्याग समय की आरति तीजी
परिणति स्वपर दया से भींजी
बाबा बावन गजा आरती
करुँ, सुना संकट उबारती
ज्ञान समय की आरति चौथी
चौषठ रिद्ध सिद्ध सब पोथी
बाबा बावन गजा आरती
करुँ, सुना तम मोह टारती
मोक्ष समय की आरती अन्ता
‘सहज-निराकुल’ नमन अनन्ता
बाबा बावन गजा आरती
करुँ, सुना सुख धरा-धारती
दीप रत्न घृत, स्वर्ण थालियाँ
झूम झूम झुक, बजा तालियाँ
बाबा बावन गजा आरती
करुँ, सुना रथ मोक्ष सारथी
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