वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=पूजन=
मैं दुखी हूँ बड़ा ।
आन द्वारे खड़ा ।
तुम्हें जान के, तारणहारा ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
बटुआ है रीता ।
मनुआ भै-भीता ।
ऐसे कैसे, चलेगा गुजारा ।
लिये आँखों में, गंग-जमुन धारा ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं दारिद्र निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आते ना रिश्ते ।
आते तो रिसते ।
हाय ! उतरेगा, कब सिर से भारा ।
लिये घिस चन्दन, भर कंचन प्याला ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं वैवाहिक बाधा निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।।
पढ़-लिख के अच्छे ।
बैठे घर बच्चे ।
कब खुलेंगे, अवसर रोजगारा ।
लिये धाँ शाल, थाल-मण निराला ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं आजीविका बाधा निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
चुनर दाग, काला ।
किस्मत का मारा ।
वैसे बेगुनाह, अंतरंग वाला ।
लिये वन नन्दन, सुमनन पिटारा ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं अपकीर्ति निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रोगों ने घेरा ।
कर्मों का फेरा ।
छिन चला चैन-, रैन दिन-करारा ।
लिये दिव्य भोग, साठ ऊन चारा ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं मारी बीमारी निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रटता उठ प्रातः ।
पाठ पर सपाटा ।
कब होगा माँ, कण्ठ अवतारा ।
लिये जगमगात, घृत दीप माला ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं अल्प बुद्धि निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रज मोहन माया ।
सिर काली छाया ।
बाधा ऊपर, मचा हाहाकारा ।
लिये दश-गंध, धूप अगरु काला ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं टुष्टविद्या निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कहीं चीज मोरी ।
हो चाली चोरी ।
जाने होगा, मिलन अब दुबारा ।
लिये श्री फल, जगत् भर से न्यारा ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं इष्ट वियोग निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पथ कण्टक काई ।
‘शू-साइड’ भाई ।
नाल ठोक, दूँ जबाब अब करारा ।
लिये अर्घ थाल, आठ द्रव्य वाला ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं अपमृत्यु-अल्पमृत्यु निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=कल्याणक-अर्घ=
चाहे जब रो दी ।
सूनी बहु गोदी ।
हाथ माँ स्वप्न, सोला प्रकारा ।
रत्न बरसा, कुबेर इन्द्र द्वारा ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं चैत्र कृृष्ण पंचम्यां
अकुटुम्ब बाधा निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भव मानस नाता ।
बन बगुला जाता ।
मेर तीर्थंकर, बाल क्षीर धारा ।
इन्द्र सार्थ नाम, विरच अख हजारा ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं पौष्य कृष्ण एकादश्यां
जन्म कल्याणक प्राप्ताय
मानस विकार निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जिन दीक्षा सपना ।
सपने में अपना ।
पोट परिग्रह, झट तुमनें उतारा ।
किया कचलौंच, पंच मुष्टि न्यारा ।
मेंटो मेंटो जी संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं पौष-कृष्ण-एकादश्यां
दीक्षा कल्याणक प्राप्ताय
सिद्ध साक्षि दीक्षा बाधा निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धंधा न चलता ।
हिस्से असफलता ।
सिंह हिरण सम, शरण भाईचारा ।
नाद प्रणव, मन्त्र आद ओमकारा ।
मेंटो मेंटो जी, संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं फाल्गुुन-कृष्ण-सप्तम्यां
ज्ञान कल्याणक प्राप्ताय
व्यापार बाधा निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गलती ना मेरी ।
अपने ही वैरी ।
कर्म ईधन सब, अग्नि ध्यान जारा ।
छुआ समय मात्र, ऋज गत शिव द्वारा ।
मेंटो मेंटो जी संकट हमारा ।।
ॐ ह्रीं फाल्गुन-शुक्ल-सप्तम्यां
मोक्ष कल्याणक प्राप्ताय
बन्धुजन कृत बाधा निवारकाय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=विधान प्रारंभ=
भव-जल एक किनारे ।
कलजुुग एक सहारे ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
दुनिया भर से न्यारे ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
*बीजाक्षर नवार्घ*
जयतु जयतु अरिहंता ।
सिद्ध प्रसिद्ध अनन्ता ।
जयतु सूर, उवझाय जयतु जय,
जयतु जयतु निर्ग्रन्था ।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ
अक्षर असिआ उसा नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मंगल श्री अरिहन्ता ।
मंगल सिद्ध अनन्ता ।
मंगल साधु दिगम्बर मंगल,
नादि अहिंसा पन्था ।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं ए ऐ ओ औ अं अः
अक्षर चतुर्विध मंगलाय नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
उत्तम श्री अरिहन्ता ।
उत्तम सिद्ध अनन्ता ।
उत्तम साधु दिगम्बर उत्तम,
नादि अहिंसा पन्था ।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं क ख ग घ ङ
अक्षर चतुर्विध लोकोत्तमाय नमः
आग्नेय-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शरणा श्री अरिहन्ता ।
शरणा सिद्ध अनन्ता ।
शरणा साधु दिगम्बर शरणा,
नादि अहिंसा पन्था ।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं च छ ज झ ञ
अक्षर चतुर्विध शरणाय नमः
दक्षिण-दिशि अर्घ निर्वापमिति स्वाहा ।।
दर्शन अनन्त ज्ञाना ।
सुख अनन्त बलवाना ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
द्वादश सभा प्रधाना ।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
अक्षर चन्द्र जिनेन्द्राय नमः
नैऋत्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छतर चँवर ‘तर’ पीठा ।
भा-वृत अपहर दीठा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
दुन्दुभि ‘गुल’ सुर गीता ।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं त थ द ध न
अक्षर चन्द्र जिनेन्द्राय नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामिति स्वाहा ।।
रक्त ‘इतर’ संस्थाना ।
संहनन छव बल ‘वाना’ ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
विमल, श्वेद चिन ‘ना ना’ ।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
अक्षर चन्द्र जिनेन्द्राय नमः
वायव्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुभिख, अभुक्, अनिमेषा ।
चउ ‘मुख’ ‘नभ’ गत केशा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
दय, गत छाया क्लेशा ।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं य र ल व
अक्षर चन्द्र जिनेन्द्राय नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘सुर’ दर्प’ण भू भाषा ।
नभ दिश् मित्र वताशा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
‘ऋत’ ‘वृत’ पथ ‘जल’-वासा ।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श ष स ह
अक्षर चन्द्र जिनेन्द्राय नमः
ईशान-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।
प्रथम वलय पूजन विधान की जय
*अनन्त चतुष्टय*
घाता दृग् आवरणा ।
नाता दृग् आभरणा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जग त्राता ! रग-करुणा ।।१।।
ॐ ह्रीं अनन्त-दर्शन मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
घाता ज्ञानावरणा ।
नाता ज्ञानाभरणा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
दाता पाँवन शरणा ।।२।।
ॐ ह्रीं अनन्त-ज्ञान मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भट अन्तराय घाता ।
झट अनन्त बल नाता ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
त्रिभुवन एक विधाता ।।३।।
ॐ ह्रीं अनन्त वीर्य मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अरि मोहन विनशाया ।
सुख अनन्त विलसाया ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
ऐसा ध्यान लगाया ।।४।।
ॐ ह्रीं अनन्त सुख मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दर्शन अनन्त ज्ञाना ।
सुख अनन्त बलवाना ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
द्वादश सभा प्रधाना ।।
ॐ ह्रीं अनन्त-चतुष्टय मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
द्वितीय वलय पूजन विधान की जय
*अष्ट-प्रातिहार्य*
छव झालर रतनारी ।
छतर तीन मनहारी ।।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जाप ताप अपहारी ।।१।।
ॐ ह्रीं छत्र-त्रय मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
झिलमिल भाँत सितारे ।
चौसठ चँवर निराले ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
इक भवि भक्त सहारे ।।२।।
ॐ चामर मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तर तर कदम बढ़ाया ।
शोक अशोक मिटाया ।।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
कहते ही गुम माया ।।३।।
ॐ ह्रीं वृक्ष अशोक मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
स्वर्ण सिंहासन न्यारा ।
खचित पार्श्व मण वाला ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
मन्त्र किसे ना प्यारा ।।४।।
ॐ ह्रीं सिंहासन मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
साथ सात भव लेखा ।
भावृत दया न देखा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
रट प्रद हंस विवेका ।।५।।
ॐ ह्रीं भामण्डल मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तूर बजा इकतारा ।
बाजा परिकर सारा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
नभ गाजा जयकारा ।।६।।
ॐ ह्रीं देवदुन्दुभि मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नीचे डण्ढ़ल वाली ।
झिर गुल नन्दन क्यारी ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
रट भव तट करतारी ।।७।।
ॐ ह्रीं पुष्प-वृष्टि मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धुनि दिव मोख पठाये ।
भवद विमोह मिटाये ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
रटना विश्व लगाये ।।८।।
ॐ ह्रीं दिव्य-ध्वनि मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छतर चँवर ‘तर’ पीठा ।
भा-वृत अपहर दीठा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
दुन्दुभि ‘गुल’ सुर गीता ।।
ॐ ह्रीं अष्ट-प्रातिहार्य मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तृतीय वलय पूजन विधान की जय
*जन्मातिशय*
करुणा दया निधाना ।
शोणित दुग्ध समाना ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
प्रद किमिच्छ वरदाना ।।१।।
ॐ ह्रीं सित शोणित मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अपने भाँत सुगन्धा ।
लख झेपे निश गन्धा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जपत मिलत आनन्दा ।।२।।
ॐ ह्रीं सौरभ गौरव मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रचना अंग प्रमाणा ।
सम चतु रस संस्थाना ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जप जप मन मनमाना ।।३।।
ॐ ह्रीं छटा संस्थाँ मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वज्जर वृषभ नराचा ।
उत्तम संहनन वाँचा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जयकारा इक साँचा ।।४।।
ॐ ह्रीं धन ! संहनन मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
और न जगत अनूपा ।
सत्-शिव सुन्दर रूपा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
सुरत प्रदत्त स्वरुपा ।।५।।
ॐ ह्रीं सुन्दर, तन मन्दिर मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धका सार्थ ‘गिर’ चाला ।
लख बदले रुख ज्वाला ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जप प्रद हृदय विशाला ।।६।।
ॐ ह्रीं संबल मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बोलें मिसरी घोलें ।
तोल मोल के बोलें ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
अमृृत जुबान भिंजो लें ।।७।।
ॐ ह्रीं बोल अमोल मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छक कर दिव्य अहारा ।
नाम न निशाँ निहारा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जप निरसक भव कारा ।।८।।
ॐ ह्रीं निर्मल गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हिरणा हॉंप बिलाई ।
थान पसेव न भाई ।।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
रट संकट विनशाई ।।९।।
ॐ ह्रीं हीन पसीन गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ध्वज, घट, दर्पण, झारी ।
चिन शुभ शगुन हजारी ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
ढ़ोक त्रिकाल हमारी ।।१०।।
ॐ ह्रीं ‘लाखन’ गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रक्त ‘इतर’ संस्थाना ।
संहनन छव बल ‘वाना’ ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
विमल, श्वेद चिन ‘ना ना’ ।।
ॐ ह्रीं दश-जन्मातिशय मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चतुर्थ वलय पूजन विधान की जय
*केवल-ज्ञानातिशय*
इति श्री ईती भीती ।
सुभिख वत्स गो प्रीति ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
आँख भीतरी तीती ।।१।।
ॐ ह्रीं इक सुभिख गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अमृत नन्त सुख धारा ।
क्यों-कर कवलाहारा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
साँचा द्वार तुम्हारा ।।२।।
ॐ ह्रीं अन अनशन गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पल भी पलक न झपती ।
दृष्टि नासिका फबती ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
धन ! परिणति जो जपती ।।३।।
ॐ ह्रीं झलक अपलक गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हटी आँख से पाटी ।
सिद्ध रिद्ध परिपाटी ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जप अन्तर्-घट माटी ।।४।।
ॐ ह्रीं ‘विद्यालय’ गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दिशा दिशा मुख दीखा ।
अतिशय आप सरीखा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
फेरे लेख विधी का ।।५।।
ॐ ह्रीं चतुर्मुख प्रतिभा गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पद-विक्षेप विसारा ।
भू से अधर विहारा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जप नभ जप ध्रुव तारा ।।६।।
ॐ ह्रीं ‘गगन-चरन’ गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सीझा ज्ञान अशेषा ।
थमी वृद्धि नख-केशा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जप बिन जीना कैसा ।।७।।
ॐ ह्रीं नग केश-नख गुण मण्डिताय
श्री चन्द् जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अगल-बगल सिंह हिरणा ।
धन करुणा सम शरणा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
निस्पृह तारण तरणा ।।८।।
ॐ ह्रीं ‘मा-हन्त’ गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अद्भुत तेज समाया ।
पड़ती देह न छाया ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
कीर्तन जन मन भाया ।।९।।
ॐ ह्रीं छाया माया गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
घर भीतर क्या आये ।
संकट विघ्न बिलाये ।।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जयकारे नभ छाये ।।१०।।
ॐ ह्रीं ‘हन विघन’ गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुभिख, अभुक्, अनिमेषा ।
चउ ‘मुख’ ‘नभ’ गत केशा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
दय, गत छाया क्लेशा ।।
ॐ ह्रीं दश केवल-ज्ञानातिशय मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पंंचम वलय पूजन विधान की जय
*देव-कृतातिशय*
भगवन् यहाँ विराजे ।
सुर-मुख मुख सुर साँजे ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
नाद विदिश् दिश् गाजे ।।१।।
ॐ ह्रीं स्वर सुर गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये देविंयाँ कलशा ।
चलीं मनाने जलशा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जपो, न रहने कल सा ।।२।।
ॐ ह्रीं वस मंगल गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
साँझ, सुबह, दोपहरी ।
‘साध’ डूब लें गहरी ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
सरगम सी सुर लहरी ।।३।।
ॐ ह्रीं साध आह्लाद गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भू दर्पण बन चाली ।
लीला देव निराली ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
रोज भक्त दीवाली ।।४।।
ॐ ह्रीं फर्श आदर्श गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अर्ध मागधी भाषा ।
माँ भाषा सी आसाँ ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
मंत्र पूर्ण अभिलाषा ।।५।।
ॐ ह्रीं भाष अध-मागध गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छू मन्तर घन-श्यामा ।
नभ शारद अभिरामा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
सुमरण सु’मरण शामा ।।६।।
ॐ ह्रीं मगन गगन गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धूम नदारद देखा ।
दिश् शारद अभिलेखा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जाप आप सी एका ।।७।।
ॐ ह्रीं ‘दिशा’ गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चश्मा नाक उतारा ।
झगड़ा नौ दो ग्यारा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जाप सनातन धारा ।।८।।
ॐ ह्रीं ‘मै-त्र’ ‘गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कहती भीतर आ’ना ।
बहे मन्द पवमाना ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
‘अक्षर’ ताना बाना ।।९।।
ॐ ह्रीं ह-वा…वा-ह गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हरी भरी फल डाली ।
ऋत-ऋत फूलों वाली ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
जप दुखड़ा अपहारी ।।१०।।
ॐ ह्रीं ऋत-ऋत गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
एक हजार-अठ आरे ।
देव ‘चक्र’ रखवाले ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
चूनर टकें सितारे ।।११।।
ॐ ह्रीं अग्र धर्मचक्र गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रज न दूर तक काँटे ।
मारग मा’रग नाते ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
मन के पाप मिटाते ।।१२।।
ॐ ह्रीं ‘मा-रग’ गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुगंध भीनी-भीनी ।
जल फुहार अनचीनी ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
संप्रद निधी नवीनी ।।१३।।
ॐ ह्रीं मोहक गन्धोदक गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
औ’सर विहार आता ।
देव रचें ‘जल जाता’ ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
सहज निरा’कुल’ नाता ।।१४।।
ॐ ह्रीं पद पद्म गुण मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘सुर’ दर्प’ण भू भाषा ।
नभ दिश् मित्र वताशा ।
जय बाबा बाबा चन्दा जय,
‘ऋत’ ‘वृत’ पथ ‘जल’-वासा ।।
ॐ ह्रीं चतुर्दश देव-कृतातिशय मण्डिताय
श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जयमाला लघु चालीसा
=दोहा=
धका-धका शिव ले चले,
कीर्तन पाछी पौन ।
आ पल दो पल के लिये,
नम करते दृग् कोन ।।
एक नहीं सारे के सारे ।
भक्त तुम्हें प्राणों से प्यारे ।
मैं क्या कहूँ, कहे जग सारा ।
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।१।।
सूली बदली सिंहासन में ।
विष उतरा बातन-बातन में ।
मेंढ़क नामे स्वर्ग विमाना ।
दरवाजा पाँवन खुल जाना ।।२।।
एक नहीं सारे के सारे ।
भक्त तुम्हें प्राणों से प्यारे ।
मैं क्या कहूँ, कहे जग सारा ।
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।३।।
नागिन नाग लोक अध स्वामी ।
अंजन चोर निरंजन नामी ।।
भगवन् कुन्द-कुन्द इक ग्वाला ।
नाग घड़े निकली, जयमाला ।।४।।
एक नहीं सारे के सारे ।
भक्त तुम्हें प्राणों से प्यारे ।
मैं क्या कहूँ, कहे जग सारा ।
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।५।।
सोन बन चले पंख जटायू ।
बाजे बजरंगी सुत वायू ।।
नाग नकुल कपि सुलटे पाँसे ।
जीव गिंजाई ढ़ाले ‘साँचे’ ।।६।।
एक नहीं सारे के सारे ।
भक्त तुम्हें प्राणों से प्यारे ।
मैं क्या कहूँ, कहे जग सारा ।
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।७।।
हो’शियार निशि पानी त्यागी ।
धीवर ‘धी’वर, पानी आगी ।।
सीझे सिंह शिव स्वप्न अनूठे ।
बन्धन चन्दन तड़-तड़ टूटे ।।८।।
एक नहीं सारे के सारे ।
भक्त तुम्हें प्राणों से प्यारे ।
मैं क्या कहूँ, कहे जग सारा ।
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।९।।
दुखिया में भी भगवन् मेरे ।
आन पड़ा हूँ चरणन तेरे ।
लाज हमारी भी रख लो ना ।
जैसा, तेरा अपना छोना ।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=दोहा=
सहज निराकुल लो बना,
अपना लो जिनदेव ।
और न बस सपना यही,
पार लगा दो खेव ।।
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
=दोहा=
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
=आरती=
ऐरा नन्दा ।
बाबा चन्दा ।।
जयतु जयतु जय जयतु जिनन्दा ।।
स्वर्ण सुगंधा ।
पाप निकन्दा ।
जयतु जयतु जय जयतु जिनन्दा ।।
दीप हाथ ले ।
भक्ति साथ ले ।
करूँ आरती मैं सानन्दा ।।
आरती प्रथम गर्भ कल्याणा ।
इन्द्र कुबेर रत्न बरसाना ।
साँझ साँझ ले भक्ति अमन्दा ।।
आरती द्वितिय जन्म कल्याणा ।
मेर न्हवन सौधर्म रचाना ।
ताण्डव करे भक्त बन अंधा ।।
आरती तृतिय त्याग कल्याणा ।
कच लुञ्चल, दैगम्बर बाना ।
छोड़ छाड़ सब गौरख धंधा ।।
आरती तुरिय ज्ञान कल्याणा ।
सींह हिरण समशरण दिखाना ।
बैठे दे कंधे से कंधा ।
आरती और मोक्ष कल्याणा ।
समय मात्र ऋज गति शिव थाना ।
टूट चला वसु कर्मन फंदा ।।
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