- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 998
सम्यक् तप त्याग हिमालय
चलते-फिरते ग्रन्थालय
जयतु जयतु जय
जयतु जयतु जय
जय जय, जयतु जयतु जय, जय जय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
चलते-फिरते ग्रन्थालय
सम्यक् तप त्याग हिमालय ।।स्थापना।।
सागर क्षीर, नीर भर लाया
गद-गद हृदय, सजल दृग् आया
श्रद्धा सुमन साथ सविनय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
जयतु जयतु जय
जयतु जयतु जय
जय जय, जयतु जयतु जय, जय जय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
चलते-फिरते ग्रन्थालय
सम्यक् तप त्याग हिमालय ।।जलं।।
मलयागिर से चंदन लाया
गद-गद हृदय, सजल दृग् आया
श्रद्धा सुमन साथ सविनय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
जयतु जयतु जय
जयतु जयतु जय
जय जय, जयतु जयतु जय, जय जय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
चलते-फिरते ग्रन्थालय
सम्यक् तप त्याग हिमालय ।।चन्दनं।।
मरकत थाल शालि धाँ लाया
गद-गद हृदय, सजल दृग् आया
श्रद्धा सुमन साथ सविनय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
जयतु जयतु जय
जयतु जयतु जय
जय जय, जयतु जयतु जय, जय जय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
चलते-फिरते ग्रन्थालय
सम्यक् तप त्याग हिमालय ।।अक्षतं।।
रंग-बिरंग नन्द गुल लाया
गद-गद हृदय, सजल दृग् आया
श्रद्धा सुमन साथ सविनय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
जयतु जयतु जय
जयतु जयतु जय
जय जय, जयतु जयतु जय, जय जय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
चलते-फिरते ग्रन्थालय
सम्यक् तप त्याग हिमालय ।।पुष्पं।।
नवल-नवल घृत व्यंजन लाया
गद-गद हृदय, सजल दृग् आया
श्रद्धा सुमन साथ सविनय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
जयतु जयतु जय
जयतु जयतु जय
जय जय, जयतु जयतु जय, जय जय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
चलते-फिरते ग्रन्थालय
सम्यक् तप त्याग हिमालय ।।नैवेद्यं।।
बाति कपूर जगा कर लाया
गद-गद हृदय, सजल दृग् आया
श्रद्धा सुमन साथ सविनय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
जयतु जयतु जय
जयतु जयतु जय
जय जय, जयतु जयतु जय, जय जय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
चलते-फिरते ग्रन्थालय
सम्यक् तप त्याग हिमालय ।।दीपं।।
घट हाटक अन सुगंध लाया
गद-गद हृदय, सजल दृग् आया
श्रद्धा सुमन साथ सविनय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
जयतु जयतु जय
जयतु जयतु जय
जय जय, जयतु जयतु जय, जय जय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
चलते-फिरते ग्रन्थालय
सम्यक् तप त्याग हिमालय ।।धूपं।।
फल विमान वन नन्दन लाया
गद-गद हृदय, सजल दृग् आया
श्रद्धा सुमन साथ सविनय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
जयतु जयतु जय
जयतु जयतु जय
जय जय, जयतु जयतु जय, जय जय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
चलते-फिरते ग्रन्थालय
सम्यक् तप त्याग हिमालय ।।फलं।।
सारे द्रव्य मिलाकर लाया
गद-गद हृदय, सजल दृग् आया
श्रद्धा सुमन साथ सविनय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
जयतु जयतु जय
जयतु जयतु जय
जय जय, जयतु जयतु जय, जय जय
जय विद्या जय, जय विद्या जय
चलते-फिरते ग्रन्थालय
सम्यक् तप त्याग हिमालय ।।अर्घ्यं।।
=कीर्तन=
आँख सजल… जय गुरुदेव
भक्त वत्सल… जय गुरुदेव
जयतु जयतु जय… जय गुरुदेव
सजग पल-पल… जय गुरुदेव
जयमाला
गुरु जी ने शंख नाद कर दिया
है अब बारी हमारी
वैसे नई न बात कोई हमें,
जीतना हारी पारी
है अभी छोटा ही परिन्दा
पर भरने चला उड़ान
हौंसले जो बुलन्द हैं
छू ही लेगा आसमान
माँ ने जो सर पर हाथ रख दिया
गुरु जी ने शंख नाद कर दिया
है अब बारी हमारी
वैसे नई न बात कोई हमें,
जीतना हारी पारी
है अभी छोटी ही चींटी
पर चली उलाँघने पहाड़
हौंसले जो बुलन्द हैं
टक ही लेगी, चादर चाँद-सितार
माँ ने जो सर पर हाथ रख दिया
गुरु जी ने शंख नाद कर दिया
है अब बारी हमारी
वैसे नई न बात कोई हमें,
जीतना हारी पारी
है अभी छोटा ही परिन्दा
पर भरने चला उड़ान
हौंसले जो बुलन्द हैं
छू ही लेगा आसमान
माँ ने जो सर पर हाथ रख दिया
गुरु जी ने शंख नाद कर दिया
है अब बारी हमारी
वैसे नई न बात कोई हमें,
जीतना हारी पारी
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
बस आ गया,
चल…
धका, दें दिला गुरु मंजिल
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