- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 995
गुरुवर लेते अवतार
करने भक्तों को पार
भटकन संसार से
दुख पारावार से
करने भक्तों को पार
गुरुवर लेते अवतार ।।स्थापना।।
गंगा नदिया का नीर
लाया जल सागर क्षीर
गुरुदेव मोक्ष आधार
जय जयकार जय जयकार
भटकन संसार से
दुख पारावार से
करने भक्तों को पार
गुरुवर लेते अवतार ।।जलं।।
चन्दन झारी रतनार
लाया महके दिश् चार
गुरुदेव मोक्ष आधार
जय जयकार जय जयकार
भटकन संसार से
दुख पारावार से
करने भक्तों को पार
गुरुवर लेते अवतार ।।चन्दनं।।
गहरी श्रद्धा के साथ
लाया धाँ शालि परात
गुरुदेव मोक्ष आधार
जय जयकार जय जयकार
भटकन संसार से
दुख पारावार से
करने भक्तों को पार
गुरुवर लेते अवतार ।।अक्षतं।।
सुन्दर नमेर मंदार
लाया गुल नन्दन क्यार
गुरुदेव मोक्ष आधार
जय जयकार जय जयकार
भटकन संसार से
दुख पारावार से
करने भक्तों को पार
गुरुवर लेते अवतार ।।पुष्पं।।
षट्-रस मिश्रित गुणधान
लाया गो घृत पकवान
गुरुदेव मोक्ष आधार
जय जयकार जय जयकार
भटकन संसार से
दुख पारावार से
करने भक्तों को पार
गुरुवर लेते अवतार ।।नैवेद्यं।।
मण-मरकत मण्ड़ित थाल
लाया घृत दीपक माल
गुरुदेव मोक्ष आधार
जय जयकार जय जयकार
भटकन संसार से
दुख पारावार से
करने भक्तों को पार
गुरुवर लेते अवतार ।।दीपं।।
चन्दन चूरी, कर्पूर
लाया परिमल कस्तूर
गुरुदेव मोक्ष आधार
जय जयकार जय जयकार
भटकन संसार से
दुख पारावार से
करने भक्तों को पार
गुरुवर लेते अवतार ।।धूपं।।
फल मिसरी आप समान
लाया नन्दन बागान
गुरुदेव मोक्ष आधार
जय जयकार जय जयकार
भटकन संसार से
दुख पारावार से
करने भक्तों को पार
गुरुवर लेते अवतार ।।फलं।।
जल, फल, गुल, तण्डुल, गंध
लाया चरु, दीप, सुगंध
गुरुदेव मोक्ष आधार
जय जयकार जय जयकार
भटकन संसार से
दुख पारावार से
करने भक्तों को पार
गुरुवर लेते अवतार ।।अर्घ्यं।।
=कीर्तन=
जय गुरुवर जय,
जय जय गुरुवर
जयतु जयतु जय, जय जय गुरुवर
जयमाला
मेरी श्रद्धा, तुम पे गहराती है
तुम्हें एक जो सोना और माटी है
‘जि गुरु जी
मेरी भक्ति
मेरी श्रद्धा, तुम पे गहराती है
तुम्हें एक जो सोना और माटी है
फूँक कर पग जो रखते तुम
दया तरबतर रग जो रखते तुम
बस मुट्ठी भर दिल में,
सारा जग जो रखते तुम
फूँक कर पग जो रखते तुम
तुम्हें एक जो सोना और माटी है
‘जि गुरु जी
मेरी भक्ति
मेरी श्रद्धा, तुम पे गहराती है
तुम्हें एक जो सोना और माटी है
नमतर रखते निगाहें
फैलाकर रखते तुम बाँहें
नेकिंयाँ किस रस्ते आतीं,
देखते रहते तुम राहें
नमतर रखते निगाहें
तुम्हें एक जो सोना और माटी है
‘जि गुरु जी
मेरी भक्ति
मेरी श्रद्धा, तुम पे गहराती है
तुम्हें एक जो सोना और माटी है
जुबां रखते हो मिसरी तुम
और हित थामे छतरी तुम
तुम किसी के हो चश्मे,
तो हो किसी की लकड़ी तुम
जुबां रखते हो मिसरी तुम
तुम्हें एक जो सोना और माटी है
‘जि गुरु जी
मेरी भक्ति
मेरी श्रद्धा, तुम पे गहराती है
तुम्हें एक जो सोना और माटी है
फूँक कर पग जो रखते तुम
दया तरबतर रग जो रखते तुम
बस मुट्ठी भर दिल में,
सारा जग जो रखते तुम
फूँक कर पग जो रखते तुम
तुम्हें एक जो सोना और माटी है
‘जि गुरु जी
मेरी भक्ति
मेरी श्रद्धा, तुम पे गहराती है
तुम्हें एक जो सोना और माटी है
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
अपने पास बुला लो,
दी जिन्दगी,
तुम्हीं सँभालो
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