- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 948
जय-विद्या जैसा कोई भी मन्त्र नहीं
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
न सिर्फ़ कहता मैं ही
‘रे भारत का बच्चा-बच्चा कहता यही
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
जय-विद्या जैसा कोई भी मन्त्र नहीं
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं ।।स्थापना।।
चढ़ाऊँगा मैं तो जल गागर
भरने जाऊँगा क्षीर सागर
जगाकर ऐसी भक्ति,
जिसका कोई भी अन्त नहीं
क्योंकि, गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
न सिर्फ़ कहता मैं ही
‘रे भारत का बच्चा-बच्चा कहता यही
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
जय-विद्या जैसा कोई भी मन्त्र नहीं
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं ।।जलं।।
चढ़ाऊँगा चन्दन मलयागर
लेने जाऊँगा बीच विषधर
जगाकर ऐसी भक्ति,
जिसका कोई भी अन्त नहीं
क्योंकि, गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
न सिर्फ़ कहता मैं ही
‘रे भारत का बच्चा-बच्चा कहता यही
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
जय-विद्या जैसा कोई भी मन्त्र नहीं
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं ।।चन्दनं।।
चढ़ाऊँगा मैं तो धाँ पातर
ले आऊँगा धाँ-कटोरे शहर
जगाकर ऐसी भक्ति,
जिसका कोई भी अन्त नहीं
क्योंकि, गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
न सिर्फ़ कहता मैं ही
‘रे भारत का बच्चा-बच्चा कहता यही
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
जय-विद्या जैसा कोई भी मन्त्र नहीं
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं ।।अक्षतं।।
चढ़ाऊँगा मैं तो फुलबा-लर
ले आऊँगा वन नन्दन जाकर
जगाकर ऐसी भक्ति,
जिसका कोई भी अन्त नहीं
क्योंकि, गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
न सिर्फ़ कहता मैं ही
‘रे भारत का बच्चा-बच्चा कहता यही
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
जय-विद्या जैसा कोई भी मन्त्र नहीं
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं ।।पुष्पं।।
चढ़ाऊँगा चरु घृत गैय्या गिर
लेने जाऊँगा अलकापुर
जगाकर ऐसी भक्ति,
जिसका कोई भी अन्त नहीं
क्योंकि, गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
न सिर्फ़ कहता मैं ही
‘रे भारत का बच्चा-बच्चा कहता यही
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
जय-विद्या जैसा कोई भी मन्त्र नहीं
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं ।।नैवेद्यं।।
चढ़ाऊँगा दीवा मण झालर
ले आऊँगा रत्न रत्नाकर
जगाकर ऐसी भक्ति,
जिसका कोई भी अन्त नहीं
क्योंकि, गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
न सिर्फ़ कहता मैं ही
‘रे भारत का बच्चा-बच्चा कहता यही
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
जय-विद्या जैसा कोई भी मन्त्र नहीं
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं ।।दीपं।।
चढ़ाऊँगा सुगंध जग जाहर
ले आऊँगा दूर देश नागर
जगाकर ऐसी भक्ति,
जिसका कोई भी अन्त नहीं
क्योंकि, गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
न सिर्फ़ कहता मैं ही
‘रे भारत का बच्चा-बच्चा कहता यही
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
जय-विद्या जैसा कोई भी मन्त्र नहीं
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं ।।धूपं।।
चढ़ाऊँगा फल सुर-बागा-तर
लेने जाऊँगा पंख लगाकर
जगाकर ऐसी भक्ति,
जिसका कोई भी अन्त नहीं
क्योंकि, गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
न सिर्फ़ कहता मैं ही
‘रे भारत का बच्चा-बच्चा कहता यही
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
जय-विद्या जैसा कोई भी मन्त्र नहीं
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं ।।फलं।।
चढ़ाऊँगा द्रव सब मनवाहर
ले आऊँगा देवों से मँगाकर
जगाकर ऐसी भक्ति,
जिसका कोई भी अन्त नहीं
क्योंकि, गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
न सिर्फ़ कहता मैं ही
‘रे भारत का बच्चा-बच्चा कहता यही
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं
जय-विद्या जैसा कोई भी मन्त्र नहीं
गुरु-विद्या जैसा कोई भी सन्त नहीं ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
और न अता पता
पास श्री गुरु निराकुलता
जयमाला
सीप ज्ञान सागर
विद्या-सागर मोती
श्री गुरु कृपा थोड़ी भी
थोडे़ से थोड़ी भी,
श्री गुरु कृपा कम नहीं होती
विद्या-सागर मोती
सीप ज्ञान सागर
विद्या-सागर मोती
नूर ऐसा और नहीं
सूर ऐसा और नहीं
और तो और चाँद भी, ऐसा गौर नहीं
किसे नहीं पता
पन्ने पन्ने तो छपा
विद्या-सागर मोती
सीप ज्ञान सागर
विद्या-सागर मोती
श्री गुरु कृपा थोड़ी भी
थोडे़ से थोड़ी भी,
श्री गुरु कृपा कम नहीं होती
विद्या-सागर मोती
सीप ज्ञान सागर
विद्या-सागर मोती
रोशनी कुछ हटके, आके झोली पड़ी
सामने अँधेरे के, आके शामत खड़ी
नूर ऐसा और नहीं
सूर ऐसा और नहीं
और तो और चाँद भी, ऐसा गौर नहीं
किसे नहीं पता
पन्ने पन्ने तो छपा
विद्या-सागर मोती
सीप ज्ञान सागर
विद्या-सागर मोती
श्री गुरु कृपा थोड़ी भी
थोडे़ से थोड़ी भी,
श्री गुरु कृपा कम नहीं होती
विद्या-सागर मोती
सीप ज्ञान सागर
विद्या-सागर मोती
बेजोड़ी ‘के बन चली जोड़ी अनूठी
मोती विद्या-सागर मनीषा अहिंसा अंगूठी
नूर ऐसा और नहीं
सूर ऐसा और नहीं
और तो और चाँद भी, ऐसा गौर नहीं
किसे नहीं पता
पन्ने पन्ने तो छपा
विद्या-सागर मोती
सीप ज्ञान सागर
विद्या-सागर मोती
श्री गुरु कृपा थोड़ी भी
थोडे़ से थोड़ी भी,
श्री गुरु कृपा कम नहीं होती
विद्या-सागर मोती
सीप ज्ञान सागर
विद्या-सागर मोती
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
होता गुरु जी के पास
जन्नत का सा अहसास
Sharing is caring!