- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 947
जब तक सूरज, चाँद, सितारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे
शरण सहारे
तारण हारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे
जब तक सूरज, चाँद, सितारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे ।।स्थापना।।
जल गुणकारी
गागर न्यारी
लिये खड़े है द्वार तुम्हारे
शरण सहारे
तारण हारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे
जब तक सूरज, चाँद, सितारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे ।।जलं।।
छव रतनारी
चन्दन झारी
लिये खड़े है द्वार तुम्हारे
शरण सहारे
तारण हारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे
जब तक सूरज, चाँद, सितारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे ।।चन्दनं।।
अक्षत शाली
मरकत थाली
लिये खड़े है द्वार तुम्हारे
शरण सहारे
तारण हारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे
जब तक सूरज, चाँद, सितारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे ।।अक्षतं।।
नन्दन क्यारी
पुष्प पिटारी
लिये खड़े है द्वार तुम्हारे
शरण सहारे
तारण हारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे
जब तक सूरज, चाँद, सितारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे ।।पुष्पं।।
चरु मनहारी
गो घृत वाली
लिये खड़े है द्वार तुम्हारे
शरण सहारे
तारण हारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे
जब तक सूरज, चाँद, सितारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे ।।नैवेद्यं।।
तुरत प्रजाली
घृत दीपाली
लिये खड़े है द्वार तुम्हारे
शरण सहारे
तारण हारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे
जब तक सूरज, चाँद, सितारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे ।।दीपं।।
गंध अहा ’री
विध विध सारी
लिये खड़े है द्वार तुम्हारे
शरण सहारे
तारण हारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे
जब तक सूरज, चाँद, सितारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे ।।धूपं।।
नन्द निराली
फल-फल डाली
लिये खड़े है द्वार तुम्हारे
शरण सहारे
तारण हारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे
जब तक सूरज, चाँद, सितारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे ।।फलं।।
फल फुलवारी
दिव अवतारी
लिये खड़े है द्वार तुम्हारे
शरण सहारे
तारण हारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे
जब तक सूरज, चाँद, सितारे
जयवन्तो गुरुदेव हमारे ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
जाग, सूरज को जगाने का काम,
गुरु के नाम
…जयमाला…
लेखनी गुरु कुन्द-कुन्द दूसरे नाम
आचार्य श्री विद्या-सिन्धु प्रणाम
दरद-मन्द हैं
दया वन्त हैं
शिरोमण सन्त हैं
भींगीं रहतीं जिनकी सुमरण से हर शाम
आचार्य श्री विद्या-सिन्धु प्रणाम
लेखनी गुरु कुन्द-कुन्द दूसरे नाम
आचार्य श्री विद्या-सिन्धु प्रणाम
चलते रस्ते से
लोचन रिसते से
कलि-काल फ़रिश्ते से
बोझ पराया ले चले उठा के,
कौन आज निष्काम
आचार्य श्री विद्या-सिन्धु प्रणाम
लेखनी गुरु कुन्द-कुन्द दूसरे नाम
आचार्य श्री विद्या-सिन्धु प्रणाम
दरद-मन्द हैं
दया वन्त हैं
शिरोमण सन्त हैं
भींगीं रहतीं जिनकी सुमरण से हर शाम
आचार्य श्री विद्या-सिन्धु प्रणाम
लेखनी गुरु कुन्द-कुन्द दूसरे नाम
आचार्य श्री विद्या-सिन्धु प्रणाम
छाहरी घनी
सहजता के धनी
दो जहां एक रोशनी
हो चला सा हवा पश्चिमी काम तमाम
आचार्य श्री विद्या-सिन्धु प्रणाम
लेखनी गुरु कुन्द-कुन्द दूसरे नाम
आचार्य श्री विद्या-सिन्धु प्रणाम
दरद-मन्द हैं
दया वन्त हैं
शिरोमण सन्त हैं
भींगीं रहतीं जिनकी सुमरण से हर शाम
आचार्य श्री विद्या-सिन्धु प्रणाम
लेखनी गुरु कुन्द-कुन्द दूसरे नाम
आचार्य श्री विद्या-सिन्धु प्रणाम
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
थामे रहना गुरु जी हाथ
दूजी न फरियाद
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