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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 942

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 942

शिरोमण सन्त हैं
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
गुरु कुन्द-कुन्द के
माहन्त पन्थ के
कलि शिरोमण सन्त हैं
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
सूरि विद्या-सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर ।।स्थापना।।

क्यूँ न नीर गंग लाऊँ
विनत चरणों में चढ़ाऊँ
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
गुरु कुन्द-कुन्द के
माहन्त पन्थ के
कलि शिरोमण सन्त हैं
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
सूरि विद्या-सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर ।।जलं।।

क्यूँ न मलय गंध लाऊँ
विनत चरणों में चढ़ाऊँ
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
गुरु कुन्द-कुन्द के
माहन्त पन्थ के
कलि शिरोमण सन्त हैं
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
सूरि विद्या-सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर ।।चन्दनं।।

क्यूँ न धाँ अखण्ड लाऊँ
विनत चरणों में चढ़ाऊँ
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
गुरु कुन्द-कुन्द के
माहन्त पन्थ के
कलि शिरोमण सन्त हैं
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
सूरि विद्या-सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर ।।अक्षतं।।

क्यूँ न पुष्प नन्द लाऊँ
विनत चरणों में चढ़ाऊँ
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
गुरु कुन्द-कुन्द के
माहन्त पन्थ के
कलि शिरोमण सन्त हैं
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
सूरि विद्या-सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर ।।पुष्पं।।

क्यूँ न चरु दिगन्त लाऊँ
विनत चरणों में चढ़ाऊँ
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
गुरु कुन्द-कुन्द के
माहन्त पन्थ के
कलि शिरोमण सन्त हैं
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
सूरि विद्या-सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर ।।नैवेद्यं।।

क्यूँ न लौं अमन्द लाऊँ
विनत चरणों में चढ़ाऊँ
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
गुरु कुन्द-कुन्द के
माहन्त पन्थ के
कलि शिरोमण सन्त हैं
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
सूरि विद्या-सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर ।।दीपं।।

क्यूँ न दिव सुगंध लाऊँ
विनत चरणों में चढ़ाऊँ
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
गुरु कुन्द-कुन्द के
माहन्त पन्थ के
कलि शिरोमण सन्त हैं
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
सूरि विद्या-सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर ।।धूपं।।

क्यूँ न फल वसन्त लाऊँ
विनत चरणों में चढ़ाऊँ
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
गुरु कुन्द-कुन्द के
माहन्त पन्थ के
कलि शिरोमण सन्त हैं
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
सूरि विद्या-सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर ।।फलं।।

क्यूँ न निम्ब, अम्ब लाऊँ
विनत चरणों में चढ़ाऊँ
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
गुरु कुन्द-कुन्द के
माहन्त पन्थ के
कलि शिरोमण सन्त हैं
चलते फिरते ग्रन्थ हैं
सूरि विद्या-सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
गुरु वाणी
‘जी’ कहे पीते ही जाओ
गर्मी में पानी

जयमाला
रख सामने आईना
शिल्पी ज्ञान-सागर
कुछ रहे बना

वाह…’रे वाह…क्या कहने
पहना रहे हैं लाजो-शरम गहने

हूबहू कमल पाँखें हैं
‘रे झुकीं-झुकीं सीं आँखें हैं
लगे ऐसा,
मानो हम देख रहे हों, कोई सपना
शिल्पी ज्ञान-सागर
कुछ रहे बना

रख सामने आईना
शिल्पी ज्ञान-सागर
कुछ रहे बना

वाह…’रे वाह…क्या कहने
पहना रहे हैं लाजो-शरम गहने

पलकें पल के लिये खुलें
अलकें अलि से कुछ-कुछ मिलें

लगे ऐसा,
मानो हम देख रहे हों, कोई सपना
शिल्पी ज्ञान-सागर
कुछ रहे बना

रख सामने आईना
शिल्पी ज्ञान-सागर
कुछ रहे बना

वाह…’रे वाह…क्या कहने
पहना रहे हैं लाजो-शरम गहने

मिसरी फीकी बोली आगे
सुनने वाले बस बड़-भागे

लगे ऐसा,
मानो हम देख रहे हों, कोई सपना
शिल्पी ज्ञान-सागर
कुछ रहे बना

रख सामने आईना
शिल्पी ज्ञान-सागर
कुछ रहे बना

वाह…’रे वाह…क्या कहने
पहना रहे हैं लाजो-शरम गहने
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
मर्ज ‘कि देवे दबा जो
न गुरु जी देवें दवा वो

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