- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 918
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी
है राह एक मंजिल हमारी-तुम्हारी
‘रे लम्बा जो सफर हो
तो भले होते हैं मुसाफिर दो
सुनो, मान भी लो बात हमारी
ओ ! अनियत विहारी
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी ।।स्थापना।।
मैं चढ़ाऊँ तुम्हें नीर
तुम चरण, पहली शरण अखीर
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी
है राह एक मंजिल हमारी-तुम्हारी
‘रे लम्बा जो सफर हो
तो भले होते हैं मुसाफिर दो
सुनो, मान भी लो बात हमारी
ओ ! अनियत विहारी
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी ।।जलं।।
मैं चढ़ाऊँ तुम्हें चन्दन
इक तुम्हारी ही हमें शरण
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी
है राह एक मंजिल हमारी-तुम्हारी
‘रे लम्बा जो सफर हो
तो भले होते हैं मुसाफिर दो
सुनो, मान भी लो बात हमारी
ओ ! अनियत विहारी
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी ।।चन्दनं।।
धाँ शालि मैं चढ़ाऊँ तुम्हें
है शरण इक तुम्हारी हमें
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी
है राह एक मंजिल हमारी-तुम्हारी
‘रे लम्बा जो सफर हो
तो भले होते हैं मुसाफिर दो
सुनो, मान भी लो बात हमारी
ओ ! अनियत विहारी
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी ।।अक्षतं।।
मैं चढ़ाऊँ तुम्हें कुसुम
मेरे लिये शरण एक तुम
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी
है राह एक मंजिल हमारी-तुम्हारी
‘रे लम्बा जो सफर हो
तो भले होते हैं मुसाफिर दो
सुनो, मान भी लो बात हमारी
ओ ! अनियत विहारी
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी ।।पुष्पं।।
मैं चढ़ाऊँ तुम्हें नेवज
मुझे शरण तुम्हारी चरण रज
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी
है राह एक मंजिल हमारी-तुम्हारी
‘रे लम्बा जो सफर हो
तो भले होते हैं मुसाफिर दो
सुनो, मान भी लो बात हमारी
ओ ! अनियत विहारी
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी ।।नैवेद्यं।।
मैं चढ़ाऊँ तुम्हें दीपक,
है शरण हमें तुम्हारी यक
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी
है राह एक मंजिल हमारी-तुम्हारी
‘रे लम्बा जो सफर हो
तो भले होते हैं मुसाफिर दो
सुनो, मान भी लो बात हमारी
ओ ! अनियत विहारी
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी ।।दीपं।।
मैं चढ़ाऊँ तुम्हें सुरभि
शरण मुझे तुम सिवा कोई नहीं
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी
है राह एक मंजिल हमारी-तुम्हारी
‘रे लम्बा जो सफर हो
तो भले होते हैं मुसाफिर दो
सुनो, मान भी लो बात हमारी
ओ ! अनियत विहारी
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी ।।धूपं।।
मैं चढ़ाऊँ तुम्हें भेले
मुझे शरण इक तुम अकेले
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी
है राह एक मंजिल हमारी-तुम्हारी
‘रे लम्बा जो सफर हो
तो भले होते हैं मुसाफिर दो
सुनो, मान भी लो बात हमारी
ओ ! अनियत विहारी
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी ।।फलं।।
मैं चढ़ाऊँ तुम्हें जल-फल
शरण मुझे गुजारे तुम साथ पल
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी
है राह एक मंजिल हमारी-तुम्हारी
‘रे लम्बा जो सफर हो
तो भले होते हैं मुसाफिर दो
सुनो, मान भी लो बात हमारी
ओ ! अनियत विहारी
ले चलो खींचे मुझे
लो लगा पीछे मुझे
ओ ! अनियत विहारी ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
हम आपसे चाहते जुड़ना
न करना मना
जयमाला
मुश्किल सी लगे डगर
बन जाओ ना, तुम मेरे हमसफर
पहला ही अभी, मैं रहा कदम बढ़ा
माटी हूँ मैं, है बनना मुझे घड़ा
कस के अंगुली लो मेरी पकड़
मुश्किल सी लगे डगर
सुनते हैं, मार कुदाल की पड़ती है
लेते ही नाम
हाय राम !
पैरों तले रोदे जाने का
लेते ही नाम
मेरी तो जान निकलती है
ओ ! अपने अपनों में
‘जि गुरुवर
कर लो अपने चरणों में, मुझे खड़ा
पहला ही अभी, मैं रहा कदम बढ़ा
मुश्किल सी लगे डगर
बन जाओ ना, तुम मेरे हमसफर
पहला ही अभी, मैं रहा कदम बढ़ा
माटी हूँ मैं, है बनना मुझे घड़ा
कस के अंगुली लो मेरी पकड़
मुश्किल सी लगे डगर
सुनते हैं, चक्कर चक्के पे खाने पड़ते हैं
लेते ही नाम
हाय राम !
अग्नि परीक्षा का
लेते ही नाम
मेरे तो प्राण निकलते हैं
ओ ! अपने अपनों में
‘जि गुरुवर
कर लो अपने चरणों में, मुझे खड़ा
पहला ही अभी, मैं रहा कदम बढ़ा
मुश्किल सी लगे डगर
बन जाओ ना, तुम मेरे हमसफर
पहला ही अभी, मैं रहा कदम बढ़ा
माटी हूँ मैं, है बनना मुझे घड़ा
कस के अंगुली लो मेरी पकड़
मुश्किल सी लगे डगर
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
अयस्
पारस ही कर लिया
गुरुदेव शुक्रिया
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