- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 913
है दीवाना
तेरी एक नजर का
‘दिये’ ढ़ाई अखर का
ये सारा जमाना
है दीवाना ।।स्थापना।।
साथ रोमिल पुलक
चरणन चढ़ाने उदक
चला आता है रोजाना
ये सारा जमाना
है दीवाना
तेरी एक नजर का
‘दिये’ ढ़ाई अखर का
ये सारा जमाना
है दीवाना ।।जलं।।
साथ गद-गद हृदय
चढ़ाने रस जश मलय
चला आता है रोजाना
ये सारा जमाना
दीवाना
तेरी एक नजर का
‘दिये’ ढ़ाई अखर का
ये सारा जमाना
है दीवाना ।।चन्दनं।।
साथ श्रद्धा सुमन
चढ़ाने धाँ शालि चरण
चला आता है रोजाना
ये सारा जमाना
दीवाना
तेरी एक नजर का
‘दिये’ ढ़ाई अखर का
ये सारा जमाना
है दीवाना ।।अक्षतं।।
संग एक उमंग
चढ़ाने गुल रंग-बिरंग
चला आता है रोजाना
ये सारा जमाना
दीवाना
तेरी एक नजर का
‘दिये’ ढ़ाई अखर का
ये सारा जमाना
है दीवाना ।।पुष्पं।।
लिये भीतर हरष
चरणन, चढ़ाने षट्-रस
चला आता है रोजाना
ये सारा जमाना
दीवाना
तेरी एक नजर का
‘दिये’ ढ़ाई अखर का
ये सारा जमाना
है दीवाना ।।नैवेद्यं।।
कलश दृग्-झलकत
चढ़ाने दीपक घिरत
चला आता है रोजाना
ये सारा जमाना
दीवाना
तेरी एक नजर का
‘दिये’ ढ़ाई अखर का
ये सारा जमाना
है दीवाना ।।दीपं।।
लिये भक्ति अमन्द
चरणन चढ़ाने सुगंध
चला आता है रोजाना
ये सारा जमाना
दीवाना
तेरी एक नजर का
‘दिये’ ढ़ाई अखर का
ये सारा जमाना
है दीवाना ।।धूपं।।
हाथ माथ पे ले
चरणन चढ़ाने भेले
चला आता है रोजाना
ये सारा जमाना
दीवाना
तेरी एक नजर का
‘दिये’ ढ़ाई अखर का
ये सारा जमाना
है दीवाना ।।फलं।।
बड़ी दूर से चल
चरणन चढ़ाने जल-फल
चला आता है रोजाना
ये सारा जमाना
है दीवाना
तेरी एक नजर का
‘दिये’ ढ़ाई अखर का
ये सारा जमाना
है दीवाना ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
बने पल वो सत-रंग,
बीते जो गुरु के संग
जयमाला
जो ‘खोली’
जा झोली घर पर
दी थी जो गुरु जी ने भर-कर
जा करके कहीं और,
न हाथ फैलाने पड़े
गुरु जी औघड़-दानी बड़े
दरिया दिली
उसमें नेकी निकली
आँसू बहा करके कहीं और
न हाथ फैलाने पड़े
गुरु जी औघड़-दानी बड़े
जो ‘खोली’
जा झोली घर पर
दी थी जो गुरु जी ने भर-कर
जा करके कहीं और,
न हाथ फैलाने पड़े
गुरु जी औघड़-दानी बड़े
रोशनी विरली
उसमें खुशी निकली
आँसू बहा करके कहीं और
न हाथ फैलाने पड़े
गुरु जी औघड़-दानी बड़े
जो ‘खोली’
जा झोली घर पर
दी थी जो गुरु जी ने भर-कर
जा करके कहीं और,
न हाथ फैलाने पड़े
गुरु जी औघड़-दानी बड़े
जुबाँ मिसरी
उसमें दुआ निकली
आँसू बहा करके कहीं और
न हाथ फैलाने पड़े
गुरु जी औघड़-दानी बड़े
जो ‘खोली’
जा झोली घर पर
दी थी जो गुरु जी ने भर-कर
जा करके कहीं और,
न हाथ फैलाने पड़े
गुरु जी औघड़-दानी बड़े
दरिया दिली
उसमें नेकी निकली
आँसू बहा करके कहीं और
न हाथ फैलाने पड़े
गुरु जी औघड़-दानी बड़े
जो ‘खोली’
जा झोली घर पर
दी थी जो गुरु जी ने भर-कर
जा करके कहीं और,
न हाथ फैलाने पड़े
गुरु जी औघड़-दानी बड़े
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
भक्तों का गुरु जी,
ले जाते ‘जी’ चुरा के
मुस्कुरा के
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