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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 884

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 884

सुन के आ रहा हूँ
आप सुनते हैं,
इसलिये सुना रहा हूँ
दुखड़ा अपना,
बस, आप सुन लीजिये,
मेरा न और सपना ।।स्थापना।।

भेंटूँ जल गगरी
रहती आँख भरी
लाज रखी शबरी,
बारी अब हमरी
सुन के आ रहा हूँ
आप सुनते हैं,
इसलिये सुना रहा हूँ
दुखड़ा अपना,
बस, आप सुन लीजिये,
मेरा न और सपना ।।जलं।।

भेंटूँ गन्ध निरी
रहती आँख भरी
लाज रखी शबरी,
बारी अब हमरी
सुन के आ रहा हूँ
आप सुनते हैं,
इसलिये सुना रहा हूँ
दुखड़ा अपना,
बस, आप सुन लीजिये,
मेरा न और सपना ।।चन्दनं।।

भेंटूँ धाँ गठरी
रहती आँख भरी
लाज रखी शबरी,
बारी अब हमरी
सुन के आ रहा हूँ
आप सुनते हैं,
इसलिये सुना रहा हूँ
दुखड़ा अपना,
बस, आप सुन लीजिये,
मेरा न और सपना ।।अक्षतं।।

भेंटूँ पुष्प लरी
रहती आँख भरी
लाज रखी शबरी,
बारी अब हमरी
सुन के आ रहा हूँ
आप सुनते हैं,
इसलिये सुना रहा हूँ
दुखड़ा अपना,
बस, आप सुन लीजिये,
मेरा न और सपना ।।पुष्पं।।

भेंटूँ चरु पूरी
रहती आँख भरी
लाज रखी शबरी,
बारी अब हमरी
सुन के आ रहा हूँ
आप सुनते हैं,
इसलिये सुना रहा हूँ
दुखड़ा अपना,
बस, आप सुन लीजिये,
मेरा न और सपना ।।नैवेद्यं।।

भेंटूँ लौं विरली
रहती आँख भरी
लाज रखी शबरी,
बारी अब हमरी
सुन के आ रहा हूँ
आप सुनते हैं,
इसलिये सुना रहा हूँ
दुखड़ा अपना,
बस, आप सुन लीजिये,
मेरा न और सपना ।।दीपं।।

भेंटूँ कस्तूरी
रहती आँख भरी
लाज रखी शबरी,
बारी अब हमरी
सुन के आ रहा हूँ
आप सुनते हैं,
इसलिये सुना रहा हूँ
दुखड़ा अपना,
बस, आप सुन लीजिये,
मेरा न और सपना ।।धूपं।।

भेंटूँ फल मिसरी
रहती आँख भरी
लाज रखी शबरी,
बारी अब हमरी
सुन के आ रहा हूँ
आप सुनते हैं,
इसलिये सुना रहा हूँ
दुखड़ा अपना,
बस, आप सुन लीजिये,
मेरा न और सपना ।।फलं।।

भेंटूँ द्रव शबरी
रहती आँख भरी
लाज रखी शबरी,
बारी अब हमरी
सुन के आ रहा हूँ
आप सुनते हैं,
इसलिये सुना रहा हूँ
दुखड़ा अपना,
बस, आप सुन लीजिये,
मेरा न और सपना ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
गुरु-रु-माँ,
हैं हारने में माहिर
जगज्-जाहिर

जयमाला
कौन सा मुँह लेकर,
मैं आपके पास आऊँ
पाप के रंग में ‘के इतना रँगा हूँ
‘के क्या बताऊँ

पावन आपका दामन
रावन जैसा मेरा मन

बात ये, किससे है छुपी,
और मैं आपसे क्या छुपाऊँ
मन आपका दर्पण
रावन जैसा मेरा मन

कौन सा मुँह लेकर,
मैं आपके पास आऊँ
पाप के रंग में ‘के इतना रँगा हूँ
‘के क्या बताऊँ

पावन आपका दामन
रावन जैसा मेरा मन

काजर की कोठरी में रहता हूँ
चाँद को दाग वाला कहता हूँ
कोयल का रूप काला कहता हूँ
करता हूँ, नाग-वाला चन्दन
काजर की कोठरी में रहता हूँ

कौन सा मुँह लेकर,
मैं आपके पास आऊँ
पाप के रंग में ‘के इतना रँगा हूँ
‘के क्या बताऊँ

पावन आपका दामन
रावन जैसा मेरा मन

बात ये, किससे है छुपी,
और मैं आपसे क्या छुपाऊँ
मन आपका दर्पण
रावन जैसा मेरा मन

कौन सा मुँह लेकर,
मैं आपके पास आऊँ
पाप के रंग में ‘के इतना रँगा हूँ
‘के क्या बताऊँ

पावन आपका दामन
रावन जैसा मेरा मन

भीतर न वैसा जैसा दिखता हूँ
सिर्फ चश्मा त नाक पे रखता हूँ
स्याह स्याही पत्र श्वेत लिखता हूँ
बिकता हूँ, सुन चन्द सिक्के खनखन
भीतर न वैसा जैसा दिखता हूँ

कौन सा मुँह लेकर,
मैं आपके पास आऊँ
पाप के रंग में ‘के इतना रँगा हूँ
‘के क्या बताऊँ

पावन आपका दामन
रावन जैसा मेरा मन

बात ये, किससे है छुपी,
और मैं आपसे क्या छुपाऊँ
मन आपका दर्पण
रावन जैसा मेरा मन

कौन सा मुँह लेकर,
मैं आपके पास आऊँ
पाप के रंग में ‘के इतना रँगा हूँ
‘के क्या बताऊँ

पावन आपका दामन
रावन जैसा मेरा मन
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
अहसाँ बड़ा, 
जो बनाया वंशी,
ये बाँस टुकड़ा

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