- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 877
लगता है तू
ए ! मुसाफिर
जाने क्यूँ अपना सा ।
फिर फिर दे, पड़गाहन
होती ये अभिलाषा ।।
तुझे देखते ही,
ये डबडबा-से जाते नयना ।
क्या ऐसा
कुछ कुछ तुम्हें भी
होता है ‘जि कहो ना ।।स्थापना।।
तुम्हें दृग्-जल भिंटाता हूँ मैं
कहो तुम कभी, अपना भी हमें
फिर फिर दे, पड़गाहन
होती ये अभिलाषा
लगता है तू, ए ! मुसाफिर
जाने क्यूँ अपना सा ।।जलं।।
तुम्हें संदल भिंटाता हूँ मैं
अपने अपनों में बिठा लो हमें
फिर फिर दे, पड़गाहन
होती ये अभिलाषा
लगता है तू, ए ! मुसाफिर
जाने क्यूँ अपना सा ।।चन्दनं।।
तुम्हें चावल भिंटाता हूँ मैं
सही, सपनों में दिख चलो हमें
फिर फिर दे, पड़गाहन
होती ये अभिलाषा
लगता है तू, ए ! मुसाफिर
जाने क्यूँ अपना सा ।।अक्षतं।।
तुम्हें लर-गुल भिंटाता हूँ मैं
इक नजर उठा के, लो देख हमें
फिर फिर दे, पड़गाहन
होती ये अभिलाषा
लगता है तू, ए ! मुसाफिर
जाने क्यूँ अपना सा ।।पुष्पं।।
तुम्हें रस-दल भिंटाता हूँ मैं
दे पद-रज दो, घर आके हमें
फिर फिर दे, पड़गाहन
होती ये अभिलाषा
लगता है तू, ए ! मुसाफिर
जाने क्यूँ अपना सा ।।नैवेद्यं।।
तुम्हें अविचल भिंटाता हूँ मैं
भर दो ‘भी’ रोशनी से हमें
फिर फिर दे, पड़गाहन
होती ये अभिलाषा
लगता है तू, ए ! मुसाफिर
जाने क्यूँ अपना सा ।।दीपं।।
तुम्हें परिमल भिंटाता हूँ मैं
सहजो ‘शरण’ अपनी ले लो हमें
फिर फिर दे, पड़गाहन
होती ये अभिलाषा
लगता है तू, ए ! मुसाफिर
जाने क्यूँ अपना सा ।।धूपं।।
तुम्हें श्री-फल भिंटाता हूँ मैं
अपना लो, अपना बना लो हमें
फिर फिर दे, पड़गाहन
होती ये अभिलाषा
लगता है तू, ए ! मुसाफिर
जाने क्यूँ अपना सा ।।फलं।।
तुम्हें जल-फल भिंटाता हूँ मैं
निरा ‘कुल’ स्वयं सा बना लो हमें
फिर फिर दे, पड़गाहन
होती ये अभिलाषा
लगता है तू, ए ! मुसाफिर
जाने क्यूँ अपना सा ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
बसते गैरों में, दें उन्हें भी रस्ते,
गुरु फरिश्ते
जयमाला
भीगा मयूर
दीखा, आप सरीखा न कोहनूर
आप बेनजीर हैं
वर्तमान वीर हैं
हैं चश्मे बद दूर
दीखा, आप सरीखा न कोहनूर
भीगा मयूर
दीखा, आप सरीखा न कोहनूर
आप बेमिशाल हैं
कलजुग गो-पाल हैं
अय ! आसमानी नूर
हैं चश्मे बद दूर
आप बेनजीर हैं
वर्तमान वीर हैं
हैं चश्मे बद दूर
दीखा, आप सरीखा न कोहनूर
भीगा मयूर
दीखा, आप सरीखा न कोहनूर
आप जैसे आप हैं
एक निष्पाप हैं
जित रण-चितवन हूर
अय ! आसमानी नूर
हैं चश्मे बद दूर
आप बेनजीर हैं
वर्तमान वीर हैं
हैं चश्मे बद दूर
दीखा, आप सरीखा न कोहनूर
भीगा मयूर
दीखा, आप सरीखा न कोहनूर
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
कर तारीफ,
भक्तों की गुरु करें छू तकलीफ
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