- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 875
आ जरा घुल-मिल लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
जयतु गुरुवरम्
जय विद्या सागरम् ।।स्थापना।।
जरा सा दृग्-जल लेते हैं
निराशा अपहर लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
आ जरा घुल-मिल लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
जयतु गुरुवरम्
जय विद्या सागरम् ।।जलं।।
महकते सत्-कृत लेते हैं
कण्ठ संस्कृत कर देते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
आ जरा घुल-मिल लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
जयतु गुरुवरम्
जय विद्या सागरम् ।।चन्दनं।।
पीले चावल लेते हैं
खुशी से दृग् भर देते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
आ जरा घुल-मिल लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
जयतु गुरुवरम्
जय विद्या सागरम् ।।अक्षतं।।
रोमिल पुलकन लेते है
सुमन सा मन कर देते है
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
आ जरा घुल-मिल लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
जयतु गुरुवरम्
जय विद्या सागरम् ।।पुष्पं।।
कुछ सुर व्यंजनलेते हैं
बस निरंजन कर देते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
आ जरा घुल-मिल लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
जयतु गुरुवरम्
जय विद्या सागरम् ।।नैवेद्यं।।
अबुझ लागी लौं लेते हैं
जगा ज्योति मन देते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
आ जरा घुल-मिल लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
जयतु गुरुवरम्
जय विद्या सागरम् ।।दीपं।।
बोल दो गदगद लेते हैं
पुन गंध अन भर देते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
आ जरा घुल-मिल लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
जयतु गुरुवरम्
जय विद्या सागरम् ।।धूपं।।
हाथ जुग श्रीफल लेते हैं
शिव-सुरग में धर देते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
आ जरा घुल-मिल लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
जयतु गुरुवरम्
जय विद्या सागरम् ।।फलं।।
सुमन श्रद्धा बस लेते हैं
भाँत अपने कर लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
आ जरा घुल-मिल लेते हैं
गुरु जी हमें
निराकुल कर ही देते हैं
जयतु गुरुवरम्
जय विद्या सागरम् ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
न कभी पसिर दर्द बना,
‘जी’ गुरु जी को अपना
जयमाला
है जिन्हें अजीज अजनबी भी
होना चाहते हैं, हम उनके करीबी
उनके चरणों में,
अपना आशियाना चाहते हैं
अपने सपनों में,
उनका आना-जाना चाहते हैं
होना चाहते हैं, हम उनके करीबी
है जिन्हें अजीज अजनबी भी
होना चाहते हैं, हम उनके करीबी
माटी, देते बना तो कलशी,
खुद बन करके शिल्पी
मोति देते बना, बिन्दु जल की,
खुद बन करके सीपी
खुद बन करके शिल्पी,
माटी, देते बना तो कलशी
होना चाहते हैं, हम उनके करीबी
है जिन्हें अजीज अजनबी भी
होना चाहते हैं, हम उनके करीबी
उनके चरणों में,
अपना आशियाना चाहते हैं
अपने सपनों में,
उनका आना-जाना चाहते हैं
होना चाहते हैं, हम उनके करीबी
है जिन्हें अजीज अजनबी भी
होना चाहते हैं, हम उनके करीबी
तिल-तिल जलते स्वयम्,
पल-पल, विहरते तम
जिस किसी के लिये,
देखा जब तब आँख नम
पल-पल, विहरते तम,
तिल-तिल जलते स्वयम्
होना चाहते हैं, हम उनके करीबी
है जिन्हें अजीज अजनबी भी
होना चाहते हैं, हम उनके करीबी
उनके चरणों में,
अपना आशियाना चाहते हैं
अपने सपनों में,
उनका आना-जाना चाहते हैं
होना चाहते हैं, हम उनके करीबी
है जिन्हें अजीज अजनबी भी
होना चाहते हैं, हम उनके करीबी
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
बनते किसी का नो-कर्म,
आती श्री गुरु को शर्म
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