- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 870
=हाईकू=
सुनते हैं वो सब कुछ
अपने हाथ मे आया ।
भर श्रद्धा से,
जो कुछ श्री फल में बुदबुदाया ।।
लिये श्रीफल,
खड़ा हूँ मैं भी, आपके चरणों में ।
बुदबुदाऊँ, ‘कि आ सकूँ,
मैं आप के अपनों में।।स्थापना।।
सुनते हैं वो सब कुछ,
अपने हाथ मे आया
भर श्रद्धा से,
जो कुछ श्री फल में बुदबुदाया
जल घट चढ़ाऊँ,
मैं बुदबुदाऊँ
‘के कभी,
तेरा दर्शन निकट से पाऊँ ।।जलं।।
सुनते हैं वो सब कुछ,
अपने हाथ मे आया
भर श्रद्धा से,
जो कुछ श्री फल में बुदबुदाया
चन्दन चढ़ाऊँ,
मैं बुदबुदाऊँ
‘के कभी,
भरके नयन, तुम्हें देख पाऊँ ।।चन्दनं।।
सुनते हैं वो सब कुछ,
अपने हाथ मे आया
भर श्रद्धा से,
जो कुछ श्री फल में बुदबुदाया
शालि-धाँ चढ़ाऊँ,
मैं बुदबुदाऊँ
‘के कभी,
मैं भी, छू आसमाँ पाऊँ ।।अक्षतं।।
सुनते हैं वो सब कुछ,
अपने हाथ मे आया
भर श्रद्धा से,
जो कुछ श्री फल में बुदबुदाया
फुल गुल चढ़ाऊँ,
मैं बुदबुदाऊँ
‘के कभी,
तेरे गुरुकुल प्रवेश पाऊँ ।।पुष्पं।।
सुनते हैं वो सब कुछ,
अपने हाथ मे आया
भर श्रद्धा से,
जो कुछ श्री फल में बुदबुदाया
नेवज चढ़ाऊँ,
मैं बुदबुदाऊँ
‘के कभी,
माथे तेरी पद रज पाऊँ ।।नैवेद्यं।।
सुनते हैं वो सब कुछ,
अपने हाथ मे आया
भर श्रद्धा से,
जो कुछ श्री फल में बुदबुदाया
दीपक चढ़ाऊँ,
मैं बुदबुदाऊँ
‘के कभी,
तेरा गन्धोदक पाऊँ ।।दीपं।।
सुनते हैं वो सब कुछ,
अपने हाथ मे आया
भर श्रद्धा से,
जो कुछ श्री फल में बुदबुदाया
सुगंधी चढ़ाऊँ,
मैं बुदबुदाऊँ
‘के कभी,
तेरी पुरानी पीछि पाऊँ ।।धूपं।।
सुनते हैं वो सब कुछ,
अपने हाथ मे आया
भर श्रद्धा से,
जो कुछ श्री फल में बुदबुदाया
श्री फल चढ़ाऊँ,
मैं बुदबुदाऊँ
‘के कभी,
तेरे अमोल दो पल पाऊँ ।।फलं।।
सुनते हैं वो सब कुछ,
अपने हाथ मे आया
भर श्रद्धा से,
जो कुछ श्री फल में बुदबुदाया
सब कुछ चढ़ाऊँ,
मैं बुदबुदाऊँ
‘के कभी,
तुम से लगा लौं अबुझ पाऊँ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
बना गुरु जी,
बचे द्रव्य से,
‘दिये’
बना तरु भी
जयमाला
आ पल बैठ के रो लें
अपने गुरु जी के समीप
आँचल मटमैला धो लें,
होने मोती अद्भुत सीप
अपने गुरु जी के समीप
आँचल मटमैला धो लें,
आ पल बैठ के रो लें
अपने गुरु जी के समीप
आँचल मटमैला धो लें
भटके लख चौरासी जोन
क्या दुख थे, न जाने कौन
आया पुण्य उदय इस बार
पाया हमने गुरु दरबार
होने ज्योती अनबुझ दीप
होने मोती अद्भुत सीप
अपने गुरु जी के समीप
आँचल मटमैला धो लें,
आ पल बैठ के रो लें
अपने गुरु जी के समीप
आँचल मटमैला धो लें
मरना जीना गोद निगोद
उखाड़े मुर्दे नरकन खोद
आया पुण्य उदय इस बार
पाया हमने गुरु दरबार
होने ज्योती अनबुझ दीप
होने मोती अद्भुत सीप
अपने गुरु जी के समीप
आँचल मटमैला धो लें,
आ पल बैठ के रो लें
अपने गुरु जी के समीप
आँचल मटमैला धो लें
पशु बन पशुता कीनी हाथ
स्वर्ग मुख सीधे की न बात
आया पुण्य उदय इस बार
पाया हमने गुरु दरबार
होने ज्योती अनबुझ दीप
होने मोती अद्भुत सीप
अपने गुरु जी के समीप
आँचल मटमैला धो लें,
आ पल बैठ के रो लें
अपने गुरु जी के समीप
आँचल मटमैला धो लें
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
तेरे नाम से जाने मुझे जहां,
दे ये दो वरदाँ
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