loader image
Close
  • Home
  • About
  • Contact
  • Home
  • About
  • Contact
Facebook Instagram

आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 854

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 854

=हाईकू=
विद्या शरद पूनम चाँदा,
और ज्ञान सागर ।
लुटाये कहाँ से,
यही से तो भर-भर गागर ।।

वो ज्ञानामृत,
प्यासे हम भी जरा हमें भी दे दो ।
निकाले पाप रिश्तेदारी,
अपना हमें कह दो ।।स्थापना।।

बुलाने लगो तुम कहके मुझे भी,
न और अरजी
भेंटूँ दृग्-जल, जी गुरु जी,
न और अरजी ।।जलं।।

बिठा अपने अपनों में लो मुझे भी
न और अरजी
भेंटूँ चन्दन, जी गुरु जी,
न और अरजी ।।चन्दनं।।

आशीर्वाद ‘के दे दो पीछी से मुझे भी
न और अरजी
भेंटूँ अक्षत, जी गुरु जी,
न और अरजी ।।अक्षतं।।

मुस्कान छोर-क्षितिज दे दो मुझे भी
न और अरजी
भेंटूँ दिव गुल, जी गुरु जी,
न और अरजी ।।पुष्पं।।

जख्मे-फूक वो माँ सी दे दो मुझे भी
न और अरजी
भेंटूँ नेवज, जी गुरु जी,
न और अरजी ।।नैवेद्यं।।

पल ‘पलक’ जगह दे दो मुझे भी
न और अरजी
भेंटूँ दीपक, जी गुरु जी,
न और अरजी ।।दीपं।।

लगातार ‘नौ’धा-भक्ति दे दो मुझे भी
न और अरजी
भेंटूँ सुगंध, जी गुरु जी,
न और अरजी ।।धूपं।।

पुरानी पीछि अपनी दे दो मुझे भी
न और अरजी
भेंटूँ श्री फल, जी गुरु जी,
न और अरजी ।।फलं।।

जिस्म जुदा, जाँ एक कर लो मुझे भी
न और अरजी
भेंटूँ सब कुछ, जी गुरु जी,
न और अरजी ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
दिन भी बाँटें सुधा गुरुवर,
न ‘कि रात-भर

जयमाला
मचले है मन
‘के करने दर्शन
आके तेरे, कुछ और पास में
अय ! बसने वाले,
मेरी आती जाती श्वास में

भरता ही नहीं मेरा मन,
‘जि गुरुजी दूर से
मैं वो कमल नहीं, ‘के खिल सकूँ रहके दूर सूर से

हूँ मैं तो वो अयस्
अय ! मेरे मण-पारस
चाहिये जिसे परस
आके बिलकुल ही पास में
अय ! बसने वाले,
मेरी आती जाती श्वास में

मचले है मन
‘के करने दर्शन
आके तेरे, कुछ और पास में
अय ! बसने वाले,
मेरी आती जाती श्वास में

भरता ही नहीं मेरा मन,
‘जि गुरुजी दूर से
मैं वो कमल नहीं, ‘के खिल सकूँ रहके दूर सूर से

आता ही नहीं ‘जि गुरु जी जादू होना मुझे
भरता ही नहीं मेरा मन,
‘जि गुरुजी दूर से
मैं वो कमल नहीं, ‘के खिल सकूँ रहके दूर सूर से

हूँ मैं तो वो शलभ
अय ! मेरे दीप अबुझ
चाहिये जिसे परस
आके बिलकुल ही पास में
अय ! बसने वाले,
मेरी आती जाती श्वास में

मचले है मन
‘के करने दर्शन
आके तेरे, कुछ और पास में
अय ! बसने वाले,
मेरी आती जाती श्वास में

भरता ही नहीं मेरा मन,
‘जि गुरुजी दूर से
मैं वो कमल नहीं, ‘के खिल सकूँ रहके दूर सूर से
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
पाता आपको ना,
तो घबड़ा जाता ये आप छौना

Sharing is caring!

  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn
  • Email
  • Print

Leave A Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

*


© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point

© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point