- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 832
शिख सिन्ध-ज्ञान
सदलग गुमान
जय जयतु जयतु जय
मेरे भगवान्
सदलग गुमान
शिख सिन्ध-ज्ञान
सदलग गुमान
जय जयतु जयतु जय
मेरे भगवान् ।।स्थापना।।
लाया जल
माया छ्ल
कर लो निश्चल, अपने समान
शिख सिन्ध-ज्ञान
सदलग गुमान
जय जयतु जयतु जय
मेरे भगवान् ।।जलं।।
चन्दन घट
बन्धन पट
जिन-भट कर लो अपने समान
शिख सिन्ध-ज्ञान
सदलग गुमान
जय जयतु जयतु जय
मेरे भगवान् ।।चन्दनं।।
चावल कण
चंचल मन
कर लो सज्जन अपने समान
शिख सिन्ध-ज्ञान
सदलग गुमान
जय जयतु जयतु जय
मेरे भगवान् ।।अक्षतं।।
पुष्प पिटार
मुख विष-धार
कर लो उदार अपने समान
शिख सिन्ध-ज्ञान
सदलग गुमान
जय जयतु जयतु जय
मेरे भगवान् ।।पुष्पं।।
चरु षट्-रस
गुरूर वश
कर लो समरस, अपने समान
शिख सिन्ध-ज्ञान
सदलग गुमान
जय जयतु जयतु जय
मेरे भगवान् ।।नैवेद्यं।।
दीपक घृत
धी-बक कृत
कर लो संस्कृत, अपने समान
शिख सिन्ध-ज्ञान
सदलग गुमान
जय जयतु जयतु जय
मेरे भगवान् ।।दीपं।।
अन सुगंध
विघन बंध
कर लो सुवंद्य, अपने समान
शिख सिन्ध-ज्ञान
सदलग गुमान
जय जयतु जयतु जय
मेरे भगवान् ।।धूपं।।
श्रीफल थाल
सर पर काल
कर लो प्र’बाल अपने समान
शिख सिन्ध-ज्ञान
सदलग गुमान
जय जयतु जयतु जय
मेरे भगवान् ।।फलं।।
जल फल आद
वन सिंह-नाद
कर लो सुसाध अपने समान
शिख सिन्ध-ज्ञान
सदलग गुमान
जय जयतु जयतु जय
मेरे भगवान् ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
गुरु हूबहू माँ समाँ,
करें कई गल्तिंयाँ क्षमा
जयमाला
गुरु मूरत में, रंग वो हैं भरे रब ने
चाहा ‘कि मुड़-मुड़ के देखना सबने
पाँखुरी पलकें हैं
घूँघरी अलकें हैं
फूल जैसी हँसी
श्वास में खुशबू वसी
चाहा ‘कि मुड़-मुड़ के देखना सबने
गुरु मूरत में, रंग वो हैं भरे रब ने
चाहा ‘कि मुड़-मुड़ के देखना सबने
हिमालय माथा है
नम हृदय नाता है
नज़र माँ के जैसी
फूल जैसी हँसी
चाहा ‘कि मुड़-मुड़ के देखना सबने
गुरु मूरत में, रंग वो हैं भरे रब ने
चाहा ‘कि मुड़-मुड़ के देखना सबने
पुष्प चंपक नासा
झील दृग्-परिभाषा
गला शंखावर्ती
फूल जैसी हँसी
चाहा ‘कि मुड़-मुड़ के देखना सबने
गुरु मूरत में, रंग वो हैं भरे रब ने
चाहा ‘कि मुड़-मुड़ के देखना सबने
गुलाब दूजी गदिंयाँ
लाजवंती बतिंयाँ
हूबहू हंसी-मती
फूल जैसी हँसी
चाहा ‘कि मुड़-मुड़ के देखना सबने
गुरु मूरत में, रंग वो हैं भरे रब ने
चाहा ‘कि मुड़-मुड़ के देखना सबने
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
कुछ करो,
‘कि छू पायँ रोज
तुम पाँय सरोज
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