- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 808
मेरे कोटि प्रणाम
आपके चरणों में
सुबह और शाम
भगवन् मेरे ! मेरे कोटि प्रणाम
आपके चरणों में,
बड़ी मेहरवानी
बदली मेरी जिन्दगानी
आ आपके चरणों में
भगवन् मेरे ! मेरे कोटि प्रणाम ।।स्थापना।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं कलशे,
भर-भर के कंचन जल से,
आपके चरणों में,
बड़ी मेहरवानी
बदली मेरी जिन्दगानी
आ आपके चरणों में,
भगवन् मेरे ! मेरे कोटि प्रणाम ।।जलं।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं चन्दन,
घिस भर के प्याली कंचन,
आपके चरणों में,
बड़ी मेहरवानी
बदली मेरी जिन्दगानी
आ आपके चरणों में,
भगवन् मेरे ! मेरे कोटि प्रणाम ।।चन्दनं।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं अक्षत,
नाम जैसा वैसे ही अछत,
आपके चरणों में,
बड़ी मेहरवानी
बदली मेरी जिन्दगानी
आ आपके चरणों में,
भगवन् मेरे ! मेरे कोटि प्रणाम ।।अक्षतं।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं लर-गुल,
सुगंधी वन नन्दनी मंजुल,
आपके चरणों में,
बड़ी मेहरवानी
बदली मेरी जिन्दगानी
आ आपके चरणों में,
भगवन् मेरे ! मेरे कोटि प्रणाम ।।पुष्पं।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं व्यंजन,
नयन-हर, मन-हर क्षुध्-भंजन,
आपके चरणों में,
बड़ी मेहरवानी
बदली मेरी जिन्दगानी
आ आपके चरणों में,
भगवन् मेरे ! मेरे कोटि प्रणाम ।।नैवेद्यं।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ दीपाली,
ज्योत अनबुझ दे दे ताली,
आपके चरणों में,
बड़ी मेहरवानी
बदली मेरी जिन्दगानी
आ आपके चरणों में,
भगवन् मेरे ! मेरे कोटि प्रणाम ।।दीपं।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं सुरभी,
चन्दन-चूरी कस्तूरी,
आपके चरणों में,
बड़ी मेहरवानी
बदली मेरी जिन्दगानी
आ आपके चरणों में,
भगवन् मेरे ! मेरे कोटि प्रणाम ।।धूपं।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं भेले
श्री फल बना हाथ सिर पे ले,
आपके चरणों में,
बड़ी मेहरवानी
बदली मेरी जिन्दगानी
आ आपके चरणों में,
भगवन् मेरे ! मेरे कोटि प्रणाम ।।फलं।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं जल फल,
गद गद हृदय, ले दृग्-सजल,
आपके चरणों में,
बड़ी मेहरवानी
बदली मेरी जिन्दगानी
आ आपके चरणों में,
भगवन् मेरे ! मेरे कोटि प्रणाम ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
आईये,
मन मंदिर में श्री गुरु जी पधारिये
जयमाला
मैं खड़ा हूँ कब से, जोड़ के ये अपने दोनों हाथ
न हुई है, ‘जि गुरु जी,
अब तलक न हुई है, तुम किरपा बरसात
उठा भी दो इक नज़र,
बन चलो मेरे हमसफर,
‘के अब तो आँख भी मेरी,
है आई भर,
उठा भी दो इक नज़र,
वो शबरी अपने आँगन में, झुक-झूम रही
अनचीनी,
झीनी-झीनी,
उड़ा के गुलाल मचा धूम रही,
‘के आ गये है, होने से पहले शाम,
उसके अपने श्री राम,
अय ! मेरे अपने राम,
क्या तुम्हें बिलकुल भी न फिकर मेरी,
जो अब तलक ली नहीं खबर मेरी,
शंख ने सुर सलोने पाये,
जटायु ने पंख सोने पाये,
पाये रंग, तितलियों ने,
कलियों पे भृंग मड़राये,
न हुई है, ‘जि गुरु जी,
अब तलक न हुई है, तुम किरपा बरसात
मैं खड़ा हूँ कब से, जोड़ के ये अपने दोनों हाथ
वो चन्दना की मंजिल, उसके कदम चूम रही
लो चन्दना अपने आँगन में, झुक-झूम रही
अनचीनी,
झीनी-झीनी,
उड़ा के गुलाल मचा धूम रही,
‘के आ गये है, होने से पहले शाम,
उसके अपने वीर स्वाम,
अय ! मेरे अपने राम ,
क्या तुम्हें बिलकुल भी न फिकर मेरी,
जो अब तलक ली नहीं खबर मेरी,
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
श्री गुरु द्वार,
भेजता झोली भर के हर-बार
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