- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 799
हाईकू
तेरी न कोई खता,
मैं ही शबरी न बन सका ।
न कर तेरा इन्तजार,
जो तेरे द्वार आ खड़ा ।
पर करता भी क्या,
थम ही रहे थे न ये आँसू ।
कहे जा रहे थे,
बारेक कर तो विनन्ति आ तू ।।स्थापना।।
कृपया मुझे,
ले लो अपनी शरण में,
साथ समर्पण,
करता जल अर्पण मैं ।।जलं।।
कृपया मुझे,
ले लो अपनी शरण में,
साथ समर्पण,
भेंटूँ घिस चन्दन मैं ।।चन्दनं।।
कृपया मुझे,
ले लो अपनी शरण में,
साथ समर्पण,
भेंटूँ अक्षत कण में ।।अक्षतं।।
कृपया मुझे,
ले लो अपनी शरण में,
साथ समर्पण,
भेंटूँ गुल नन्दन मैं ।।पुष्पं।।
कृपया मुझे,
ले लो अपनी शरण में,
साथ समर्पण,
भेंटूँ घृत व्यंजन ।।नैवेद्यं।।
कृपया मुझे,
ले लो अपनी शरण में,
साथ समर्पण,
भेंटूँ दीप रतन मैं ।।दीपं।।
कृपया मुझे,
ले लो अपनी शरण में,
साथ समर्पण,
भेंटूँ सुगंध अन मैं ।।धूपं।।
कृपया मुझे,
ले लो अपनी शरण में,
साथ समर्पण,
भेंटूँ फल वन वन मैं ।।फलं।।
कृपया मुझे,
ले लो अपनी शरण में,
साथ समर्पण,
आया सजल नयन मैं ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
नजरें आप उठतीं,
‘कि बलाएँ काँप उठतीं
जयमाला
मेरे गुरुवर, हैं रहम-दिल ऐसे
नरम-दिल जैसे नदी
खुद पे खरच ली,
वो चीज कौन सी,
जो और को न दी,
मेरे गुरुवर, हैं रहम-दिल ऐसे
नरम-दिल जैसे नदी
मेरे गुरुवर, हैं रहम दिल ऐसे,
नरम दिल जैसे तरु
है हैरान ये जमाना
पा पत्थर नजराना
कर आना बरसात फल शुरु
मेरे गुरुवर, हैं रहम दिल ऐसे,
नरम दिल जैसे तरु
मेरे गुरुवर, हैं रहम-दिल ऐसे,
नरम दिल जैसे प्रसून
पहले-पहले, झरने से,
चेहरे चेहरे, कर देना नजर सुकून
मेरे गुरुवर, हैं रहम-दिल ऐसे,
नरम दिल जैसे प्रसून
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
न ठुकराये किसी को,
अपना लें गुरु सभी को
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