- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 793
तुम ज्योति मैं दीप,
तुम मोती मैं सीप,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप ।।स्थापना।।
तुम पानी, मैं मीन,
तुम दानी, मैं दीन,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप,
तुम ज्योति मैं दीप,
तुम मोती मैं सीप,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप ।।जलं।।
तुम चन्दन, मैं काठ,
तुम तिलक, मैं ललाट,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप,
तुम ज्योति मैं दीप,
तुम मोती मैं सीप,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप ।।चन्दनं।।
तुम अक्षत, मैं टूट,
आप सुई, मैं सूत,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप,
तुम ज्योति मैं दीप,
तुम मोती मैं सीप,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप ।।अक्षतं।।
तुम फुलवा, मैं भृंग,
‘डोर तुम, मैं पतंग,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप,
तुम ज्योति मैं दीप,
तुम मोती मैं सीप,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप ।।पुष्पं।।
तुम व्यंजन स्वर मैं,
मंजिल तुम, डगर मैं,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप,
तुम ज्योति मैं दीप,
तुम मोती मैं सीप,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप ।।नैवेद्यं।।
तुम बादल, मैं मोर,
चाँद तुम, मैं चकोर,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप,
तुम ज्योति मैं दीप,
तुम मोती मैं सीप,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप ।।दीपं।।
तुम खुश्बू, मैं फूल,
मुआफ़ी तू, मैं भूल,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप,
तुम ज्योति मैं दीप,
तुम मोती मैं सीप,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप ।।धूपं।।
तुम श्री फल मैं हाथ,
तुम बिरछा, मैं पात,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप,
तुम ज्योति मैं दीप,
तुम मोती मैं सीप,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप ।।फलं।।
प्राण तुम, मैं शरीर,
तुम सागर, मैं तीर,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप,
तुम ज्योति मैं दीप,
तुम मोती मैं सीप,
है आरजू यही,
तुम यूँ ही,
बने रहना समीप ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
सुहाना गुरु का अन्तरंग,
समां मयूर पंख
जयमाला
गुरु जी का, ले हाथ थाम या,
गुरु जी को, दे हाथ आ-थमा,
ले छू, और तू आसमाँ,
देख-देख ना तू,
कब पाती आसमाँ छू,
खुशबू, वगैर वायु,
देख-देख ना तू
सो सुन,
अय ! मन, दे गुमा गुमाँ,
ले छू, और तू आसमाँ,
गुरु जी का, ले हाथ थाम या,
गुरु जी को, दे हाथ आ-थमा,
ले छू, और तू आसमाँ,
देख-देख ‘ना’ ‘जी,
कब सीप बन पाती,
मोति, बिन बिन्दु स्वाती,
देख देख ‘ना’ ‘जी,
सो सुन,
अय ! मन, दे गुमा गुमाँ,
ले छू, और तू आसमाँ,
गुरु जी का, ले हाथ थाम या,
गुरु जी को, दे हाथ आ-थमा,
ले छू, और तू आसमाँ,
‘रे देख देख ‘ना’,
कब छू पाये दाना,
आसमां, बिना बागबां,
‘रे देख देख ‘ना’,
सो सुन,
अय ! मन, दे गुमा गुमाँ,
ले छू, और तू आसमाँ,
गुरु जी का, ले हाथ थाम या,
गुरु जी को, दे हाथ आ-थमा,
ले छू, और तू आसमाँ,
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
छू उलझन सारी,
गुरु-दर्शन चिच्-चमत्कारी
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