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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 788

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 788

देखें ये मेरे नयन,
‘के रात देखा सुपन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा,

गुजारिश,
यही ख्वाहिश,
न अरमान दूसरा,
अय ! मेरे गुरु सा,

‘के रात देखा सुपन,
देखें ये मेरे नयन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा ।।स्थापना।।

ले आश गन्धोदक,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ उदक,
साथ श्रद्धा सुमन,
‘के रात देखा सुपन,
देखें ये मेरे नयन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा
गुजारिश,
यही ख्वाहिश,
न अरमान दूसरा,
अय ! मेरे गुरु सा ।।जलं।।

ले आश चरण वन्दन,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ चन्दन,
साथ श्रद्धा सुमन,
‘के रात देखा सुपन,
देखें ये मेरे नयन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा
गुजारिश,
यही ख्वाहिश,
न अरमान दूसरा,
अय ! मेरे गुरु सा ।।चन्दनं।।

ले आश भक्ति नवधा,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ शालि धाँ,
साथ श्रद्धा सुमन,
‘के रात देखा सुपन,
देखें ये मेरे नयन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा
गुजारिश,
यही ख्वाहिश,
न अरमान दूसरा,
अय ! मेरे गुरु सा ।।अक्षतं।।

ले आश इक नजर,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ गुल अमर,
साथ श्रद्धा सुमन,
‘के रात देखा सुपन,
देखें ये मेरे नयन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा
गुजारिश,
यही ख्वाहिश,
न अरमान दूसरा,
अय ! मेरे गुरु सा ।।पुष्पं।।

ले आश चरण रज,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ नेवज,
साथ श्रद्धा सुमन,
‘के रात देखा सुपन,
देखें ये मेरे नयन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा
गुजारिश,
यही ख्वाहिश,
न अरमान दूसरा,
अय ! मेरे गुरु सा ।।नैवेद्यं।।

ले आश इक झलक,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ दीपक,
साथ श्रद्धा सुमन,
‘के रात देखा सुपन,
देखें ये मेरे नयन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा
गुजारिश,
यही ख्वाहिश,
न अरमान दूसरा,
अय ! मेरे गुरु सा ।।दीपं।।

ले आश सुख अमंद,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ सुगंध,
साथ श्रद्धा सुमन,
‘के रात देखा सुपन,
देखें ये मेरे नयन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा
गुजारिश,
यही ख्वाहिश,
न अरमान दूसरा,
अय ! मेरे गुरु सा ।।धूपं।।

ले आश दृग्-सजल,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ श्री फल,
साथ श्रद्धा सुमन,
‘के रात देखा सुपन,
देखें ये मेरे नयन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा
गुजारिश,
यही ख्वाहिश,
न अरमान दूसरा,
अय ! मेरे गुरु सा ।।फलं।।

ले आश घर-सुरग,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ अरघ,
साथ श्रद्धा सुमन,
‘के रात देखा सुपन,
देखें ये मेरे नयन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा
गुजारिश,
यही ख्वाहिश,
न अरमान दूसरा,
अय ! मेरे गुरु सा ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
सुनते गुरु जी पुकार,
चुनते आ एक बार

जयमाला
सभी अपने लिये जीते
जीते औरों के लिये गुरु जी
छाना आसमां, छानी जमीं,
है कहीं और गुरु जी सा नहीं,

बच्चे अजनबी
पढ़ लिख सभी
बन नेक-दिल,
छू लें मंजिल

कीं कुरबां बच्चिंयाँ अपनीं,
प्रतिभा स्थलियाँ बनीं
तभी,
हाँ…हाँ… सभी,
अपने लिये जीते
जीते औरों के लिये गुरु जी
छाना आसमां, छानी जमीं,
है कहीं और गुरु जी सा नहीं,

अनजान नौजवाँ,
पैर अपने जमा,
हाथ अपने उठा,
छू लें आसमां

कुरबां किये बच्चे अपनें,
चल-चरखा हत-करघा बनें,
तभी,
हाँ…हाँ… सभी,
अपने लिये जीते
जीते औरों के लिये गुरु जी
छाना आसमां, छानी जमीं,
है कहीं और गुरु जी सा नहीं,

जमाने नजर बेजां
सभी वे बेजुबां
घास ही सूखी,
पा लें हँसी-खुशी,
की कुरबां दुआएँ अपनीं,
ढ़ेरों गोशालाएँ बनीं,
तभी,
हाँ…हाँ… सभी,
अपने लिये जीते,
जीते औरों के लिये गुरु जी
छाना आसमां, छानी जमीं,
है कहीं और गुरु जी सा नहीं,

बच्चे अजनबी
पढ़ लिख सभी
बन नेक-दिल,
छू लें मंजिल

कीं कुरबां बच्चिंयाँ अपनीं,
प्रतिभा स्थलियाँ बनीं
तभी,
हाँ…हाँ… सभी,
अपने लिये जीते
जीते औरों के लिये गुरु जी
छाना आसमां, छानी जमीं,
है कहीं और गुरु जी सा नहीं, 
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
कङ्कर मोती हो,
गुरु कृपा होती तो माटी सोना

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