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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 739

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 738

हाईकू
देते हैं चाँद तारे छुवा,
‘गुरु जी’ पिटारे दुआ ।।स्थापना।।

धनी निर्धन तुम्हें एक से,
भेंटूँ जल कलशे ।।जलं।।

तुम्हें निर्धन एक ‘गिर-धन,
सो भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।

पैसे वाले-से, भाग के मारे तुम्हें,
सो भेंटूँ धाँ मैं ।।अक्षतं।।

तुम्हें रईस सा सईस,
सो भेंटूँ पुष्प शिरीष ।।पुष्पं।।

तुम्हें निर्धना एक धनवाँ,
भेंटूँ ‘सो ला’ पकवाँ ।।नैवेद्यं।।

जैसा अमीर तुम्हें वैसा गरीब,
सो भेंटूँ दीव ।।दीपं।।

तुम्हें सुखिया, दुखिया एक रूप,
सो भेंटूँ धूप ।।धूप।।

सेठ सा तुम्हें फटे हाल,
सो भेंटूँ श्री-फल थाल ।।फलं।।

कुबेर भाँत तुम्हें तंग-हाथ,
सो भेंटूँ जलाद ।।अर्घं।।

हाईकू
उत्पथ पद,
पड़ने न दें,
‘गुरु’
गलत लत

जयमाला

आओ आओ ‘रे
‘रे आओ आओ ‘रे
मिलके खुशियाँ मनाओ ‘रे
नगर पधारे
गुरुवर म्हारे
धूम मचाओ ‘रे
‘रे धूम मचाओ ‘रे
ढ़ोल बजाओ
नाचो गाओ,
रंग जमाओ ‘रे
‘रे रंग जमाओ ‘रे
मिलके खुशियाँ मनाओ ‘रे

देख रही थी कब से राहें
पलक पावड़े बिछा निगाहें
हुई अधूरी,
ख्वाहिश पूरी
मिलके खुशियाँ मनाओ ‘रे

खामोशी थी इन गलियों में
मायूसी थी गुल-कलियों में
देख रही थी कब से राहें
पलक पावड़े बिछा निगाहें
हुई अधूरी,
ख्वाहिश पूरी
मिलके खुशिंयाँ मनाओ ‘रे

खो पतझर होगा कब सावन
सिसक रहे थे घर सब आँगन
देख रही थी कब से राहें
पलक पावड़े बिछा निगाहें
हुई अधूरी,
ख्वाहिश पूरी
मिलके खुशियाँ मनाओ ‘रे

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
यही आरजू,
सबके दुख-दर्द ‘कि हो जायें छू

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