- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 721
=हाईकू=
जहाँ सभी की हो सुनवाई,
‘द्वार’
वो गुरुराई ।।स्थापना।।
श्री गुरु ज्ञान कृति-चेतन,
भेंटूँ नीर-नयन ।।जलं।।
श्री गुरु ‘ज्ञान’ पुत्र औरस,
भेंटूँ चन्दन रस ।।चन्दनं।।
प्राणों से प्यारे श्री गुरु ज्ञाँ तुम्हें,
सो भेंटूँ धाँ तुम्हें ।।अक्षतं।।
नींव ए गुरु ज्ञान गुरुकुल,
लो स्वीकार गुल ।।पुष्पं।।
तुम्हें भगवान्
श्री गुरु ज्ञान,
भेंटूँ सो पकवान ।।नैवेद्यं।।
श्री गुरु ज्ञान चरण वसिया,
लो स्वीकार दिया ।।दीपं।।
स्रोत श्री गुरु ज्ञान भक्ति अमन्द,
भेंटूँ सुगंध ।।धूपं।।
तुम्हें श्री गुरु ज्ञान,
एक संबल,
भेंटूँ सो फल ।।फलं।।
श्री गुरु ज्ञान दृग्-तारे,
लो स्वीकार ये द्रव्य म्हारे ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
कुछ चुराई,
गुरु ‘मुस्कान’
तब ले फूल ‘पाई’
।।जयमाला।।
दिल नेक बनें
हम एक बनें
ऐसा दो आशीर्वाद
न और फरियाद
चरणन तेरे,
भगवन् मेरे !
न और फरियाद
ऐसा दो आशीर्वाद
संजीव बनें,
हम दीव बनें
गंभीर बनें,
हम वीर बनें
ऐसा दो आशीर्वाद
न और फरियाद
कातर न बनें,
तर नयन बनें
दुश्मन न बनें,
हम सुमन बनें
ऐसा दो आशीर्वाद
न और फरियाद
निष्काम बनें
श्री राम बने
निष्पाप बनें,
सम आप बनें
ऐसा दो आशीर्वाद
न और फरियाद
चरणन तेरे,
भगवन् मेरे !
दिल नेक बनें
हम एक बनें
ऐसा दो आशीर्वाद
न और फरियाद
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
थमे चपल मृग-मन,
छूते ही गुरु चरण
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