- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 700
==हाईकू==
दिन बहुत हुये,
था मिला जब, पड़गाहन ।
आज, कल में,
दे फिर से दो अब, पड़गाहन ।।
एकाध बार से,
है मुश्किल बड़ा, मन भरना ।
क्यों…क्योंकि ‘मन’
है मन-भर-ना, ‘जी करो करुणा ।।स्थापना।।
कण्ठ कोकिल मिसरी,
न पराई, मैं भी तुमरी ।।जलं।।
चन्दन, मीरा, शबरी कतार,
लो मुझे बिठार ।।चन्दनं।।
तोते नज़ूमी कहाये,
हम तेरे ही, न पराये ।।अक्षतं।।
मान बैठे क्यों मुझे पराया,
गान भँवरा भाया ।।पुष्पं।।
तितली पाई रंग,
भेद-भाव क्यूँ हमारे संग ।।नैवेद्यं।।
पतंग लागी जाके गगन,
भींगे मेरे नयन ।।दीपं।।
फूल मुस्कुरा चले,
कभी चेहरा मेरा भी खिले ।।धूपं।।
धूल चन्दन एक,
कभी लो इस ओर भी देख ।।फलं।।
जग-मगाये सितारे,
सुनो हम भी तो तुम्हारे ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
दिखाते ‘जहां-से’ न स्वप्न झूठे,
हो तुम अनूठे
।।जयमाला।।
चाँद तारे आसमां से तोड़ ला जल्दी
जा कोहनूर गोरों से छोड़ ला जल्दी
बिछुड़े गुरु जी से
‘कि मिले गुरु जी से
गुजरने को इक जमाना
आज सखि ! गुरु दर्शन को जाना
बता, क्या ले चलना नजराना
मोतियों को मानस से बटोर ला जल्दी
जा मलयागिर का चन्दन घोर ला जल्दी
चाँद तारे आसमां से तोड़ ला जल्दी
जा कोहनूर गोरों से छोड़ ला जल्दी
बाती गो-घृत में बोर ला जल्दी
स्वर्ग से अमृत, जा दौड़ ला जल्दी
चाँद तारे आसमां से तोड़ ला जल्दी
जा कोहनूर गोरों से छोड़ ला जल्दी
आज सखि ! गुरु दर्शन को जाना
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==हाईकू==
बिन तुम्हारे,
गुजरते दिन से छिन हमारे
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